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शाह आयोग की रिपोर्ट मे, मोदी भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी

गांधीनगर,  गुजरात सरकार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री ;अब प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज एम बी शाह की अध्यक्षता में  मोदी के आदेश पर ही गठित आयोग की रिपोर्ट को आज आखिरकार विधानसभा के पटल पर रख दिया। कांग्रेस ने राष्ट्रपति को वर्ष 2011 में एक ज्ञापन सौंपा था, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एम बी शाह ने मोदी और उनकी राज्य सरकार के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के 14 आरोपों की जांच की थी।

 

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कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया और विधानसभा में तब के नेता विरोध पक्ष शक्तिसिंह गोहिल की ओर से राष्ट्रपति से गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार के खिलाफ टाटा समूह के नैनो संयंत्र के लिए 33000 करोड का गैरकानूनी लाभ देने, अडानी समूह को उसके मुंद्रा बंदरगाह सह विशेष आर्थिक प्रक्षेत्र क्षेत्र के लिए, एस्सार और कुछ अन्य औद्योगिक समूह एवंभाजपा के वरिष्ठ नेता एवं निवर्तमान शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू से कथित तौर पर जुडे एक समूह को औनी पौनी कीमत पर जमीन के आंवटन कर भ्रष्टाचार करने की गुहार लगाते हुए इसके जांच की मांग की गयी थी।
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आयोग का गठन वर्ष 2011 में किया गया था। इसका गठन पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए किया गया था। इन आरोपों में राज्य सरकार द्वारा उद्योगपतियों को गलत तरह से जमीन आवंटित करने का आरोप भी शामिल है। ये आरोप उस समय कांग्रेस ने लगाए थे।आयोग ने वर्ष 2013 में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी थी। नितिन पटेल ने पिछले सप्ताह दावा किया था कि रिपोर्ट में मोदी की तत्कालीन राज्य सरकार के खिलाफ लगाए गए आरोपों के संदर्भ में कोई पुख्ता साक्ष्य या सच्चाई नहीं मिली है।
नरेन्द्र मोदी ने स्वयं ही न्यायमूर्ति शाह की अध्यक्षता में इन मामलों की जांच के लिए आयोग का गठन कर दिया। इसके लिए 16 अगस्त 2011 को अधिसूचना जारी की गयी थी। इसने कुल 15 में से नौ आराेपों की जांच में सरकार को क्लिन चिट देते हुए सितंबर 2012 में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी थी। मजेदार बात यह है कि मूल आरोपी दोनो कांग्रेसी नेता आयोग की सुनवाई के दौरान स्वयं इसके सामने पेश नहीं हुए थे।

इसे सदन के पटल पर रखने की मांग को लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने जबरदस्त हंगामा किया था। आज भी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस का प्रदर्शन जारी था। उसका आरोप था कि सरकार श्री मोदी के शासन में हुए भ्रष्टाचार को छुपा रही है।
उपमुख्यमंत्री नीतिन पटेल ने 22 खंड और 5000 से अधिक पन्नों वाली इस रिपोर्ट को सदन में रखने के बाद कहा कि अब यह सार्वजनिक संपत्ति हो गयी है और कोई भी विधायक इसे सदन की लाइब्रेरी से लेकर पढ सकता है। सरकार ने पहले भी कहा था कि आयोग ने सभी आरोपों को नकारते हुए श्री मोदी और उनके सरकार को क्लिन चिट दे दी थी।
ज्ञातव्य है कि कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष शंकरसिंह वाघेला, जो आज आलाकमान के बुलावे पर प्रदेश अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी के साथ दिल्ली जाने के कारण सदन में उपस्थित नहीं थे, ने बार.बार आरोप लगाया था कि सरकार अगर सदन में रिपोर्ट नहीं रखती तो इसका मतलब यह होगा कि वह श्री मोदी के भ्रष्टाचार को छुपाना चाहती है। उधर कांग्रेस के विधायक आज सदन में रिपोर्ट पेश करने की मांग तथा कल भाजपा अध्यक्ष सह विधायक अमित शाह की ओर से सदन में कांग्रेस पर लगाये गये आरोपों को लेकर माफी की मांग वाले बैनर पहन कर आये थे।
उन्हें बाद में दिन भर के लिए सदन की कार्यवाही से निलंबित कर दिया गया। ज्ञातव्य है कि गत 20 फरवरी को शुरू हुए बजट सत्र का आज आखिरी दिन है।
शाह आयोग ने विभिन्न औद्योगिक समूहों को जमीन के आवंटन में कथित अनियमितता एवं भ्रष्टाचार के आरोपो समेत ऐसे 12 आरोपों की जांच की थी। इसने अपनी रिपोर्ट कुछ वर्ष पहले ही राज्य सरकार को सौंप दिया था। सरकार ने पूर्व में भी दावा किया था कि आयोग ने सभी मुद्दों पर क्लिन चिट दे दी है।

 

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