जोशीला लहजा, इमोशन में लिपटी हुए जुबान और आम जनता से संवाद करने का सधा हुआ अंदाज. बड़ी-बडी बातों और मुद्दों को बेहद आसान शब्दों में जनता तक पहुंचाने की मोदी की ये महारत ही उन्हें दूसरे नेताओं से आगे ले जाती है. हाथों के इशारे.. तमतमाए चेहरे पर तेजी से बदलते भाव और उनकी भाषा का ठेठ देसी अंदाज सुनने वालों के जहन पर सीधी चोट करता है और चुनावी माहौल में मोदी की यही चोट सीधे वोट में तब्दील होती रही है. बिहार की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर विकास के उसी मुद्दे को हवा दी जो पिछले लोकसभा चुनाव से ही वो दोहराते रहे हैं.
हाल ही में हुए दादरी हत्या कांड पर चुप्पी तोड़ते हुए मोदी ने हिंदू और मुस्लमानों से गरीबी के खिलाफ लड़ने का आह्वान भी किया लेकिन ये भी एक सच है कि जब से वो प्रधानमंत्री बने हैं उन्हीं की पार्टी के विधायक, सासंद और यहां तक कि मंत्री भी सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाली बयानबाजी करते नजर आए हैं. लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने अच्छे दिनों के वादे के साथ विकास के नारे को हवा दी थी. और चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी लाल किले से जाति – धर्म के झगड़े भुलाने का आह्वान करते भी नजर आए हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ उन्ही की पार्टी और संगठन के नेता उनके इस आहवान को नजर अंदाज करते नजर आए हैं यहीं वजह है कि मोदी के सबका साथ, सबका विकास के नारे के बीच देश धार्मिक कट्टरवाद के उभार की गर्मी भी महसूस कर रहा है.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी ने विकास के एजेंडे पर लड़ा था. सबका साथ, सबका विकास का नारा बुलंद करने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पूरे चुनाव प्रचार अभियान के दौरान लोगों से देश में अच्छे दिन लाने का वादा किया था. और प्रधानमंत्री बनने के बाद वो लगातार विकास के अपने एजेंडे को प्रमुखता के साथ जोर –शोर से देश और दुनिया के सामने रखते भी नजर आए हैं. चुनाव प्रचार के दौरान और लोकसभा चुनाव में भारी जीत के बाद उन्होंने इस बात को भी अच्छी तरह से साफ कर दिया था कि ये देश पहले की तरह ही संविधान के हिसाब से चलेगा.
लेकिन संविधान के हिसाब से देश चलाने की बात कहने वाले प्रधानमंत्री मोदी के 18 महीनों के शासन पर नजर डाले तो ये बात भी साफ है कि इस दौरान देश में धार्मिक कट्टरवाद का उभरा साफ महसूस किया गया है, देश में लवजेहाद और धर्मांतरण से लेकर घरवापसी और गोमांस जैसे सांप्रदायिक मुद्दें लगातार जोर पकड़ते रहे हैं. पिछले महीने दिल्ली के करीब दादरी में गोमांस खाने की अफवाह के बाद जो हत्याकांड हुआ था उसके बाद भड़का गोमांस का मुद्दा अभी भी गर्माया हुआ है. खास बात ये है कि इस मुद्दे पर बीजेपी के सांसद, विधायक और मंत्रियों से लेकर कई नेता भड़काऊं बयानबाजी करते भी नजर आए थे और इसीलिए दादरी हत्याकांड पर मचे राजनीतिक घमासान के बीच पहली बार प्रधानमंत्री मोदी ने जब चुप्पी तोड़ी तो उनके निशाने पर विरोधी दलों के साथ ही अपनी पार्टी के वो राजनेता भी थे जो दादरी हत्याकांड के बाद टीवी के परदों पर भड़काऊं बयानबाजी करके अपनी राजनीति चमकाते नजर आए थे.
