भारत का मन आहत है। गोवध के पक्ष में अभियान जारी हैं, जबकि गोसंरक्षण और गोवध निषेध भारतीय संस्कृति और इतिहास की मुख्यधारा रहे हैं। गाय ऋग्वेद से लेकर भारतीय संविधान तक ‘अबध्य” है। लेकिन गोमांस खाने के पैरोकार हमारे पूर्वजों को गोमांस भक्षी बता रहे हैं। एक इतिहासकार डीएन झा ने तो ऋग्वैदिक समाज को गोमांस प्रिय बता दिया है। एक अन्य स्तंभकार सुरजीत एस. भल्ला ने सर्वोच्च न्यायालय को भी लपेटा है। न्यायालय ने वर्ष 2005 के अपने एक फैसले में गायों को आर्थिक दृष्टि से उपयोगी बताया था। उन्हें इसी का मलाल है कि न्यायालय ने वर्ष 1959 के एक अन्य फैसले में 16 वर्ष से ऊपर के गोवंश के वध की अनुमति दी थी, लेकिन ‘हिंदुत्ववादी” सुप्रीम कोर्ट ने अर्थशास्त्र के सहारे पुराना फैसला पलट दिया। ऐसे अभियानकर्ता निरंतर आक्रामक बने हुए हैं। उनके अपकथनों का तार्किक प्रतिकार भी हिंदूवादी सांप्रदायिकता बताया जा रहा है। गोवध निषेध के बहाने अर्थनीति, संस्कृति और हिंदू परंपरा पर भी हमले किए जा रहे हैं।
भारतीय संविधान सभा प्रतिगामी नहीं थी। गोवध निषेध को पहले मौलिक अधिकार बनाने की बात थी। सेठ गोविंददास ने इस विषय को मौलिक अधिकार में लेने का संशोधन भेजा था। संविधान सभा (24 नवंबर 1948) में ठाकुरदास भार्गव ने कहा था कि ‘यह मामला मौलिक अधिकार में आ जाता तो जायज था, लेकिन कुछ दोस्तों (सदस्यों) व डॉ. आंबेडकर की राय है कि इसे नीति-निर्देशक तत्वों में रखा जाए… बूढ़ी गाय भी अनुपयोगी नहीं होती। गाय की जिबह रोकना जरूरी है।” उन्होंने अफगानिस्तान, बर्मा आदि कई देशों के गोवध निषेध कानूनों का हवाला दिया था। सेठ गोविंददास ने इसे मौलिक अधिकारों में न सम्मिलित करने के लिए दु:ख व्यक्त किया था और कहा था कि ‘गोरक्षा एक सांस्कृतिक प्रश्न है और आर्थिक भी।” उन्होंने बाबर द्वारा हुमायूं को दिए गए इस संदेश का भी उल्लेख किया कि ‘गोकशी से परहेज करना।” गोवध रोक का इतिहास भी बताया। शिब्बन लाल सक्सेना, प्रो. रघुवीर आरवी धुलेकर, जेडएच लारी आदि ने गोवध रोक का समर्थन किया। डॉ. अंबेडकर ने भी मूल मत स्वीकार किया। इस तरह ‘गोवध निषेध” संविधान का अनुच्छेद 48 बना।
श्रद्धालु प्रिय पदार्थ ही देवों को अर्पित करते हैं।
वामपंथी मित्रों के अपने आग्रह हो सकते हैं। झा जैसे श्रीमानों के आग्रह तो सुस्पष्ट हैं ही। लेकिन मार्क्सवादी चिंतक डॉ. रामविलास शर्मा ने आर्यों के भोजन का गहन विवेचन किया है। उन्होंने ‘भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश” (खंड 1 पृष्ठ 24) में लिखा है ‘आर्य जिस तरह का अन्न् देवों को अर्पित करते थे, वैसा ही स्वयं खाते थे। खेती से जौ की उपज होती थी। उसी में दूध मिलाकर वे देवों को भेंट करते थे। ध्यान देने की बात है कि देवों को बार-बार अनाज, घी, दूध की चीजें भेंट की गई हैं। मांस का उल्लेख एक बार भी नहीं है।” सेकुलरों को मार्क्सवाद के इस विद्वान का विवेचन पढ़ना चाहिए। ऋ ग्वेद में देवों को भोजन के न्यौते के अनेक उल्लेख हैं। गोमांस का उल्लेख नहीं है।
कुछेक विदेशी विद्वान भी वैदिक पूर्वजों को मांसाहारी बता रहे थे। डॉ. शर्मा के अनुसार मैकडनल और कीथ ने वैदिक इंडेक्स में ऋ ग्वेद के एक मंत्र (8.43.11) का हवाला दिया है। उनके अनुसार मंत्र में अग्नि को गाय-बैल खाने वाला कहा गया है। मंत्र इस प्रकार है : ‘उक्षान्न्य वशान्न्य सोमपृष्ठाय वेधसे।” उक्षान्न्य का एक अर्थ है भीगा हुआ अन्न्। अग्नि रस सिंचित अन्न् लेकर देवों के पास जाते हैं। इसलिए उन्हें उक्षान्न्य कहा जा सकता है। उक्षा का अर्थ बैल भी है और वसा का अर्थ गाय। लेकिन उक्षा और वसा दोनों के आगे अन्न् शब्द जुड़ा हुआ है। सातवलेकर का अनुवाद है : ‘अन्न् को रस से सिंचित करने व रमणीय बनाने वाले सोमपीठ अग्नि की स्तुति करते हैं।” उक्षान्न् का अर्थ बैल का मांस करने के बजाय रस सिंचित अन्न् करना अधिक उपयुक्त होगा।
ऋग्वेद में गाय को बारंबार अघन्या-अबध्या कहा गया है। इंद्र स्वयं अघन्या के स्वामी हैं। (8.69.2) इंद्र गायों के रक्षक हैं। ऋ ग्वेद (6.28.5-7) में कहा गया है कि ये गायें ही इंद्र हैं : ‘इमा या गाव: स जनास इंद्र।” गाय ‘सहस्त्रधारा पयसा” है। गाय का दूध दुर्बुद्धि दूर करता है : ‘गोमिष्टरेमामतिं दुरेवामं।” ऋग्वेद और अथर्ववेद के बीच समय का लंबा फासला है। किंतु अथर्ववेद में भी गाय की महत्ता का वर्णन किया गया है। कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र” में गोवध पर मृत्युदंड का वर्णन है।
भारतीय इतिहासबोध में गोसंरक्षण की एक अविरल धारा को आप लक्ष्य कर सकते हैं। बौद्ध साहित्य में कहा गया है कि जैसे माता-पिता और अन्य परिजन हैं, वैसे ही गायें भी हैं। बर्मा में लोकप्रिय पुस्तक ‘लोकनीति” में भी गोमांस निषिद्ध बताया गया है। ऐसे में मूलभूत प्रश्न यह उठता है कि कथित इतिहासकार हमारे पूर्वजों को गोमांस प्रिय बताकर आखिर सिद्ध क्या करना चाहते हैं? ललकारते हुए बीफ पार्टी देने के पीछे उनकी मंशा क्या है? भारतीय विवेक, ज्ञान और श्रद्धा को नीचा दिखाना ही उनका उद्देश्य है। यह बर्दाश्त के बाहर है। गोसंरक्षण भारत की श्रुति, स्मृति, परंपरा, इतिहास व संस्कृति में है। कृपया परंपरा का सम्मान कीजिए।