नई दिल्ली, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल ने पाठ्यपुस्तकों की विषयवस्तु के पुनरीक्षण पर जोर दिया है ताकि वे देश का दर्शन प्रतिबिंबित करें। कृष्ण गोपाल ने कहा, हमारे पास संविधान है लेकिन इस पर कभी कोई चर्चा नहीं हुई कि राष्ट्र दर्शन क्या होना चाहिए। हम सभी काम करेंगे लेकिन किसके लिए? देश की नियति क्या होगी? जब देश का भविष्य का ही निर्णय नहीं हुआ है, वही शिक्षा के बारे में भी हुआ।
उन्होंने कहा कि मुद्दे को 50-60 वर्ष तक नजरंदाज किया गया। शिक्षाविदों के एक समूह की ओर से राष्ट्रवाद पर आयोजित एक व्याख्यान में उनके संबोधन के बारे में पूछे गए एक सवाल पर उन्होंने कहा, हमें कहीं न कहीं से शुरूआत करनी होगी। छोटे समूह बनाकर हम देशभर में बैठकें करेंगे और उसके बाद बुद्धिजीवियों को लिखेंगे। जम्मू कश्मीर और बांग्लादेश में सीमा मुद्दों पर उन्होंने उम्मीद जतायी कि कश्मीर मुद्दा सुलझ जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार उस दिशा में काम कर रही है। उन्होंने कहा, कितने बांग्लादेशी देश में घुस गए हैं। आप उन्हें एक दिन में नहीं निकाल सकते। सीमा क्षेत्रों का प्रबंधन उचित रूप से होना चाहिए, न्यायाधिकरण होने चाहिए, पहचान होनी चाहिए..पहली बार आपके पास ऐसी सरकार है जो मतदाताओं का तुष्टिकरण में लिप्त नहीं है। उन्होंने कहा, यदि हमें राष्ट्र की पश्चिमी अवधारणा और भारत के राष्ट्रवाद, राष्ट्र भाव के बीच अंतर करना हो..राष्ट्र की उनकी अवधारणा अतिक्रमण, असहिष्णुता और राज्यों की लूट की है। उनकी प्रवृत्ति वैसी ही बनी हुई है, वे साथ मिलकर आते हैं और आज भी विश्व का शोषण करते हैं। वैश्वीकरण, बहुराष्ट्रीय कंपनियां उदाहरण हैं।