बिहार में नवादा की एक चुनावी रैली में बोलते हुए मोदी ने कहा कि हिंदू और मुसलमानों को एक दूसरे से लड़ने की बजाए साझा दुश्मन गरीबी से लड़ने पर ध्यान देना चाहिए और नेताओं के गैरजिम्मेदाराना बयानों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. लेकिन यहां सवाल ये भी अहम है कि जब प्रधानमंत्री मोदी विकास का अपना एजेंडा आगे बढ़ाना चाह रहे हैं तो उसकी राह में उनके अपने ही क्यों रोढ़ा डाल रहे है. प्रधानमंत्री मोदी जो करना चाहते हैं वो आखिर क्यों नहीं कर पा रहे हैं. और इसीलिए विरोधी दल भी प्रधानमंत्री मोदी की सबका साथ, सबका विकास की नीति को लेकर सवाल उठा रहे हैं. विरोधी ये भी आरोप लगा रहे हैं कि मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी डबल एजेंडे पर काम कर रही हैं. एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी विकास का एजेंडा आगे बढ़ाने की बात करते हैं लेकिन वही दूसरी तरफ संघ परिवार हिंदूराष्ट्रवाद और हिंदुत्व के अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है.
दरअसल पिछले महीने 28 सितंबर को उत्तर प्रदेश के दादरी में गोमांस खाने की अफवाह के बाद अखलाक नाम के शख्स की पीट – पीट कर हत्या कर दी गई थी और इसके बाद से ही गोमांस के मुद्दे ने आग पकड़ ली थी. और अब हरियाणा की बीजेपी सरकार के ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने विवादित बयान देकर गोमांस के इस मुद्दे को और ज्यादा भड़का दिया है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार को दिए एक इंटरव्यू में मुख्यमंत्री खट्टर ने कहा कि देश में मुसलमानों को रहना है तो बीफ खाना छोड़ना होगा. खास बात ये है कि खट्टर भी बीफ का मतलब गोमांस ही समझ रहे हैं. खट्टर ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि मुस्लिम रहें लेकिन इस देश में बीफ खाना छोड़ना ही होगा. यहां की मान्यता है गऊ. गऊ मांस को छोड़कर भी तो मुस्लिम रह सकते हैं न. आप किसी की भावना को ठेस नहीं पहुंचा सकते. ये संविधान में है.
मुख्यमंत्री जगदीश खट्टर के गोमांस पर इस विवादित बयान के सामने आने के बाद यहां ये सवाल बेहद अहम हो जाता है कि जहां एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों में हिंदू और मुसलमानों को साथ मिलकर गरीबी से लड़ने की सीख देते नजर आतें हैं वहीं उनकी पार्टी बीजेपी के मुख्यमंत्री अपने बयान में मुसलमानों पर देश में रहने की शर्त थोप रहे हैं.
28 सिंतबर को हुए दादरी हत्याकांड के बाद से भड़के गोमांस के मुद्दे की आग ठंडी पड़ने का नाम नहीं ले रही है. प्रधानमंत्री मोदी से पहले इस मुद्दे पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कड़ा बयान भी सामने आया था. जॉर्डन यात्रा से पहले एक अरबी अखबार अल गाद को दिए इंटरव्यू में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि ‘आधुनिकीकरण की आवाज को बढ़ाना होगा. उन्होंने कहा कि घृणा से भरे भाषण और डर की सौदागरी का अब खात्मा होना चाहिए. हमारे मूल्य हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होना चाहिए. हमें धर्म को सत्ता की भूख का मुखौटा नहीं बनने देना चाहिए. और ना ही उसे कुछ लोगों के हाथ का खिलौना बनने देना चाहिए. उन्होंने कहा कि सहिष्णुता और सहअस्तित्व हमारी सभ्यता के मूल तत्व हैं जिन्हें हम हमेशा अपने दिल से लगाकर रखते हैं. जाहिर है कि दादरी कांड ने देश के प्रथम नागरिक, राष्ट्रपति ही नहीं देश के सभी संवेदनशील लोगों को विचलित किया है. लेकिन सियासत के खेल से परे जिन बुनियादी सवालों की तरफ राष्ट्रपति ने इशारा किया है क्या वो आज के भारत में सुरक्षित हैं? क्योंकि इन्हीं सवालों को लेकर विरोधी दल भी प्रधानमंत्री मोदी की विवादित मुद्दों पर खामोशी को लेकर सवाल उठा रहे थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हमेशा ये लगता रहा है कि अगर किसी विवादित विषय पर वो पहले बोलें या बाद में उस पर अपनी प्रतिक्रिया दें तो विवाद घटने की बजाए और बढ़ने ही वाला है. ऐसे में जहां तक संभव हो विवादित विषयों पर वो चुप रहना ही बेहतर समझते है. इसीलिए शायद सोच ये भी रहती है कि विवादित मुद्दों पर बोला ही क्यों जाए.
