दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे अंगूर पसंद न हों। द्राक्ष, रसाला, मधुफला, फलोत्रमा आदि नाम अंगूर के ही हैं। मीठे, रसीले और ठंडक प्रदान करने वाले इस फल का जन्म स्थल रूस के आरमेनिया नामक स्थान को माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कि ईरान तथा अफगानिस्तान से होता हुआ यह फल भारत में भी पहुंचा। यह फल केवल ताजा नहीं बल्कि सुखाकर किशमिश व मुनक्के के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। शराब बनाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।
बाजार में अंगूर की बहुत सी किस्में उपलब्ध हैं। जैसे रंग के आधार पर अंगूर की दो किस्में हैं काले तथा हरे अंगूर। कुछ अंगूरों का आकार लम्बा होता है तो कुछ का गोल। इसी प्रकार छोटे और बड़े अंगूर भी पाए जाते हैं। कुछ अंगूरों में बीज होते हैं जबकि बेदाना में बीज नहीं होते। हालांकि इनमें प्रोटीन, वसा, विटामिन और खनिज लवण बहुत ही कम मात्रा में होते हैं। इसमें कार्बोहाडट्रेट शर्करा के रूप में पाया जाता है इसमें ग्लूकोज तथा फ्रक्टोज किस्म की शर्करा पाई जाती है इसी कारण इनका सेवन काफी स्फूर्तिदायक सिद्ध होता है।
दूसरी और किशमिश में शर्करा की मात्रा अंगूर से ज्यादा होती है इससे उसमें मिलने वाली ऊर्जा की मात्रा भी ज्यादा है। ताजा अंगूरों की सौ ग्राम मात्रा से जहां लगभग सत्तर कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है वहीं किशमिश की इतनी ही मात्रा से लगभग तीन सौ आठ कैलोरी ऊर्जा की प्राप्ति होती है। अंगूर हमारे स्वास्थ्य का भी रक्षक होता है। अंगूर को सुखाकर तैयार की जाने वाली मेवा किशमिश तथा बड़े बीज वाले अंगूर को सुखाकर तैयार किया जाने वाला मुनक्का दोनों ही बहुत लोकप्रिय हैं। इनके विविध औषधीय प्रयोग किए जाते हैं।
आयुर्वेदिक तथा यूनानी दवाओं में अक्सर इनका प्रयोग किया जाता है। कफ, दुर्बलता तथा कब्ज को दूर करने के लिए इनका प्रयोग फायदेमंद होता है। इसके लिए पंचामृत अवलेह नामक मिश्रण तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए एक-एक भाग सोंठ, पीपल, काली मिर्च तथा सेंधा नमक मिलाकर पीस लें। फिर उसमें चालीस भाग मुनक्का मिलाकर उसका सेवन करें। आमतौर पर इसकी एक छोटी चम्मच मात्रा का सुबह-शाम प्रयोग पर्याप्त होता है। कब्ज, कफ तथा मंदाग्नि में इससे आशातीत लाभ होता है।
यकृत तथा किडनी के रोगों में भी अंगूर तथा किशमिश का प्रयोग लाभकारी होता है। सभी प्रकार के बुखारों तथा क्षय रोग के समय शरीर को अधिक ऊर्जा व बल की जरूरत होती है ऐसे अंगूर का सेवन करना श्रेष्ठ होता है। यों तो अंगूर के रस को संरक्षित कर बोतलों में रखा जा सकता है परन्तु ऐसा करने से आप उससे प्राप्त होने वाले फाइबर से वंचित हो जाएंगे। शर्करा की मात्रा अधिक होने के कारण अंगूरों का खमीरीकरण करके अच्छी किस्म की मदिरा भी तैयार की जाती है। अंगूरों की तासीर ठंडी होती है।
सेवन करने पर ये शीतलता प्रदान करते हैं अतः दाह तथा हॉट फ्ल्शज के उपचार के लिए इनका प्रयोग किया जा सकता है। इधर परीक्षण यह बताते हैं कि अंगूर जीवनदायी गुणों से भरपूर है। हृदय की सुरक्षा में ताजे अंगूरों का बहुत महत्व है। ताजा अंगूरों में पालिफिनाल नामक तत्व होता है जो हमारे हृदय के लिए फायदेमंद होता है। रेडवाइन की तरह ताजा अंगूर भी रोगियों के हृदय तथा धमनियों को आक्सीडेशन से होने वाले नुकसान से बचाता है। अंगूर तथा वाइन दोनों में एक जैसे पॉलीफिनोल पाए जाते हैं।
केटेचिन्स, रेसवेराट्रोल, एंथोसायेनिन तथा क्वेरसिटिन जैसे पॉलीफिनोल, जो अंगूरों में भी पाए जाते हैं, वास्तव में सभी बीमारियों से लड़ने वाले फाइटोन्यूट्रिएंट हैं जो हमारे हृदय के मददगार साबित होते हैं। अंगूरों में उपस्थित पॉलिफिनोल दो प्रकार से एटी आक्सिडेंट की भूमिका निभाते हैं। पहले ये फ्री-रेडिकल्स को निष्क्रिय कर देते हैं फिर आक्सीजन के एक बाय-प्रोडक्ट मेलोडायएल्डीहाइड के बनने की प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। ये सभी स्थितियां हृदय के लिए आदर्श होती हैं। अंगूर के उत्पाद तो फायदेमंद होते ही हैं, अंगूर भी हृदय का बचाव करने में अव्वल हैं। अंगूरों का सेवन, हार्ट अटैक के बाद आश्चर्यजनक लाभ देता है।
परीक्षणों से ज्ञात हुआ कि अंगूरों के सेवन से न केवल रोगी के खून के दबाव में सुधार आता है बल्कि हृदय के खून पम्प करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। यही नहीं हार्ट अटैक के बाद मृत होने वाले हिस्से अथवा जिस हिस्से को नुकसान पहुंचा हो, का क्षेत्र भी काफी घट जाता है। इसी प्रकार अंगूर का जूस एलडीएल के आक्सीकरण को रोकता है और खून के थक्के बनने की प्रवृत्ति को कम करता है। अब जबकि इस छोटे, रसीले और गुच्छों में लगने वाले फल के इतने अधिक फायदे उजागर हो चुके हैं, इसे सिर्फ एक सजावटी टेबल फ्रूट समझना उचित नहीं क्योंकि अंगूर जीभ के स्वाद के साथ-साथ आपके हृदय का भी ख्याल रखते हैं इसलिए इन्हें आसानी से आपके दिल का मददगार कहा जा सकता है।