पुलिस थानों में ही सबसे ज्यादा होता है मानव अधिकार का हनन

police मानव अधिकार के अनुपालन को लेकर सभी थानों पर लंबे-चौड़े बोर्ड टंगे हैं। लेकिन सबसे अधिक मानवाधिकार हनन का खतरा यहीं होता है।

आए दिन पुलिस किसी ने किसी को अपराधियों की तलाश के नाम पर किसी घटना के खुलासे को लेकर आरोपी के बजाय उनके परिजनों को पकड़ कर लाती है और मन माने ढंग से उन्हें फिर छोड़ भी देती है, लेकिन इसकी आवाज न तो पीड़ित उठा पाता है और ना ही कोई संगठन। जिले में कुछ संगठन चलते भी है तो सिर्फ कागजों पर ही सीमित हैं।

मूवमेंट ऑफ राईट संगठन से जुड़े अरविंद मूर्ति कहते हैं कि मानव अधिकार हनन से जुड़े मामलों की देख-रेख के लिए मानव अधिकार आयोग तो है लेकिन आयोग के पास कोई शक्ति खुद की ना होने से वह सिर्फ सफेद हाथी साबित होता होता है। शिकायत करने के बाद मामले आयोग के निर्देश पर दर्ज भी होते हैं तो पुलिस के यहां आकर व ठंडे बस्ते में पड़ जाते हैं। भारत में मानवाधिकार आयोग की स्थापना की जो मंशा थी उसके अनुरूप लोगों का इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।

अभी भी देश में महिला से लेकर पुरुष के साथ मानव अधिकार हनन के मामले में कम नहीं हुए हैं। लेकिन इन मामलों की अनदेखी कहीं पुलिस करती है तो कहीं खुद समाज के ओहदेदार पदों पर बैठे लोग। मानव अधिकार आयोग में भी शिकायत पर कोई त्वरित कार्रवाई का भरोसा नहीं रहता है। इस लिए मानव अधिकार आयोग को शक्तिशाली बनाने के लिए उसे और अधिकार देने की आवश्यकता है।  मानव अधिकार मानव से जुड़ा एक ऐसा सवाल है जिससे समाज में रहने के लिए बराबरी का अधिकार चाहिए।

थानों पर मानव अधिकार के पालन के लिए पुलिस की जवाबदेही तय करनी चाहिए किसी भी आम आदमी एवं शरीफ व्यक्ति को पुलिस से भय नहीं लगना चाहिए यह दायित्व पुलिस का है।  मानव अधिकार से जुड़े संगठन को भी सक्रिय कर उन की जवाबदेही तय करने की आवश्यकता है। इस मामले में पुलिस का कहना है कि मानव अधिकार से जुड़े मामले को लेकर सभी थाना प्रभारियों को क्राइम मीटिंग में सचेत किया जाता है। निर्देश हैं कि जहां किसी थाने में मानव अधिकार हनन की शिकायत आएगी उस पर कार्रवाई की जाएगी ।

Related Articles

Back to top button