बीजेपी नेता विनय सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि देखिए विपक्ष का तो काम ही है आरोप लगाना. संदेह निर्माण करना, दिगभ्रमित करना, तो वो तो ऐसा कहेंगे ही कहेंगे. और मैं तो मानता हूं कि हिंदुत्व की परिकल्पना में विकास तो अंतर्निहित ही है. मतलब सबका साथ सबका विकास इसी का नाम हिंदुत्व है. हिंदुत्व और विकास में कोई अंतर्विरोध नहीं है. हम तो मानते है कि ये सब एक ही दिशा के राही है.
गोमांस को लेकर उठे सियासी तूफान के बीच हाल ही में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने मुंबई में पाकिस्तानी गायक गुलाम अली का शो रद्द करवा दिया था इस मुद्दे पर भी देश की राजनीति में खासा बवाल मचा. यही नहीं बीजेपी के पूर्व नेता और लालकृष्ण आडवाणी के करीबी सुधींध्र कुलकर्णी के मुंह पर कालिख भी पोती गई. दरअसल सुधींद्र कुलकर्णी पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की भारत – पाकिस्तान के रिश्तों पर लिखी किताब ‘नाइदर ए हॉक नॉर ए डव’ का मुंबई में विमोचन करवा रहे थे. लेकिन शिवसेना इसका विरोध कर रही थी और शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने सुंधीद्र कुलकर्णी को पाकिस्तान का एजेंट बताकर उनके चेहरे पर कालिख पोत दी थी. खास बात ये है कि महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ मिलकर शिवसेना सरकार चला रही है. इस पूरे विवाद से भी देश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया.
दादरी कांड से लेकर गुलाम अली के शो और कुलकर्णी विवाद तक पिछले कुछ समय में घटी ऐसी बहुत घटनाओं से में सांप्रदायिक सदभाव को लेकर तमाम सवाल खड़े हुए है और इसीलिए राष्ट्रपति की टिप्पणी के बाद जब प्रधानमंत्री मोदी की खामोशी पर विरोधी सवाल खड़े करने लगे तब उन्होंने पटना से 100 किलोमीटर दूर नवादा की एक चुनावी रैली में दादरी हत्याकांड पर अपनी चुप्पी भी तोड़ी थी लेकिन अपने भाषणों से लेकर सोशल मीडिया और आकाशवाणी तक पर मन की बात कहने का उत्साह दिखाने वाले प्रधानमंत्री मोदी आखिर क्यों लंबे वक्त तक दादरी हत्याकांड पर खामोश रहे, क्या ये उनकी कोई मजबूरी थी या फिर थी उनकी कोई रणनीति. इस बात की पड़ताल भी हम करेंगे आगे लेकिन उससे पहले सुनिए प्रधानमंत्री मोदी का वो बयान जो उन्होंने इन घटनाओं के बाद एबीपी न्यूज़ चैनल से जुड़े बांग्ला अख़बार आनंद बाज़ार पत्रिका से चर्चा के करते हुए दिया है, प्रधानमंत्री ने कहा कि “दादरी की घटना या पाकिस्तानी संगीतकार के विरोध की घटना ये दुर्भाग्यपूर्ण और अवांछनीय है लेकिन इन घटनाओं में केंद्र सरकार की क्या भूमिका है? पहले भी ये बहस हुई है बीजेपी ने हर समय छद्म धर्मनिरपेक्षता का विरोध किया है. आज इन दुखद घटनाओं के जरिए फिर से वो विवाद उठा रहे हैं. बातचीत से इसका समाधान संभव है. बीजेपी कभी भी ऐसी घटनाओं का समर्थन नहीं करती. इन घटनाओं के ज़रिये विपक्ष बीजेपी पर साम्प्रदायिकता का आरोप जरूर लगा रहा है लेकिन क्या विपक्ष खुद इनके ज़रिये ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं कर रहा?”
