चंडीगढ़, पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के अब नई पार्टी गठित करने के ऐलान से कांग्रेस जहां सकते में है वहीं राज्य में आगामी समय में राजनीतिक हलचल तेज होने और समीकरण बदलने के आसार प्रबल नजर आ रहे हैं।
कैप्टन सिंह हालांकि अभी भी कांग्रेस में ही हैं और उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता नहीं छोड़ी है। लेकिन उनके नई पार्टी बनाने के ऐलान के बाद राज्य विधानसभा के अगले वर्ष के शुरू में होने वाले चुनावों में प्रदेश कांग्रेस के लिये बड़ी मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं। उसके कई बड़े नेता और विधायक कैप्टन खेमे में जा सकते हैं और ऐसे में नज़दीक आ रहे विधानसभा चुनावों में उसकी स्थिति और कमजोर हो सकती है। प्रदेश कांग्रेस इस समय जबरदस्त गुटबाजी के दौर से गुजर रही है। अमरिंदर को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिये मजबूर करने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की नये मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ भी खटपट शुरू हो गई है। दोनों के बीच रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं। श्री सिद्धू ने जिन मुद्दों को लेकर अमरिंदर को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया उन्हीं पर वह अब श्री चन्नी को भी घेर रहे हैं। सरकार के कामकाज में सिद्धू की दखलंदाजी उनके निर्देशों पर काम करें वहीं श्री चन्नी ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार के कामकाज में वह संगठन का हस्तक्षेप कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। उनका स्पष्ट तौर पर ईशारा सिद्धू की ओर है।
वहीं अमरिंदर के नई पार्टी का गठन के ऐलान के बाद उन्हें पार्टी के अनेक केंद्रीय नेताओं का समर्थन मिल सकता है। इनमें अनेक वे नेता भी हैं जिन्होंने कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से हटाने के तौर तरीके को लेकर हाईकमान पर सीधे हमला बोला था। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद अमरिंदर ने मीडिया से बातचीत में कांग्रेस नेतृत्च पर उन्हें अपमानित करने का आरोप लगाया था। उन्होंने बाद में कांग्रेस को उसके इस फैसले के लिसे सबक सिखाने बात कही थी और यह भी कहा था कि वह सिद्धू को कभी भी राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। लगभग एक पखवाड़े तक चुप्पी साधे रखने के बाद अमरिंदर ने अब अपने पत्ते खोलते हुये प्रदेश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है।
वहीं श्री चन्नी के समक्ष पार्टी के घोषणापत्र को पूरा करने और गुटबाजी से बुरी तरह जूझ रही पार्टी को मजबूती के साथ विधानसभा चुनावों में उतारने की बड़ी चुनौती है। लेकिन सरकार के कामकाज में प्रदेश संगठन की ओर से दखलंदाजी उन्हें रास नहीं आ रही है तथा इस सम्बंध में वह हाईकमान से शिकायत भी कर चुके हैं। सूत्रों के अनुसार उन्होंने सिद्धू के सरकार के बढ़ते हस्तक्षेप को लेकर पार्टी हाईकमान को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश तक कर दी है। लेकिन इसके पीछे बड़ा कारण श्री चन्नी को मजबूती से पार्टी को विधानसभा चुनावों में उतारने की चुनौती माना जा रहा है। इसके बावजूद अगर श्री चन्नी भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देते हैं तो कांग्रेस का राज्य में राजनीतिक पतन निश्चित है। वहीं कांग्रेस के लिये प्रदेश की राजनीति में अमरिंदर एक बड़ा चेहरा थे और उनकी जगह फिलहाल पार्टी के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो विधानसभा चुनानों में उसकी नैय्या पार लगा सके।
वहीं सिद्धू के प्रदेशाध्यक्ष पद इस्तीफा प्रकरण और प्रदेश सरकार और पार्टी को संकट में डालने से भी हाईकमान अप्रसन्न है। सिद्धू के लिये उनका यह फैसला आगे कुआं और पीछे खाई साबित बन गया और न उगलते और न निगलते बन रहा था। एक समय तो पार्टी में उनसे निजात पाने और विकल्प तलाशने की सुगबुगाहट भी तेज होने लगी थी। लेकिन समय की नज़ाकत को भांपते हुये तथा आलाकमान का उनके प्रति रूख नरम करने के लिये वह सरकार के मंत्रियों, विधायकों और बड़े नेताओं को लेकर लखीमपुर खीरी घटना का विरोध दर्ज कराने उत्तर प्रदेश पहुंच गये और राजनीतिक तौर पर उन्हें हुये नुकसान की कुछ हद तक भरपाई करने का प्रयास किया। कुलमिला कर सरकार और पार्टी संगठन में बढ़ते टकराव से कांग्रेस की विधानसभा चुनावों की डगर आसार नहीं दिखाई देती।
वहीं अमरिंदर आगे की रणनीति को अंज़ाम देने के लिये दिल्ली पहुंच चुके हैं और उनकी वहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्षष नेताओं और केंद्रीय नेताओं से मुलाकात सम्भावित है। वह विधानसभा चुनावों के लिये भाजपा से भी गठजोड़ कर सकते हैं। इसके अलावा वह प्रदेश में शिरोमणि अकाली दल(शिअद) और अन्य राजनीतिक दलों से अलग हुये बड़े नेताओं को भी लामबंद कर सकते हैं। देखना यह है कि आने वाले समय में वह अपने रणनीति को किस तरह अंज़ाम में पहुंचाते हैं और इसमें उन्हें कितनी सफलता मिलती है।