नई दिल्ली, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी ( जेएनयू) का अभिन्न हिस्सा बन चुके गंगा ढाबा को जेएनयू प्रशासन ने खाली करने का आदेश दिया है. कैंपस के छात्र इस फरमान के खिलाफ खड़े हो गये हैं. कल गंगा ढाबा नहीं खुला. अब खुलेगा भी या नहीं कहा नहीं जा सकता.
जेएनयू के स्टूडेंट्स ने कर दिए हैं. उन्होंने प्रशासन पर कई तरह के आरोप लगाए हैं. स्टूडेंट्स का कहना है कि ढाबे को बंद करके प्रशासन कई चीजों को जेएनयू परिसर में बंद करवाना चाहता है. प्रशासन सभी को हॉस्टल की मेस में मिलने वाला खाना खाने के लिए बाध्य करना चाहता है. इसके साथ ही प्रशासन स्टूडेंट्स को रात 9 बजे के बाद हॉस्टल में बंद कर देना चाहता है.
गंगा ढाबा जेएनयू में पिछले 33 सालों से चल रहा है.गंगा ढाबा शुरू में एक चाय की दुकान थी. उसे 1983 में खोला गया था। वह भरत तोमर के पिता तेजवीर सिंह ने खोली थी. वह चाय की दुकान 1989 में ढाबे में बदल गई. ढाबे में जेएनयू के बाहर के मुकाबले काफी सस्ता खाना मिलता है. जेएनयू में राजनीति करने वाले छात्र मानते हैं कि ये ढाबा सिर्फ खाने का ही नहीं बल्कि जेएनयू के विचारों का एक केंद्र है.गंगा ढाबा को कैंपस की नाइट लाइफ का अहम हिस्सा माना जाता है. आधी रात तक यहां छात्रों का मजमा लगता है. देसी-विदेशी मुद्दों पर चर्चा होती है. नेता चाय की चुस्कियों के साथ रणनीति बनाते हैं. रात को आपको कहीं खाना और चाय भले ही न मिले लेकिन इस जगह आपको चाय, पानी, खाना सब मिल जाएगा. कैंपस के पुराने छात्र मानते हैं कि गंगा ढाबा कैंपस की सुरक्षा के लिए भी काफी अहम है.
1985 से चल रहा गंगा ढाबा पहले तेजबीर सिंह ने नाम पर अलॉट था. उनकी मौत के बाद पत्नी सुमन के नाम पर ट्रांसफर हुआ फिर उनके जाने के बाद बेटे भरत तोमर इसे चला रहे हैं. जेएनयू प्रशासन का कहना है कि जिनके नाम पर करार था अब वो नहीं हैं लिहाजा ढाबा गैरकानूनी तरीके से चल रहा है. इसलिए नए सिरे से अलॉट किया जाएगा. छात्रों को वैचारिक अड्डे की चिंता है तो यहां काम करने वाले लोगों की रोजी रोटी पर सवाल खड़ा हो रहा है.ढाबे के मालिक भरत तोमर और सुशील राठी को ढाबा बंद करने का नोटिस भी दे दिया जा चुका है.