देश में बिगड़ रहे सांप्रदायिक माहौल पर लंबी चुप्पी के बाद जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने दादरी कांड से लेकर दूसरे विवादित मुद्दों पर खुल कर बात रखनी शुरु की है तो विरोधियों ने भी उन पर नए सिरे से हमला बोलना शुरू कर दिया है. हाल ही में घटी सारी घटनाओं के बारे में प्रधानमंत्री का कहना है कि केंद्र की इसमें कोई भूमिका नहीं है. ये बात भी अपनी जगह सही हैं कि राज्य में शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है और इसमें केंद्र सरकार का सीधा दखल नहीं होता है. क्योंकि किसी राज्य की पुलिस और प्रशासन वहां की सरकार और मुख्यमंत्री के अधीन ही काम करती है और प्रधानमंत्री का उसमें कोई सीधा दखल नहीं होता है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि दादरी से लेकर कुलकर्णी तक जो भी घटनाएं घट रही है वो राज्य सरकार का मामला है. और राज्य सरकार ही इन घटनाओं को लेकर जिम्मेदार भी हैं.
राज्य सरकारों की जिम्मेदारी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी का तर्क भी अपनी जगह दुरुस्त है लेकिन फिर उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री और दूसरे नेता भड़काऊं बयानबाजी करते क्यों नजर आ रहे हैं. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का गोमांस पर दिया ताजे बयान से भी ये सवाल उठता है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपनी पार्टी के नेता और मंत्रियों पर कंट्रोल क्यों नहीं है. सवाल ये भी है कि जो बातें प्रधानमंत्री मोदी बोलते रहे हैं उन बातों को उनकी ही पार्टी के नेता और उनके संगठन से जुड़े लोग ही क्यों नकारते नजर आ रहे हैं.
बीजेपी नेता विनय सहस्त्रबुद्धे बताते हैं कि देखो कोई भी एजेंडा कोई भी अपने मन से नहीं बनाता. इसलिए विषय है तो उसका उल्लेख कहीं ना कहीं होगा. उसकी चर्चा भी होगी. मगर सभी के लिए प्रधानमंत्री जी की अपील है कि हमें और गरीबी के साथ जो हमारी लड़ाई है. उसको प्राथमिकता देनी चाहिए. मुझे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का एजेंडा सबका साथ सबका विकास का ही है. और उसमें उन्होंने जो बात कही है कि हमने गरीबी से लड़ना चाहिए. तो मैं मानता हूं कि ये सभी के संदर्भों में है. और इसलिए अघर गरीबी से लड़ने का विकास की ओऱ आगे बढ़ने का समाज के रुप में आर्थिक सामाजिक उन्नति का रास्ता हम अपनाते हैं. तो बाकी विषय़ विषय नहीं रहेंगे, आज वो विषय हैं कोई देखे ना देखे मीडिया उसको उठाए ना उठाए विषय तो हैं.
कमल संदेश के कार्यकारी संपादक शक्ति बख्शी ने कहा कि घटना कहां हो रही है यूपी में लॉ एंड ऑर्डर किसके हाथ में है यूपी सरकार के हाथ में वहां सरकार किसकी है समाजवादी पार्टी की कोई नहीं कह रहा है कि अखिलेश जबाव दें मुलायम सिंह जवाब दें वहां पर जिनकी जिम्मेदारी बनती है असल में उनसे जबाव नहीं मांगा जा रहा है प्रधानमंत्री जी से जबाव मांगा जा रहा है अभी जांच चल रही है और इस इंवेस्टिगेशन का नतीजा आए ये लोकतंत्र है और उसको अगर जिम्मदारी पूर्वक चलाना है तो उसको इसी तरीके से चलाना पड़ेगा. हर चीज पर जर्क रिएक्शन प्रधानमंत्री दें ऐसा संभव नहीं है.
हालांकि ये बात भी अपनी जगह सही है कि देश में घटी हर घटना पर प्रधानमंत्री के बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती है लेकिन जब कोई घटना राष्ट्रीय चिंता का विषय बन जाए तब प्रधानमंत्री की खामोशी जरुर लोगों को खलती है. दादरी की घटना पर प्रधानमंत्री मोदी के देर से चुप्पी तोड़ने के पीछे कई वजहें हो सकती हैं लेकिन इसका एक नतीजा ये भी हुआ कि उनकी पार्टी के ही कुछ नेता इस मुद्दे पर भड़काऊं बयानबाजी करते रहे. हांलाकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने दादरी हत्याकांड को दुर्भाग्यपूर्ण कहा और वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी माना कि इस घटना से दुनिया में देश की छवि प्रभावित हुई है. ऐसे में सवाल ये है कि आखिर देश की छवि को नुकसान कौन पहुंचा रहा है. और ये सवाल तब औऱ बड़ा हो जाता है जब प्रधानमंत्री की पार्टी के विधायक, सांसद और केंद्रीय मंत्री तक दादारी हत्याकांड पर तनाव भड़काने वाली बयानबाजी में शामिल नजर आते है और प्रधानमंत्री इस पर चुप्पी साधे रखते है.
