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दलितों में मेरिट नहीं, कहने वालों के मुंह पर, करारा तमाचा है, कल्पित वीरवाल

लखनऊ,  देश की अहम परीक्षा में हाशिए के समुदाय के छात्र के टॉप पर आने की घटना, जातिवादी मानसिकता से ग्रसित भारतीय समाज मे साधारण बात नही है. आईआईटी प्रवेश परीक्षा में, ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी छात्र के पूरे के पूरे नंबर आए हैं और उससे भी बड़ी बात यह है कि यह छात्र दलित समुदाय से है.

आईआईटी प्रवेश परीक्षा में, दलित छात्र ने रच दिया इतिहास

यह घटना उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है, जो ये कहते हैं कि दलितों में मेरिट नहीं है . कल्पित वीरवाल ने दिखा दिया है कि मेरिट किसी जाति, धर्म की मोहताज नही होती है.

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राजस्थान में उदयपुर के रहने वाले दलित छात्र कल्पित वीरवाल ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा में  360 में से 360 नंबर पाए हैं। यह घटना आईआईटी प्रवेश परीक्षा के  इतिहास मे आज तक नही हुयी. कल्पित वीरवाल की मेरिट और आत्मविश्वास का आलम यह है कि उन्होने सामान्य श्रेणी मे रहते हुये टाप किया है.

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 एक समय था जब अखिल भारतीय स्तर की परीक्षाओं मे प्रवेश पाने के लिये ही दलित और पिछड़े वर्ग के छात्र सोंचते तक नही थे. एेसी परीक्षाओं मे किसी दलित, पिछड़े का टाप करना तो कल्पना से परे था. लेकिन पिछले कुछ वर्षों मे यह ट्रेंड बदल रहा है.

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अब दलित , पिछड़े छात्रों ने इन परीक्षाओं मे सवर्णों के वर्चस्व को तोड़ने का कार्य शुरू किया है. दलित  टीना डाबी ने 2015 की आईएएस परीक्षा में टॉप करके इस अभियान की शुरुआत की थी. 2015 मे ही यूपीपीसीएस की परीक्षा मे टाप करके सिद्धार्थ यादव और  महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा में टॉप करके भूषण अहीर ने इस लड़ाई को आगे बढ़ाया है.

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आने वाले वक्त में , यह निश्चित है कि जाति से मेरिट को जोड़ने वाले लोगों की धारणा टूटेगी. पिछड़े और दलित समुदाय के छात्र , सामान्य वर्ग  पर भारी पड़ेंगे और इतिहास रचेंगे.