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जानिए केंद्र सरकार ने अदालत में रोहिंग्या मुस्लिमों को क्या बताया ?

नयी दिल्ली,  केंद्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय में कहा कि रोहिंग्या मुस्लिमों के लगातार यहां रहने के सुरक्षा संबंधी गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिसके बाद म्यामां में अपने घर छोड़कर यहां शरण लेने आये हजारों लोगों की चिंता और बढ़ गयी है। संयुक्त राष्ट्र ने रोहिंग्या मुसलमानों को दुनिया में सर्वाधिक पीड़ित अल्पसंख्यक बताया है जो एक बेगाने देश में अस्थाई और अनिश्चित जीवन जी रहे हैं और वहां आसरा पाने की कोशिश कर रहे हैं।

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 रोहिंग्या लोगों के अंदर यह भावना डर पैदा करती है कि उन्हें वापस जाना पड़ सकता है। अपने से अधिक उम्र के लोगों सी समझदारी से बात कर रहे 12 साल के नूरूल इस्लाम ने कहा कि वह कभी अपने देश वापस नहीं जाना चाहता। उसने कहा, ‘‘मैं यहां खुश हूं और मुझे स्कूल जाना पसंद है। मैं कभी अपने देश वापस नहीं जाना चाहूंगा क्योंकि वहां सेना बच्चों को मार देती है। मैं सरकार से दरख्वास्त करना चाहता हूं कि हमें म्यामां वापस नहीं भेजे।

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 ये परिवार दक्षिण दिल्ली के शाहीन बाग में कचरे के ढेरों के पास अस्थाई तंबुओं में रहते हैं और ये बच्चे जसोला में पास के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। साल 2012 में नूरूल की जिंदगी पूरी तरह बदल गयी थी जब गर्मियों की एक रात में म्यामां के रखाइन प्रांत में उसके घर पर उग्रवादी हमला हो गया। वह याद करता है कि तब सात साल की उम्र में वह किस तरह मौत से बचा था। उसके बाद ये लोग बांग्लादेश गये जहां शुरूआती दिन बहुत संघर्ष भरे रहे। इसके बाद ये परिवार भारत में आ गया।

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 नूरूल का परिवार उन 70 रोहिंग्या परिवारों में शामिल है जो शाहीन बाग के शिविर में रह रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी में करीब 1200 रोहिंग्या लोग रहते हैं जिनमें से बाकी मदनपुर खादर के एक शिविर में रह रहे हैं। इस महीने हजारों रोहिंग्या लोगों को रखाइन प्रांत छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। वे बांग्लादेश में शरण ले रहे हैं। इनमें अधिकतर मुस्लिम परिवार हैं। इनकी हालत विदेशों में भी सुर्खियां बन रही है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुतेरेस ने कहा है कि रोहिंग्या मुसलमानों के सामने विनाशकारी मानवीय स्थिति है।

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 भारत में सरकार के रुख के बाद रोहिंग्या लोगों के मन में उथल-पुथल चल रही है। शाहीन बाग में रहने वाली सबीकुन नाहर ने कहा, ‘‘मैं अपनी पूरी जिंदगी शरणार्थी की तरह नहीं जीना चाहती। लेकिन अगर मैं म्यामां में अपने गांव वापस जाने की सोचती भी हूं तो उग्रवादी हमलों की वो हृदय विदारक यादें मुझे दहला देती हैं।’’ 21 साल की लड़की ने बताया कि हमलावरों ने हमारे घर को जला दिया और हमें बौद्ध धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। हमें स्थानीय मस्जिदों में जाने से रोका गया और हम इतने डरे हैं कि रात में सो नहीं पाते।

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 केंद्र सरकार ने नौ अगस्त को संसद में कहा था कि भारत में फिलहाल 14 हजार रोहिंग्या लोग रह रहे हैं जिनका पंजीकरण यूएनएचसीआर में है। केंद्र ने आज उच्चतम न्यायालय में कहा कि रोहिंग्या मुस्लिम हमारे देश में अवैध प्रवासी हैं और उनके लंबे समय तक यहां बसने के राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

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