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प्रेत कृपा से तुलसीदास को हुये थे रामभक्त हनुमान के दर्शन

चित्रकूट,  मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के पावन चरित्र को जन जन तक पहुंचाने वाले काव्य ग्रंथ श्रीरामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास को प्रेत की कृपा से भगवान हनुमान के दर्शन सुलभ हुये थे और श्री हनुमान ने ही प्रभु राम और मां जानकी को पहचानने में उनकी मदद की थी।

चित्रकूट जिले के राजापुर कस्बे में आत्मा राम नामक गरीब ब्राह्मण के पुत्र के रूप में संवत 1554 में जन्मे तुलसीदास के बारे में तमाम किवदंतियां प्रचलित है। कहा जाता है कि राजापुर में तुलसी जब शौच को जाते तो लौटते समय लोटे में बचा पानी रास्ते में पड़ने वाले एक बबूल के पेड़े में डाल देते थे। इस पेड़े पर एक जिन्न रहता था। तुलसी द्वारा रोज जल डालने से वह प्रसन्न हो गया और एक दिन तुलसी के सामने प्रकट हो कर उनसे उनकी मनोकामना पूछी। तुलसी ने राम के दर्शन की लालसा बताई तो जिन्न ने कहा की राम से मिलने के लिए हनुमान के दर्शन जरूरी हैं।
तुलसी दास ने पूछा कि हनुमान जी के दर्शन कैसे होगे और वह उन्हे कैसे पहचानेंगे। उन दिनों राजापुर में रामकथा चल रही थी तब जिन्न ने बताया कि जो व्यक्ति राम कथा में सबसे पहले आये और सबसे बाद में जाये सबसे पीछे बैठे और उसके शरीर में कोढ़ हो, बस उनके पैर पकड़ लेना, वो ही हनुमान हैं। तुलसी ने ऐसा ही किया। कोढ़ी के बार बार मना करने के बाद भी जब तुलसी ने उनके पैर नहीं छोड़े उनकी दृढ़ता देख हनुमान प्रगट हो गए |
उन्होंने तुलसी को चित्रकूट जाकर वहीं निवास करने को कहा। राम से मिलने की आस में तुलसी एक बार फिर चित्रकूट आ गए और अपने ईष्ट के दर्शन की प्रतीक्षा करने लगे। तुलसी चित्रकूट में अपनी कुटिया में रहते मन्दाकिनी तट में बैठ प्रवचन करते और राम के इन्तजार में समय बिताने लगे। एक दिन जब तुलसीदास चित्रकूट में मन्दाकिनी नदी के किनारे बने चबूतरे में बैठे प्रवचन कर रहे थे तब भगवान् राम और लक्ष्मण वहां से गुजरे लेकिन तुलसी उन्हें पहचान नहीं पाए। उसी रात तुलसी को सपने में हनुमान ने दर्शन दिया और उनसे इच्छा पूरी होने के बारे में पूंछा तो तुलसी ने कहा कि उन्हें तो किसी के दर्शन नहीं हुए।
हनुमान ने तुलसी से कुछ दिन और इंतजार करने को कहा। थोड़े दिनों बाद जब तुलसी एक दिन उसी चबूतरे में बैठे चन्दन घिस कर श्रद्धालुओ को लगा रहे थे कि तभी भगवान राम लक्ष्मण और सीता सहित वहां आये और तुलसी दास से चन्दन लगवाने लगे। तुलसी कहीं फिर न चूक जाएँ इसलिए हनुमान तोते का रूप रख बोले : “ चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़ | तुलसी दास चन्दन घिसे तिलक देत रघुबीर ||”
इस तरह हनुमान जी की कृपा से तुलसी दास को चित्रकूट में राम लक्ष्मण सीता के दर्शन हुए। इच्छा पूरी होने के बाद तुलसीदास फिर तीर्थयात्रा पर चल पड़े | संवत 1631 में 70 वर्ष की उम्र में तुलसी दास ने हनुमान की प्रेरणा से राम के चरित्र को दुनिया के सामने रखने के लिए एक ग्रन्थ लिखने का निश्चय किया और दो वर्ष सात माह और 26 दिनों की मेहनत के बाद राम चरित मानस के रूप में अगहन शुक्ल सप्तमी संवत 1633 में दुनिया के सामने आई। तुलसी के इस ग्रन्थ ने राम को घर घर पंहुंचा दिया। काशी में राम चरित मानस की रचना पूरी करने के बाद तुलसी अपनी जन्म भूमि राजापुर लौट आये और यहीं रहकर राम का गुणगान करने लगे।