नई दिल्ली, माकपा प्रमुख सीताराम येचुरी ने कहा है कि राजग सरकार की नीतियों के खिलाफ लोगों के असंतोष को दिशा देकर 2019 के आम चुनावों में भाजपा को चुनौती देने के वास्ते एक राष्ट्रीय गठबंधन बनाए जाने की आवश्यकता है।
येचुरी ने कहा, हम नीतियों और कार्यक्रमों के आधार पर फैसला करेंगे क्योंकि केवल एकसाथ आ जाने का मतलब ही (विपक्ष की) एकजुटता नहीं है, यह केवल अंकगणित नहीं है। और मेरा मानना है कि 2019 में एक वैकल्पिक सरकार, एक धर्मनिरपेक्ष सरकार होनी चाहिए। उन्होंने कहा, हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम किसी से हाथ मिलाएंगे। मैं जो बात उठाना चाहता हूं, वह यह है कि हम सांप्रदायिक शक्तियों की सरकार के खिलाफ एक वैकल्पिक सरकार बनाने पर काम करेंगे। माकपा महासचिव यहां प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पत्रकारों के साथ बातचीत में इन सवालों का जवाब दे रहे थे कि वह 2019 के लोकसभा चुनाव तक उभरते राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य को किस तरह देखते हैं।
हाल में बिहार के मुख्यमंत्री एवं जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार से मुलाकात करने वाले येचुरी ने कहा कि हालांकि बिहार में भाजपा को सत्ता से दूर करने वाले महागठबंधन प्रयोग पर बातचीत हुई, लेकिन इसका कोई पहले से तय उत्तर नहीं हो सकता। इस बात पर जोर देते हुए कि इसमें वाम दल अपने दम पर निर्णायक भूमिका निभाएंगे, येचुरी ने कहा, इसलिए, हमने उनसे (नीतीश) कहा कि उत्तर भी विगत में है जो हम देख चुके हैं, 1996 की स्थिति। वह भी एक उत्तर है। हमारा इतिहास आपको बताएगा। वर्ष 1996 में चुनावों के बाद जनता दल, समाजवादी पार्टी, द्रमुक, तेदेपा, अगप, ऑल इंडिया कांग्रेस (तिवारी), चार वाम दलों, तमिल मानिला कांग्रेस, नेशनल कान्फ्रेंस और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी ने 13 दलों की संयुक्त मोर्चा सरकार बनाई थी। माकपा नेता ने कहा, विमुद्रीकरण सहित मोदी सरकार की नीतियों को लेकर पहले से ही काफी असंतोष है। हमें देखना होगा कि इस असंतोष का फायदा कैसे उठाया जाए जिससे कि एक वैकल्पिक धर्मनिरपेक्ष गठबंधन का उभरना सुनिश्चित हो सके। उन्होंने रेखांकित किया कि भाजपा इस समय केवल 31 प्रतिशत मतों के साथ सत्ता में है। इसके गठबंधन सहयोगियों को मिले मतों को मिलाकर आंकड़ा 37 प्रतिशत से थोड़ा ऊपर जाता है। इसका मतलब है कि 62 से 63 प्रतिशत लोगों ने उनके खिलाफ वोट दिया है।
भाजपा को बाहर रखने के लिए कांग्रेस या तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन करने के बारे में पूछे जाने पर येचुरी ने कहा कि चुनावी राजनीति में पहले से तय कोई उत्तर उपलब्ध नहीं है और दलों को चुनावों में लोगों द्वारा दिए गए परिणाम के आधार पर जवाब देना होता है। उन्होंने कहा कि यह दलों की नीतियों और कार्यक्रमों तथा किसी विशेष समय में मौजूदा स्थिति पर भी निर्भर करता है। येचुरी ने कहा, हमें देखना होगा कि किस तरह की स्थिति होती है। हमें स्थिति के आधार पर ही काम करना होगा। लेकिन 2019 तक गंगा में काफी पानी बह चुका होगा। उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों को जन विरोधी करार देते हुए उस पर संसद के महत्व को कम करने का आरोप लगाया। येचुरी ने संसदीय लोकतंत्र के प्रति प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाया और उन पर राज्यसभा (जहां राजग अल्पमत में है) की अनदेखी करने के लिए व्यवस्था से छेड़छाड का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार हर दूसरे विधेयक को धन विधेयक के रूप में लाती है जिससे उसे उच्च सदन से मंजूरी की आवश्यकता ना पड़े। माकपा नेता को लगता है कि यह चलन संसदीय विधियों के साथ खिलवाड़ है।