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लगान भरते हैं तीर्थपुरोहित, जानिये क्या है कल्पवास

प्रयागराज,  ब्रिटिश शासनकाल से चली आ रही लगान की पद्धति देश आजाद होने के बाद भी नहीं बदली। श्रद्धालुओं को त्रिवेणी में कल्पवास कराने के लिए तीर्थ पुरोहित प्रशासन को जमीन के लिए लगान भुगतान करते हैं।

प्रयागवाल सभा के महामंत्री एव तीर्थ पुरोहित राजेंद्र पालीवाल ने  बताया कि अंग्रेजों के समय से चली आ रही लगान की परंपरा अभी भी बरकरार है। उन्होने बताया कि बहुत समय पहले केवल 50 बीघे जमीन तीर्थ पुरोहितों को मिलती थी जिसपर वह कल्पवासियों को बसाया जाता था।

श्री पालीवाल ने आरोप लगाया कि मेला प्रशासन ने लगान तो बढ़ा दिया लेकिन सुविधा में कोई विशेष वरीयता नहीं दिया है। उन्होंने बताया कि साधु महात्मा एवं अन्य संस्थाओं को प्रशासन पूर्ण रूप से सुविधा प्रदान करती है जबकि उन्हें उस तरह की सुविघा प्रदान नहीं की जाती है। मेला कल्पवासियों और साधु.संतो का है। प्रशासन साधु.संतो को बेहतर सुविधा जबकि कल्पवासियों को बसाने के लिए भी उसी प्रकार की सविधा देनी चाहिए।

उन्होने बताया कि समय के साथ तीर्थ पुरोहितों का परिवार बढ़ने के साथ ही कल्पवासियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। वर्तमान में कल्पवासियों को बसाने के लिए तीर्थ पुरोहितों को करीब 600 बीघा जमीन दी जाती है। उन्होंने बताया कि 70 के दशक में जिस भूमि का ;शुल्कद्ध लगान 75 रूपये बीघा दिया जाता था, अब वह बढ़कर 550 रूपये हो गया है।