बीजेपी नेता विनय सहस्त्रबुद्धे बताते हैं कि जैसा आपको बाहर दिखाई देता है ऐसा ही है ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है. आपसी समन्वय है निश्चित रुप में और संवाद है और एक दूसरे के विचार विमर्श के आधार पर ही हम आगे बढते हैं. कहीं किसी के द्वारा अनुशासन भंग होता है तो उसके उपर कार्रवाई करने की पार्टी की अपनी आंतरिक रचना है उन सारी रचनाओं के बारे में हम मीडिया के सामने चर्चा करना उचित नहीं समझते.
प्रधानमंत्री मोदी के करीबियों का कहना है कि वो सार्वजनिक तौर पर पार्टी नेताओं को लेकर तो कम ही डांट लगाते हैं लेकिन पार्टी और संगठन की आंतरिक बैठकों या मुलाकातों के दौरान ऐसे नेताओं को डांट जरुर पड़ती रही है कहा ये भी जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की फटकार के शिकार विवादित बोल बोलने वाले केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह से लेकर सांसद साक्षी महाराज तक समय-समय पर होते भी रहे हैं.
लेकिन दादरी हत्याकांड पहला मौका नहीं है. साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से लेकर अब तक ऐसी कई घटनाएं घटी है जिनसे देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी की विकास नीति के समानांतर क्या कोई देश में सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने की नीति भी फैला रहा है.
सबका साथ, सबका विकास प्रधानमंत्री मोदी का ना सिर्फ चुनावी नारा रहा है बल्कि वो अपने भाषणों में हिंदू और मुसलमानों से गरीबी के खिलाफ मिल कर लड़ने का आहवान करते भी नजर आएं हैं. प्रधानमंत्री के भाषणों से साफ जाहिर है कि वो देश में विकास का एजेंड़ा आगे बढ़ाना चाहते हैं लेकिन क्या लवजेहाद, धर्मांतरण, घरवापसी और गोमांस जैसे विवादित मुद्दें उनके इस विकास के मिशन में रोड़ा बन रहे हैं. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, समान नागरिक संहिता और धारा 370 जैसे पुराने मुद्दों के अलावा क्या लवजेहाद जैसे नए विवादित मुद्दे प्रधानमंत्री मोदी की राह में मुश्किले खड़ी कर रहे हैं. ये सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार को विकास के नारे ने ही सत्ता का ताज दिलाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कट्टर समर्थक मानी जाने वाली मशहूर पत्रकार तवलीन सिंह ने भी इंडियन एक्स्प्रेस के अपने कॉलम में दादरी हत्याकांड की निंदा करते हुए मोदी की नीति पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि “वो प्रधानमंत्री क्यों बने, उन्हें विकास और बदलाव के लिए वोट मिला था ना कि हिंदुत्वा के लिए. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि संघ परिवार के अंदर विकास और हिंदुत्व को लेकर चल रहा यही टकराव प्रधानमंत्री मोदी की राह में मुश्किले खड़ी कर रहा है.
बीजेपी के अंदर भी एक बड़े धड़े का ये मानना रहा है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जो शानदार जीत मिली है उसकी वजह नरेंद्र मोदी के विकास के नारे के साथ- साथ ही बीजेपी का कोर एजेंडे भी बड़ी वजह रहा है. ऐसे में अगर राममंदिर निर्माण, धारा 370 और समान नागरिक संहित जैसे कोर इश्यू पर पूरी तरह चुप्पी साधेगें तो बीजेपी और दूसरी पार्टियों के बीच कोई अंतर नहीं रह जाएगा.
