मोदी सरकार ने, सद्भावना दिवस से हटाया, राजीव गांधी का नाम, कांग्रेस नाराज
February 4, 2017
नई दिल्ली, कांग्रेस ने 20 अगस्त को सद्भावना दिवस के आयोजन से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम हटाए जाने पर जहां आज आपत्ति जताई वहीं सत्ता पक्ष ने कहा कि मोदी सरकार के दौरान योजनाओं का नाम केवल एक ही परिवार पर रखे जाने का सिलसिला नहीं चलेगा। राज्यसभा में आज कांग्रेस की छाया वर्मा ने शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि हर साल 20 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत राजीव गांधी के जन्मदिन पर सद्भावना दिवस मनाया जाता है लेकिन वर्ष 2015 से सद्भावना दिवस के पोस्टरों, बैनरों आदि से राजीव गांधी का नाम और उनकी तस्वीर हटा दी गई है। छाया ने कहा कि अगर राजीव का नाम जानबूझकर हटाया गया है तो यह एक षड्यंत्र है। उनका समर्थन करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा कि राजीव गांधी एक शहीद प्रधानमंत्री थे और देश शहीदों के प्रति कृतज्ञ रहता है।
राजीव के जन्मदिन को सद्भावना दिवस घोषित किया गया है लेकिन अब उनका नाम ही इस आयोजन से हटा दिया गया। शर्मा ने कहा यह उस महान प्रधानमंत्री की स्मृति का अपमान है जो शहीद हुए हैं। सरकार को स्पष्टीकरण देना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व प्रधानमंत्रियों के नाम हटाए जा रहे हैं और यह उनका अपमान है। वर्तमान सरकार योजनाओं और कार्यक्रमों का नाम उन लोगों के नामों पर रख रही है जिन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया। इस पर संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि शर्मा को अगर ऐसा लगता है कि देश के संसाधनों, सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों पर केवल एक ही पार्टी और एक ही परिवार का अधिकार है तो यह संभव नहीं है।
सदन में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वर्तमान सरकार ने पिछले ढाई साल में योजनाओं के नाम बदले हैं। अब योजनाओं के नाम उन लोगों के नामों पर रखे जा रहे हैं जो लोग सत्ताधारी दल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे हैं। शून्यकाल में ही तृणमूल कांग्रेस के रीताव्रता बनर्जी ने अंडमान सेलुलर जेल का मुद्दा उठाते हुए कहा कि स्वतंत्रता संग्राम की गवाह इस जेल को भारतीय पुरातत्व सर्वे के संरक्षण में दिया जाना चाहिए ताकि इसका समुचित रख रखाव हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि इस जेल में प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के कैदियों को रखा गया था लेकिन केवल प्रथम विश्व युद्ध के कैदियों के ही दस्तावेज उपलब्ध है। यहां तक कि चटगांव युवा विद्रोह के दस्तावेज और इस विद्रोह में हिस्सा लेने वाले युवा स्वतंत्रता सेनानियों के दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं हैं। इन युवा स्वतंत्रता सेनानियों की उम्र 18 साल से कम थी और सबसे कम उम्र का सेनानी मात्र 13 साल का था। बनर्जी ने इन सेनानियों के नाम इस जेल के शिलापट्ट पर लिखे जाने की मांग भी की।