देश की आबादी में मोटापे का बढ़ना चिंता का सबब

नयी दिल्ली, यूनिसेफ की ओर से राजधानी में आयोजित राष्ट्रीय मीडिया गोलमेज बैठक में भारत में बच्चों समेत हर आयु वर्ग में बढ़ता मोटापा चिंता का विषय बनता जा रहा है।

बैठक में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद – राष्ट्रीय पोषण संस्थान की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया कि, “भारत में मोटापे की बीमारी में सबसे बड़ा (56 प्रतिशत) योगदान अस्वास्थ्यकर आहार है।” यूनिसेफ़ द्वारा हाल ही में जारी की गई चाइल्ड न्यूट्रिशन ग्लोबल रिपोर्ट 2025, के अनुसार पहली बार वैश्विक स्तर पर स्कूली बच्चों और किशोरों के आयु-वर्ग में मोटापे से प्रभावित आबादी का अनुपात अल्प वज़न वाले के अनुपात से ऊपर पहुंच गया है।

यूनिसेफ की इस रिपोर्ट के अनुसार आज दुनिया भर में हर दस में से एक बच्चा, यानी 18.8 करोड़ बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं। एक समय में जिस मोटापे को सम्पन्नता की निशानी माना जाता था, वही अब बीमारी बन चुका है। यह बीमारी अब निम्न और मध्यम-आय वाले देशों में भी तेज़ी से फैल रही है, जिसमें भारत भी शामिल है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में अधिक वज़न और मोटापा 127 प्रतिशत बढ़ा है । किशोर लड़कियों के वर्ग में इसमें 125 प्रतिशत (2.4 प्रतिशत से 5.4 प्रतिशत) और किशोर लड़कों के वर्ग में 288 प्रतिशत (1.7 प्रतिशत से 6.6 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, वयस्कों में, महिलाओं के वर्ग में मोटापे के शिकार लोगों में 91 प्रतिशत (12.6 प्रतिशत से 24.0 प्रतिशत) और पुरुषों में 146 प्रतिशत (9.3 प्रतिशत से 22.9 प्रतिशत) तक मोटापा बढ़ा है, जो एक राष्ट्रव्यापी स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है।

अनुमान है कि 2030 तक भारत में 2.7 करोड़ से अधिक बच्चे और किशोर (5 से 19 वर्ष) मोटापे के साथ जी रहे होंगे और यह वैश्विक स्तर पर इस तरह की आबादी का 11 प्रतिशत होगा।

चाइल्ड न्यूट्रिशन रिपोर्ट के अनुसार फलों, सब्ज़ियों और पारंपरिक आहार की जगह फास्ट फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य एवं पेय पदार्थ का अत्यधिक उपयोग इस समस्या का मूल कारण है।

यूनिसेफ़ इंडिया की चीफ़ न्यूट्रिशन मारी-क्लॉड देज़ीलेट्स ने कहा कि, “मीडिया एक्सपोज़र और अस्वास्थ्यकर भोजन की आसान पहुंच भारत भी बच्चों और किशोरों में अधिक वज़न और मोटापे में तेज बढ़ोतरी उसी वैश्विक रुझान का अनुसरण कर रहा है। जिससे अमेरिका और यूरोप के देश जूझ रहे हैं।”

वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन का अनुमान है कि 2019 में मोटापे से जुड़ी लागत लगभग 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो भारत के जीडीपी का 1 प्रतिशत है। यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो 2060 तक यह लागत 839 बिलियन डॉलर — यानी जीडीपी का 2.5 प्रतिशत तक पहुंच सकती है।

इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, दिल्ली के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विलियम जो, असिस्टेंट प्रोफेसर ने खराब आहार की उच्च लागत पर जोर दिया, उन्होंने कहा कि, “खराब आहार की स्वास्थ्य के लिए कीमत बहुत ज़्यादा है, जो गैर-संचारी रोगों जैसे (डायबिटीज, हृदय संबंधी रोग, उच्च रक्तचाप, कैंसर आदि) की महामारी को बढ़ा रही है।

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