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मायावती और अखिलेश का साथ, कर सकता है चमत्कार

लखनऊ,  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चल रही बयार को उत्तर प्रदेश में रोकने के लिए मायावती और अखिलेश यादव के एक मंच पर आने की कोशिश भारतीय राजनीति मे बड़ा परिवर्तन ला सकती है।

डा. भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर 14 अप्रैल को सुश्री मायावती ने गैर भाजपा दलों से हाथ मिलाने का संकेत दिया था। उन्होंने कहा था कि बसपा गैर भाजपा दलों के साथ मिलकर लोकतंत्र को बचाने की लडाई लडने को तैयार है और बसपा को भाजपा से लडने के लिए दूसरे दलों से हाथ मिलाने में अब कोई गुरेज नहीं है।  मायावती के इस बयान के दूसरे दिन ही अखिलेश यादव ने भी महागठबंधन बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होनें बताया कि इस बाबत वह राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार, बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और बंगाल की मुख्यमंत्री तथा तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी से मिल चुके हैं, लेकिन उन्होंने सुश्री मायावती से मुलाकात के बारे में कुछ नहीं कहा।

30 अक्टूबर और दो नवम्बर 1990 को अयोध्या में गोली चलाये जाने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक साख गिरी थी। इससे उबरने के लिए उन्होंने बसपा संस्थापक कांशीराम से हाथ मिलाया और 1993 का विधानसभा चुनाव मिलकर लडा। सपा बसपा गठबंधन की सरकार बनी और मुलायम सिंह यादव फिर मुख्यमंत्री बन गये। विधानसभा के उस चुनाव में दलितों, पिछडों और मुसलमानों ने एकजुट होकर गठबंधन को वोट दिया था, इसलिए अयोध्या का मन्दिर-मस्जिद विवाद उरेज पर रहने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गयी थी।

उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा को 39 दशमलव सात, बसपा को 22 दशमलव दो, सपा को 21 दशमलव आठ और कांग्रेस को छह दशमलव दो प्रतिशत वोट मिले हैं। तीनों दलों को मिले वोटों का प्रतिशत 50 दशमलव दो है जो भाजपा के मतों से करीब 11 फीसदी अधिक है। हारने के बावजूद उत्तर प्रदेश में सपा को वोट काफी मिले हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा की 160 से अधिक ऐसी सीटें हैं जहां सपा दूसरे नम्बर पर रही है।

सपा और बसपा मिलकर चुनाव लडते हैं तो 1993 की स्थिति फिर पैदा हो सकती है। दोनों 1993 की तरह एक मंच पर आते हैं तो पिछडों और दलितों का सम्मानजनक गठबंधन बनेगा। मुस्लिम भी साथ आयेंगे और यह गठबंधन भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में आ सकता है।

मोदी की आंधी को थामने के लिए कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को एक मंच पर आ जाना चाहिए। भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस नेतृत्व को महागठबन्धन की पहल करनी चाहिए और इसके लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा अध्यक्ष मायावती, रालोद अध्यक्ष चौ. अजित सिंह समेत अन्य दलों को भी एक मंच पर लाकर चुनाव लडने की रणनीति बनानी चाहिए। निश्चय ही यह महागठबंधन भारतीय राजनीति मे एक बड़ा चमत्कार कर सकता है।