मुंबई, मुंबई में हुए बीएमसी चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है और इस बात पर अभी भी रहस्य बना हुआ है कि बीएमसी की सत्ता पर कौन काबिज होगा। शिवसेना के उम्मीदवार को मुंबई का मेयर बनाने के लिए समर्थन की पेशकश की चर्चा के बाद कांग्रेस ने अंततः ऐसी किसी संभावना से इन्कार कर दिया है।
हालांकि यह अटकलें जारी हैं कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद ही कांग्रेस अपने पत्ते खोलेगी। कांग्रेस के मुंबई ईकाई के अध्यक्ष संजय निरुपम ने शनिवार को अटकलों पर विराम लगाते हुए कहा कि बृहन्नमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) की सत्ता पर काबिज होने में वह शिवसेना की मदद नहीं करेगी। मेयर चुनाव के लिए समान सोच वाली पार्टियों के साथ एक साझा उम्मीदवार लाने की जरूरत है। उन्होंने नवनिर्वाचित पार्षदों की बैठक में कहा कि कांग्रेस यह भी मानती है कि अलग हो चुके भाजपा और शिवसेना बीएमसी की सत्ता पर आपना दावा ठोंकते हुए फिर एक साथ आ सकते हैं। कांग्रेस मेयर के पद समेत बीएमसी की सत्ता के लिए शिवसेना का समर्थन नहीं करेगी। गौरतलब है कि इससे पहले ऐसी भी खबरें आ रही थी कि बीएमसी में सत्ता पाने में बहुमत से दूर रही शिवसेना को कांग्रेस समर्थन दे सकती है। कुछ कांग्रेस नेता इसका समर्थन कर रहे थे, लेकिन खुलकर सामने नहीं आ रहे थे। हालांकि संजय निरुपम के पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और पार्टी के पूर्व नगर प्रमुख गुरुदास कामत ने शनिवार को इस फैसले पर कड़ा एतराज जताते हुए कहा कि वह बीएमसी में शिवसेना को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देने या उससे किसी भी तरह के गठजोड़ के विचार के भी खिलाफ हैं। उन्होंने बताया कि इस बारे में अपनी राय से उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी अवगत करा दिया है। बीएमसी में मिला है खंडित जनादेश: भाजपा-शिवसेना के बीच कड़वाहट के बाद अलग-अलग चुनाव लड़ने के चलते बीएमसी में खंडित जनादेश मिला है। लिहाजा, शिवसेना की अपने उम्मीदवार के लिए मदद करके कांग्रेस भाजपा और शिवसेना के बीच पड़ी खाई को और चौड़ा करना चाहती है। इस सोच के साथ आगे बढ़ने वाले कांग्रेस के रणनीतिकारों का यह भी मानना है कि इस कदम से राज्य में देवेंद्र फड़नवीस की सरकार भी गहरे संकट में पड़ सकती है। चूंकि कांग्रेस के साथ आने पर शिवसेना पर भाजपा से गठबंधन से तोड़ने का भी दबाव डाला जा सकता है। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ने विगत शुक्रवार को एक सुरक्षित चाल चलते हुए शिवसेना को संकेत दिया कि पहले वह भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार से अलग हो जाए। उसके बाद कांग्रेस पार्टी शिवसेना की मदद करेगी। हालांकि महाराष्ट्र के निकाय चुनाव से पहले कांग्रेस के मुंबई प्रमुख संजय निरुपम के साथ तलवारें भांज चुके कामत का कहना है कि उनकी पार्टी ने शिवसेना और भाजपा दोनों के ही खिलाफ चुनाव लड़ा है। ऐसे में उनके साथ जुड़ने का प्रयास भारी पड़ सकता है। जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती है कांग्रेस: 227 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में 31 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही कांग्रेस जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहती है। वह पांच राज्यों में जारी विधानसभा चुनावों के खत्म होने के बाद ही कोई फैसला लेना चाहती है। कांग्रेस एक बार फिर धर्मनिरपेक्षता का नारा बुलंद करते हुए अपनी धुर विरोधी भाजपा को पटखनी देना चाहती है। अपनी इसी सोच पर कायम रहते हुए प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम छिपाने की शर्त पर कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि बीएमसी चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी शिवसेना दरअसल भाजपा से कम बुरी पार्टी है। उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में जारी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस अभी खुलकर इस मामले पर कोई चर्चा या बयान नहीं देना चाहती। ताकि इन चुनावों का उस पर असर न पड़े। शिवसेना को 87 सीटें: बीएमसी में गुरुवार की मतगणना के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनी शिवसेना की अब कुल 87 सीटें हो गई हैं। दरअसल उसके तीन बागी नेता जो निर्दलीय चुनाव जीते थे, अब शिवसेना में वापस लौट आए हैं। इसलिए उद्धव ठाकरे को बीएमसी में अपनी सरकार बनाने के लिए 114 सीटों के जादुई आंकड़े तक पहुंचने में कुछ मदद मिली है।