नई दिल्ली, आम आदमी पार्टी के पूर्व सदस्य और स्वराज इण्डिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने ट्वीट कर न केवल क्रिकेटर जयंत यादव को बधाई दी बल्कि यह भी बताया कि वह उनके चाचा हैं.इससे पहले किसी को भी यह पता नहीं पता था कि जयंत यादव का किसी राजनेता से संबंध है और योगेंद्र यादव उनके चाचा लगते हैं.
योगेंद्र यादव ने लिखा, ‘एक गौरवान्वित चाचा के रूप में जयंत यादव की पहली टेस्ट सेंचुरी का मैंने जश्न मनाया. करियर की पहली टेस्ट सेंचुरी, वह भी 9वें नंबर पहली… मजा आ गया.’
जयंत यादव ने रविवार को विराट कोहली के साथ 241 रनों की साझेदारी की थी और 204 गेंदो में 104 रनों की पारी खेली थी. उन्होंने 15 चौके लगाए थे. इसके साथ ही वह नौवें नंबर पर शतक बनाने वाले भारत के पहले बल्लेबाज बन गए. उनसे पहले फारुख इंजीनियर ने इस क्रम पर सबसे अधिक 90 रन बनाए थे. जयंत मूलतः हरियाणा के रहने वाले हैं.
योगेंद्र के ट्वीट करत ही ट्विटर उनके फैन्स और क्रिकेट फैन्स दोनों ने सवाल करने शुरू कर दिए. जब कई प्रशंसकों ने सवाल किए, तो योगेंद्र यादव ने जयंत यादव से रिश्ते को स्पष्ट किया. उन्होंने फेसबुक पर रिश्ते का पूरा खुलासा किया. योगेन्द्र यादव ने लिखा कि जयंत यादव, मेरी (सगी) मौसी के सगे पोते हैं. बचपन से ही उन्हें लोग बोलू नाम से बुलाते हैं. आशा करता हूं कि यह जानकारी पर्याप्त होगी.
देखिये फेसबुक पर योगेन्द्र यादव ने क्या लिखा –
जयंत यादव उर्फ़ बोलु
जिस बच्चे को आपने गोद में खिलाया हो, वो एक दिन भारत की टेस्ट कैप पहन कर टीवी पर खड़ा हो तो आपको कैसा लगेगा? सीना चौड़ा हो जायेगा और मन से दुआ निकलेगी — बेटा आगे बढ़ो, देश का नाम रौशन करो। और अगर वो कुछ जलवा कर दिखाए तो कितनी ख़ुशी होगी? आप कल्पना कीजिये।
यही मेरे और मेरे परिवार के साथ पिछले कुछ दिनों से हो रहा है। जयंत यादव मेरा भतीजा है। मेरी अपनी और इकलौती मौसी का पोता, यानि मेरे मौसेरे भाई जय सिंह का बेटा। बचपन और जवानी में मैंने न जाने कितना समय मौसी के जनकपुरी वाले फ्लैट में बिताया है। हमारे परिवार में सिर्फ जय सिंह को ही खेल में प्रतिभा थी। मुझे क्रिकेट, हॉकी और एथलेटिक्स में बहुत रूचि रही है (एक जमाने में मैंने आकाशवाणी के लिए हॉकी कमेंटरी भी की थी) , लेकिन खेलने में मैं एकदम फिसड्डी था। जय सिंह की उपलब्धियों से अपनी संतुष्टि कर लेता था। मौसा जी को उसका खेलना बिलकुल पसंद न था और मैं अक्सर उनके सामने जय सिंह की वकालत करता था। अपनी टेलेंट और मेहनत के दम पर बांये हाथ के स्पिनर जय सिंह ने इंडियन एयरलाइन्स की रणजी टीम में जगह बनाई और फिर इंडियन एयरलाइन्स की टीम के मेनेजर की भूमिका में न जाने कितने खिलाडियों का भला किया।
जयंत उर्फ़ “बोलु” (घर में हम सब उसे इसी नाम से बुलाते हैं) को खेल अपने जीन्स में मिला। जन्म देने वाली माँ लक्ष्मी को एक ऐयरक्रेश में खोने (इंडियन एयरलाइन्स के विमान की मंगलोर दुर्घटना में यात्रियों को बचाते हुए वो शहीद हुई थी) के बाद जयंत और छोटी बहन गार्गी को एक नयी माँ मिली — ज्योति, जो खुद तैराक रही है। उनके स्नेह और संस्कार से जयंत वो बना जो आज सबको दिखता है। मैंने जयंत की क्रिकेट उतना नज़दीक से नहीं देखी जितनी उसके पापा की। मेरा बेटा हम सबको “बोलु भैया” की उपलब्धियों के बारे में बताता रहता था। न जयंत की उपलब्धि में मेरा कोई हाथ है, न मेरी राजनीती में जयंत की कोई दिलचस्पी रही है। बस एक चाचा की नज़र से इस बच्चे को फलते फूलते देखता रहा हूँ, और इसके अनुशासन व सौम्यता का कायल रहा हूँ।पिछले कुछ साल से हम सब उस दिन का इंतज़ार कर रहे थे जब जयंत को भारत की टीम में खेलने का गौरव हासिल होगा। आखिर वो दिन आ गया, और बाकी कहानी तो हर कोई जानता है।
जाहिर है जयंत की उपलब्धि पर ख़ुशी है, नाज़ है। ख़ुशी सिर्फ इसलिए नहीं कि उसने सेंचुरी मारी, पर इसलिए कि उसकी सेंचुरी टीम इंडिया के काम आई, नाज़ सिर्फ इसलिए नहीं कि वो अच्छा खेला बल्कि इसलिए कि उसे विराट कोहली जैसे शानदार बल्लेबाज और आश्विन जैसे महान गेंदबाज का साथ मिला, गर्व सिर्फ इसलिए नहीं कि उसने बड़ी उपलब्धि हासिल की बल्कि इसलिए कि उस क्षण में जयंत ने अपनी विनम्रता और अपना संस्कार नहीं छोड़ा।
लगे रहो बोलु बेटा! अभी तो शुरुआत ही है।
योगेन्द्र यादव की फेसबुक वाल से साभार