वीएचपी के संयुक्त महामंत्री सुरेंद्र जैन बताते हैं कि भाजपा के एजेंडा में राममंदिर है. नंबर एक. नंबर दो अमित शाह के जिस बयान के उपर दिल्ली में शंकाए खड़ी की गई उसमें भी अमित शाह ने कोर इश्यू है राम मंदिर ये शब्द प्रयोग किया. उनको जिन लोगों ने वोट दिया है केवल विकास के दम पर नहीं दिया उन्होने राम मंदिर के लिए भी दिया है ये तथ्य उनको मालूम है. और नंबर चार आपने अटल जी का नाम लिया अटल जी के टाइम पर राम मंदिर पर कुछ नहीं हुआ ये आपने कहा मैं सहमत हूं और अटल जी की सरकार ने कुछ नहीं किया अगले चुनाव में भाजपा का क्या हुआ ये सबको मालूम है इसीलिए नरेंद्र मोदी बड़े चतुर राजनीतिज्ञ माने जाते हैं. वो ये हश्र नहीं चाहेंगे वो राममंदिर बनाएंगे बनाना हमारा काम है वो सहयोग करेंगे आने वाली बाधाओं को दूर करेंगे ये हमारा परम विश्वास है. अभी एक ही साल हुआ है.
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास के एजेंडे की राह में संघ परिवार का हिंदुत्व का एजेंडा आड़े आ रहा है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के ठीक दो महीने बाद राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत को हिंदू राष्ट्र बोल कर नए विवाद को जन्म दे दिया था. उन्होंने कहा है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और हिंदुत्व उसकी पहचान है और यह अन्य धर्मों को स्वंय में समाहित कर सकता है. हिंदू राष्ट्र, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ का सबसे बड़ा एजेंडा रहा है. ऐसे में हिंदुत्व पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान पर घमासान मच गया था. दरअसल नरेंद्र मोदी लोकसभा का चुनाव विकास के मुद्दे पर जीते हैं लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद संघ प्रमुख भागवत के ऐसे बयानों से देश के अंदर मोदी को लेकर उस डर को बल मिला जो हिंदू दक्षिणपंथियों के फिर से आक्रामक होने को लेकर रहा है और जिसका इशारा भी बीजेपी के वैचारिक गुरु आरएसएस और कुछ कट्टरपंथी हिंदू संगठन करते रहे हैं.
जाहिर है कि साल 2014 में बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के पहले से ही नरेंद्र मोदी ने विकास का अपना एजेंडा साफ कर दिया था. लेकिन मोदी को लेकर फिर भी कई लोगों को ये डर सताता रहा है कि देश में कमज़ोर विपक्ष के चलते प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के सबसे बड़े और विविधतापूर्ण लोकतंत्र को कहीं हिंदू राष्ट्रवादी देश में बदल तो नहीं देंगे और इस डर को हिंदू कट्टरपंथी संगठनों के बयानों ने और ज्यादा हवा देने का ही काम किया है. मोदी के करीबियों का कहना है कि वो खुद भी आंतरिक तौर पर इस बात से परेशान हैं कि इस तरह की छवि का बनना कि विवादित बयान देने वाले नेताओं पर लगाम नहीं कसी जा रही और इसका जो संदेश जा रहा है वो ठीक नहीं है.
वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा बताते हैं कि देखिए वहां पर ड्यूल एजेंडा है वो एजेंडा ये है कि उनको अब लगता है कि हम सत्ता में आ गए है और सत्ता में आने के बाद भी जो हमारा एजेंडा है हिंदुत्व का उसको हम पूरी तरह से इंप्लीमेंट नही कर पा रहे हैं. मगर ये उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वो जो सत्ता में आए हैं वो डिवलपमेंट के एजेंडे के नाम पर आए हैं उनको जो वोटर है जिसने उनको वोट दिया है जो आम जनता ने उनको वोट दिया है डिवलपमेंट के नाम से दिया है और वो हिंदुत्व के लिए वोट नहीं दिया है तो ये टकराव बनी हुई है और ये टकराव पिछले ढेड़ साल से नजर आ रही है.
आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा बताते हैं कि विकास के साथ साथ आप सामाजिक सांस्कृतिक विमर्श को आप रोक नहीं सकते हैं कोई भी समाज सामाजिक सांस्कितक विमर्श विहीन होकर नहीं चल सकता है और जब यथार्थ के शब्द को संबोधित किया जाता है तो कोई जरूरी नहीं है कि विमर्श आदर्श रुप में ही हो लेकिन उस वक्त सिर्फ राजनीतिज्ञों का नहीं राजनीतिक पार्टियों का नहीं समाज का मीडिया का बुद्धिजीवियों का दायित्व बनता है कि विमर्थ के किस पक्ष को हम महत्व दें विमर्श करने वाले किन लोगों को हम सेंटर स्टेज पर ऱखें.
केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से ही संघ परिवार की तरफ से हिंदू राष्ट्र, धर्मांतरण, आरक्षण और घरवापसी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बयान सामने आने शुरु हो गइ थे. राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ही नहीं विश्व हिंदू परिषद जैसे संघ परिवार के घटक सदस्यों ने भी मोदी की ताजपोशी के फौरन बाद हिंदुत्व के एजेंड़े को लेकर ताबड़-तोड़ हमले बोलने शुरु कर दिए थे.
विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने जुलाई 2014 में कहा था कि मैं मुस्लमानों को चेतावनी दे रहा हूं कि गुजरात शायद आप भूल गए होंगे. पर मुजफ्फरनगर आप नहीं भूले होंगे. हिंदुओं की सौजन्य शीलता को कायरता मानने का दुस्साहस मत करो. औऱ मुजफ्फरनगर का हमेशा के लिए स्मरण करो.
वीएचपी के संरक्षक के तौर पर इसके सबसे बड़े नेता अशोक सिंघल ने भी नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के दो महीने बाद मुसलमानों पर जम कर हमला बोला. उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक समुदायों को हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करना सीखना होगा. वे अगर ऐसा नहीं करेंगे, तो लंबे समय तक वजूद में नहीं रह पाएंगे. सिंघल यही नहीं रुके उन्होंने आगे ये भी कहा कि मुस्लिमों को यूनिफॉर्म सिविल कोड को स्वीकार करना चाहिए और अयोध्या, काशी और मथुरा पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी के करीबियों का कहना है कि बीजेपी, वीएचपी या फिर और कट्टर संगठनों को आरएसएस की तरफ से मिली ढ़ील से फायदा और उत्साह मिल जाता है और उन्हें ये भी लगता है कि मोटे तौर पर आरएसएस की कृपा इस मसले पर उनके साथ बनी रहेगी.
बीजेपी नेता विनय सहस्त्रबुद्धे बताते हैं कि ये दिगभ्रमित करने की कोशिश है होता है क्या कि जब कांग्रेस की सरकार होती है. तो विश्व हिंदू परिषद क्या कहती है स्वदेशी जागरण मंच क्या कहता है. इसको मीडिया बहुत महत्व नहीं देता है लेकिन जब हमारी सरकार होती है तो हमारे संगठन क्या कहते हैं? कहना उनका काम है क्योंकि उनका भी अपना संगठन है उनकी अपनी ताकत है. तो वो हमेशा कुछ ना कुछ स्वाभाविक रुप से अपना विचार प्रकट करते रहते हैं. उसको मीडिया अब जाकर बहुत ज्यादा प्रकाशित करता है. इसलिए गलत तरीके का वायुमंडल बनता है. हमारा आपसी भाइचारे का एक परिवार का सदस्य होने का जो रिश्ता है वो बरकरार है.
दरअसल संघ परिवार, वीएचपी और बीजेपी के एजेंडे में कॉमन सिविल कोड और राम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे लंबे वक्त से रहे हैं. मोदी सरकार के शपथ लेने से पहले ही बीजेपी सासंद योगी आदित्यानाथ ने कहा था कि मोदी सरकार के कार्यकाल में राम मंदिर का निर्माण होगा और धार 370 खत्म होगी. संघ प्रमुख मोहन भागवत से लेकर संघ विचारक एम जी वैद्य तक ने भी ऐसी ही मांग की है लेकिन इन मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा खामोश ही नजर आए हैं.
प्रधानमंत्री मोदी की विवादित मुद्दों पर चुप्पी साधने की एक बड़ी वजह 2002 दंगों की पृष्ठभूमि भी बताई जाती है, मोदी के करीबियों का कहना है कि संबंध में उनका ये सोचना है कि 2002 के गुजरात दंगों के दस साल बाद भी अपनी तरफ से तमाम तथ्यों को सामने रखने के बावजूद उन्हें विपक्ष ही नहीं मीडिया भी दंगों के प्रिज्म से ही देखता रहा है जबकि इसी के आगे-पीछे हुए दूसरे दंगों पर दूसरी पार्टियों या नेताओं को उस तरह नहीं घेरा गया. यही वजह है कि दंगों से जुड़े केसों के मामले में भी प्रधानमंत्री मोदी ने जुबान तभी खोली जब सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी की क्लीन चिट को स्वीकार कर लिया.
भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के वादे के साथ नरेंद्र मोदी करीब 18 महीने पहले सत्ता में आए थे. मोदी को विरासत में खराब अर्थव्यवस्था और घटता रोजगार मिला था. उनसे ये उम्मीद है कि वो देश की अर्थव्यवस्था को सुधारेंगे, रोजगार के नए अवसर पैदा करेंगे और व्यापार के लिए लाल-फीताशाही खत्म करेंगे. अपने 15 महीनों के कार्यकाल में मोदी ने जहां जोशीली विदेश नीति अपनाई हैं वहीं भारत में रोजगार पैदा करने के लिए मेक इन इंडिया योजना की शुरुआत भी की है. अपने अंदाज, अपनी बात और अपने काम करने के तौर तरीकों से से वो सीधे जनता से जुड़ते भी नजर आए हैं. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने आसान शब्दों और तरीकों से लोगों को ऐसी तरकीबे सुझाने की कोशिश भी की है जिसने देश के माहौल में बदलाव की एक हरकत पैदा की जा सके. महात्मा गांधी के जन्म जिन 2 अक्टूबर पर स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करने वाले मोदी खुद बनारस के घाट पर मिट्टी हटाते भी नजर आए हैं. लीक तोड़ते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कई योजनाओं की शुरुवात भी की है जिनमें आदर्श ग्राम योजना और जनधन योजना जैसी उनकी महत्वकांक्षी योजनाएं शामिल हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने विदेशी मोर्चे पर भी भारत को एक अलग अंदाज में पेश करने की कोशिश की है लेकिन भ्रष्टाचार, महंगाई और काला धन जैसे मुद्दों पर अपने चुनावी वादे निभाने में वो अभी तक बेअसर ही नजर आए हैं. जाहिर है एक तरफ उनकी सरकार के सामने घरेलू और विदेशी मोर्चे पर चुनौतियां का अंबार लगा है तो वहीं दूसरी तरफ उनके अपने संगठनों के अंदर से ही उठती हिंदू एजेंडे की बेताबियां उनके आगे मुश्किलों का ढेर भी लगाती रही है.
बीजेपी नेता विनय सहस्त्रबुद्दे बताते हैं कि ऐसा बिलुकल नहीं है हमारे जो सांसद है साक्षी महाराज जी उनके खिलाफ हमने अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की थी. उसका जवाब आया उसको फिर विचार में लिया गया. तो पार्टी तंत्र अपनी पद्दति से काम करते रहता है. सारे विषय़ हम घर के जो विषय है हम मीडिया के सामने चर्चा करना उचित नहीं समझते.
कमल संदेश के कार्यकारी संपादक शक्ति बख्शी बताते हैं कि बीजेपी के 282 सांसद आज लोकसभा में और राज्यसभा में अलग से सांसद है और इतनी बड़ी पार्टी है औऱ देखिए आप स्वंय बोल रहे हैं कि साक्षी महाराज ने अपने बयान को वापस लिया है और संसद पर इसपर चर्चा हुई है और साध्वी की जो घटना थी उस पर भी पीएम नें स्वंय बयान दिया था लेकिन आप ये देखिए की जो छोटी छोटी घटनाएं हैं इस तरह की घटनाओं को पूरे देश के मंच पर लाकर खड़ा करना उस घटना को अंतर्राष्ट्रीय रंग दे देना और उससे पूरी तरह एक दिखाना कि इस देश में कुछ इस तरह का षदयंत्र टल रहा है अल्पसंख्यकों के खिलाफ और वो सुरक्षित नहीं है तो इसके पीछे अपनी एक अलग राजनीति है.
देश में उठे सांप्रादायिक मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी समर्थक और उनके विरोधी के अपने- अपने तर्क दे रहे है. इस बीच देश में बिगड़ रहे सांप्रदायिक माहौल के विरोध में नामचीन साहित्यकारों का बड़ी संख्या में साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटाने का सिलसिला भी जारी है. ये भी सच है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से संघ परिवार और उसकी विचारधारा से प्रभावित हिंदूवादी कट्टरपंथी संगठनों का जोर भी बढा है. इन सबके बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमाम विवादित मुद्दों पर खामोश ही नजर आए हैं और इसीलिए सवाल ये भी है कि जो कुछ वो कह रहे हैं वो कर क्यों नहीं पा रहे हैं. आखिर क्या हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मोदीनीति.