फतेहपुर, सदर विधानसभा में गठबंधन की मुसीबतें लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। इस विधानसभा के मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के हाथ से सपा की साइकिल थामने से कतरा रहे हैं। भाजपा का दामन उनसे पहले से ही बहुत दूर है। हाथी की सवारी भी पूरी तरह से नहीं भा रही है। ऐसे में इस वर्ग के मतदाताओं के सामने लगातार असमंजस बना हुआ है। ठीक ऐसा ही कुछ हाल सवर्ण मतदाताओं का है। वह कमल तो खिलाने का मन बनाते हैं, लेकिन प्रत्याशी की बात आते ही तरह-तरह के सवालों के साथ भाजपा विधायक का गुजरा समय उनकी आंखों के सामने होता है।
सदर विधान सभा में जातिगत आंकडों पर नजर दौड़ाई जाती है तो सर्वाधिक मतदाता पिछड़े वर्ग के हैं। इसके बाद मुस्लिम मतों का नम्बर आता है। सवर्ण मतदाताओं में क्षत्रिय-ब्राह्मण मतदाताओं के मतदान का प्रतिशत हर चुनाव में कम ही रहा है। अगर इस चुनाव में भी उनके मतदान का इतिहास दोहराता है तो उनके मतदान का बहुत बड़ा फर्क तो नहीं होगा, लेकिन इस विधानसभा राजनैतिक वातावरण में यह दोनों बिरादरी बहुतायत में जिसकी ओर झुकाव लेती है तो उसकी मंजिल लगभग आसान मानी जाती है, लेकिन इस वर्ग का भी वही हाल है। क्षत्रिय-ब्राह्मण भी सदर विधान सभा में असमंजस के दौर से गुजर रहे हैं। वह कांग्रेस के हाथ से साइकिल पकड़ने की सोच तो रखते हैं, लेकिन इसमें उनको बहुत कुछ उम्मीदें नहीं हैं। हाथी की सवारी एक वर्ग को तो रास आ सकती है, लेकिन दूसरा वर्ग हाथी की सवारी करना तो दूर की बात रही उसकी सोच भी नहीं रखता है। ऐसे में फिलहाल राजनीतिक कुरूक्षेत्र के परिणाम को लेकर कुछ कह पाना राजनीतिक पंडितों को भी परेशान कर रहा है।