नई दिल्ली , ‘दंगों की वजह से मुस्लिमों में डर की भावना है। सरकार को इस डर को दूर करना चाहिए और केंद्रीय गृह मंत्रालय को बताना चाहिए कि देश के विभिन्न हिस्सों में अब तक हुई सभी छोटी या बड़ी सांप्रदायिक घटनाओं और दंगों के संबंध में क्या कदम उठाए गए हैं।’ यह बात प्रथम विश्व सूफी मंच की बैठक के समापन पर अखिल भारतीय उलेमा एवं मशेख बोर्ड (एआईयूएमबी) ने जारी 25 सूत्री घोषणा पत्र मे कही।
चार दिवसीय विश्व सूफी मंच का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया और इसमें 22 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। यह एआईयूएमबी के 25 सूत्री एजेंडा जारी करने के साथ समाप्त हुआ।
घोषणा पत्र मे प्रधानमंत्री मोदी से ‘ऐतिहासिक भूलों को सुधारने’ और सूफी धर्म की जगह अतिवादी विचारधारा के ले लेने की प्रवृत्ति से निपटने के लिए कदम समेत उठाने की समुदाय की मांगों पर ध्यान देने को कहा। अशरफ ने इस बात को लेकर चिंता जताई कि भारत में सूफी धर्म को कमजोर करने और अतिवादी और चरमपंथी विचारधाराओं के उनकी जगह लेने के लिए ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने सरकार से इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की।
घोषणा पत्र मे कहा कि विगत कुछ दशकों में भारत में सूफी मत को कमजोर करने और अतिवादी और चरमपंथी विचारधारा के उसकी जगह लेने के ठोस प्रयास किए गए हैं—यह परिघटना न सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लिए बल्कि देश के लिए भी खतरनाक है। हम प्रधानमंत्री से इन ऐतिहासिक भूलों को दूर करने का अनुरोध करते हैं। महत्वपूर्ण पदों पर मुस्लिम आबादी के पर्याप्त प्रतिनिधित्व का अभाव है और उन्होंने सरकार से इसपर गौर करने को कहा। संगठन ने संप्रदायवाद के हर स्वरूप की निंदा की और इसे भारत की एकजुटता के लिए खतरा बताया।
संगठन ने कहा, ‘हम दुनिया की सभी सरकारों और खासतौर पर भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह सूफीधर्म को पुनर्जीवित करने के लिए पूरा सहयोग दें।’