नई दिल्ली, संसद की एक समिति ने गांवों को विद्युतीकृत घोषित करने के मानदंडों पर सवाल खड़ा करते हुए मात्र 10 प्रतिशत की बजाय शत-प्रतिशत घरों में बिजली पहुंचने पर ही गांव को पूरी तरह विद्युतीकृत घोषित किये जाने की सिफारिश की है।
ऊर्जा मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा प्रावधानों के तहत यदि किसी गांव में वितरण ट्रांसफार्मर और बिजली की लाइन पहुंच जाती है तथा स्कूल,पंचायत कार्यालय,स्वास्थ्य एवं सामुदायिक केंद्रों जैसे सार्वजनिक स्थानों और कुल घरों में से 10 प्रतिशत में बिजली पहुंच जाती है तो उसे पूरी तरह विद्युतीकृत घोषित कर दिया जाता है जबकि गांव में आंशिक रूप से ही बिजली पहुंचती है। इस दोषपूर्ण मानदंड के कारण आंशिक रूप से विद्युतीकृत गांवों को बाद में पूरी तरह विद्युतीकृत करने की जरूरत पड़ रही है।
समिति की यह रिपोर्ट संसद के बीते सत्र में पेश की गयी थी। समिति का कहना है कि देश के अधिकतर छोटे गांवों मे पंचायत,स्कूल और डिस्पेंसरी जैसे सार्वजनिक स्थान नहीं हैं। इसलिए वे विद्युतीकृत की इस परिभाषा के दायरे से बाहर हो गये। दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत सभी गांवों के सभी घरों में बिजली पहुंचायी जानी है। इस तरह एक ही गांव को विद्युतीकृत करने के लिए दो बार कवायद करनी पड़ रही है।
दोषपूर्ण प्रक्रिया के कारण पिछले तीन वर्षों में आंशिक रूप से विद्युतीकृत किये गये सात लाख 60हजार 967 गावों में से चार लाख 14 हजार 487 गांवों में सघन बिजली पहुंचाने की जरूरत पड़ी। अप्रैल 2015 तक देश के 18452 गांव में बिजली नहीं पहुंच पायी थी। इनमें से 11931 में जनवरी 2017 तक बिजली पहुंचायी गयी शेष में मई 2018 तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। समिति ने विद्युतीकृत गांवों के आंकड़ों की दोबारा जांच करने की भी सिफरिश की है।