लखनऊ, भारतीय मूलनिवासी संगठन के महासचिव सूरज कुमार बौद्ध ने भारतीय न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार पर बड़ा सवाल उठाया है। उन्होने कहा कि भारतीय न्यायपालिका के लिए बेहद शर्म की बात है कि गैंगरेप के आरोपी गायत्री प्रजापति को जमानत देने के लिए 10 करोड़ की रिश्वतखोरी को अंजाम देने वाला न्यायाधीश ओ0पी0 मिश्रा जेल से बाहर है, लेकिन न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोकप्रिय दलित न्यायाधीश सी0 एस0 कर्णन जेल की सलाखों के अंदर हैं।
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सूरज कुमार बौद्ध ने कहा कि न्यायपालिका अथवा न्यायाधीशों पर सवाल उठाया जाना अदालत की अवमानना है? लेकिन सच यह है कि न्यायपालिका भी दूध की धुली नहीं है। चूंकि जस्टिस कर्णन ने न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार पर सवाल उठाया है इसलिए सर्वोच्च न्यायालय की नजर में जस्टिस कर्णन अपराधी हैं। क्या अन्य न्यायाधीश जिन पर जस्टिस कर्णन ने आरोप लगाया है वह अपराधी नहीं हो सकते हैं?
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उन्होने उदाहरण सहित अपनी बात की पुष्टि भी की। सूरज कुमार बौद्ध ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी एक जांच रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है कि ‘अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज ओ0पी0 मिश्रा को उनके रिटायर होने से ठीक 3 सप्ताह पहले ही पोस्को (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस) जज के रूप में तैनात किया गया था ।फिर जस्टिस ओ0पी0 मिश्रा ने ही गायत्री प्रजापति को 25 अप्रैल को रेप के मामले में जमानत दी थी।
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सूरज कुमार बौद्ध ने बताया कि ओ0पी0 मिश्रा की नियुक्ति नियमों की अनदेखी करते हुए और इनकी नियुक्ति अपने काम को बीते 1 साल से उचित रूप से करने वाले एक जज को हटाकर हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक गायत्री प्रजापति को 10 करोड़ रुपए की एवज में जमानत दी गई थी। फिलहाल ओपी मिश्रा सेवानिवृत्त हो चुके हैं। अगर भ्रष्टाचार की जड़ में जाएं तो रिश्वतखोरी ही भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी इकाई है। जस्टिस मिश्रा की रिश्वतखोरी इस बात की गवाह है कि न्यायपालिका में व्यापक तरीके से भ्रष्टाचार व्याप्त है।
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बौद्ध ने कहा कि अब एक प्रमुख सवाल यह उठता है कि सर्वोच्च न्यायालय को जस्टिस कर्णन द्वारा न्यायपालिका में भ्रष्टाचार संबंधी एक पत्र से इतनी बौखलाहट हो गई कि सर्वोच्च न्यायालय के उन्ही सात भ्रष्टाचार के आरोपी जजों की पीठ ने जस्टिस कर्णन के खिलाफ एकतरफा कार्यवाही करते हुए जस्टिस कर्णन के आरोप को अदालत की अवमानना माना। लिहाजा जस्टिस करनन को 6 महीने के लिए जेल की सजा हुई। वर्तमान में जस्टिस कर्णन को गिरफ्तार कर जेल के हवाले कर दिया गया है। लेकिन आज ओ0 पी0 मिश्रा के मामले में सर्वोच्च न्यायालय खामोश क्यों है?
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सूरज कुमार ने न्यायपालिका से सवाल किया है कि भ्रष्टाचार संबंधी एक पत्र अदालत की अवमानना है तो क्या जस्टिस मिश्रा की रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार नहीं है? क्या जस्टिस मिश्रा की रिश्वतखोरी अदालत की अवमानना नहीं है? असलियत यह है कि देश के निर्भीक योद्धा जस्टिस कर्नन के साथ जातीय उत्पीड़न हो रहा है।
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बौद्ध ने बताया कि अदालत खुद को राज्य का अंग नहीं मानती हैं, ताकि आरटीआई के दायरे से दूर रहें। अजीब बात है इन जजों तथा न्यायपालिका को तनख्वाह एवं निधि सरकार के संचित कोष से मिलती है लेकिन फिर भी ये राज्य के अंग नहीं हैं। जबकि पूरी दुनिया में यह प्रचलित सिद्धांत है कि राज्य के तीन अंग होते हैं-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। मेरा एक सवाल है कि अगर न्यायपालिका राज्य का अंग नहीं है तो फिर क्या निजी इकाई है? (If judiciary is not a state, is it private entity?)
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सूरज कुमार बौद्ध ने बताया कि दरअसल सारा सवाल न्यायपालिका में व्याप्त अपर्याप्त प्रतिनिधित्व पर टिका हुआ है। पूर्व राष्ट्रपति के. आर. नारायण ने फरवरी 1999 में अदालतों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व ना होने पर अपना एतराज जताते हुए कहा था की ‘अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों में पर्याप्त योग्यता है। अदालतों में उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाना किसी भी सूरत में न्यायसंगत नहीं माना जा सकता है।’