उनका कहना है कि मुस्लिम समाज में होने वाला निकाहनामा ही अपने आप में एक पंजीकरण है इस दौरान तमाम प्रक्रियाएं पूरी हो जाती है जो अपने आप में एक मुकम्मल पंजीकरण है इसलिए मुसलमानों के लिए विवाह पंजीकरण अनिवार्य नहीं होना चाहिए बल्कि निकाहनामा को ही पंजीकरण का दर्जा दे देना चाहिए।
मुस्लिम विवाह पंजीकरण को अनिवार्य किये जाने के हुक्म को लेकर मुस्लिम उलेमाओं के मध्य विचार विमर्श और राय जानने के लिये उलेमाओं की जल्द दिल्ली में मीटिंग होगी।
ऑल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने का कहना है कि शादी का पंजीकरण अलग से जरूरी नहीं है इसलिए हर शहर में काजी और निकाह पढ़ाने वाले आलिम.ए.दीन होते हैं उनके पास निकाह का रजिस्टर होता है। रजिस्टर में दूल्हा.दुल्हन की बुनियादी तफ़्सील दर्ज होती हैए साथ ही काजी का नाम एक वकील और दो गवाह की तफ़्सीर भी दर्ज होती है। मुस्लिम समाज में यह तरीका वर्षों से चला आ रहा है जो एक तरह का पंजीकरण ही है।