इटावा, दुर्दात दस्यु गिरोह की पनाहगार के तौर पर दशकाें तक कुख्यात रही चंबल घाटी में चहुंओर लहलहा रही सरसों की फसल बसंत ऋतु के शीघ्र आगमन का संदेश दे रही है। चंबल घाटी की लाखों हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर लहलहा रही सरसों की फसल से हर खेत इन दिनों बंसती रंग से पुता नजर आ रहा है। एक समय था जब चंबल मे डाकुओं के भय से इलाके के खेत खलिहान बंजर पड़े रहते थे। कोई किसान यदि फसल उगाने की भी कोशिश करता था तो उसे दस्यु दल उजाड़ दिये करते थे।
जिला कृषि अधिकारी अभिनंदन यादव ने बुधवार को यूनीवार्ता से कहा कि सरसों कम लागत मे पैदा होने वाली फसल है। बेहद कम पानी के बावजूद यह फसल फूलती फलती है जिससे किसानो काे खासा फायदा होता है। पानी की कमी वाले स्थानों पर सरसों की फसल को उपजा करके किसान को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाया जा सकता है। इटावा जिले में 18093 हेक्टेयर जमीन पर सरसों की फसल को यहां के किसान पैदा कर रहे है ।
उन्होने बताया कि राई सरसों में माहूं कीट के लगने की शंकाए बनी हुई है। यह कीट छोटा एवं कोमल शरीर वाला हरे मटमैले भूरे रंग का होता हैए इसके झुण्ड पत्तियोंए फूलोंए डन्ठलों तथा फलियों आदि पर चिपके रहते है एवं रस चूसकर पौधौ को कमजोर कर देते है। इस कीट की रोकथाम के लिये किसान नीम ऑयल 0ण्015 प्रतिण् की 600 मिली या डाइमेथिओएट 30 प्रतिण् की 400 मिलीण् अथवा क्लोरपायरीफास की 400 मिलीण् मात्रा को 300 से 350 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग कर सकते हैं।
सरसों की बंपर पैदावार ने जिले से सटे भिंडए मुरैना और श्योपुर जिले की धरती पर लगे डकैती के कलंक को काफी हद तक धो दिया है। चंबल घाटी में कुल उपजाऊ भूमि से तीन लाख अस्सी हजार हैक्टेयर पर इस वर्ष सरसों का उत्पादन हो रहा है। मुरैना के किसान जहां 1ण्53 लाख हैक्टेयर खेत में पीला सोना उगा रहे हैं वहीं भिंड में एक लाख अस्सी हजार हैक्टेयर और श्योपुर जिले में पचास हजार हैक्टेयर रकबे में तीस क्विंटल तक सरसों की पैदावार मिलने की संभावना है।
जिले की चकरनगर तहसील मे भी किसानों ने बडे स्तर पर सरसों की फसल को उगा रखा है । भिंड जिले के कनावर गांव के रामसजीवन बताते है श् हम लोग अपने खेतो मे सरसो की फसल को इसलिए उगा रहे क्योंकि सरसों में बहुत अधिक लागत नही आ रही है और फायदा भी बहुत अधिक हो रहा है इसी कारण सरसो की फसल को पैदा किया जा रहा है। इस प्रकार लाखों क्विंटल पीले सोने के उत्पादन की उम्मीदों से लालायित होकर किसान और सरकार बेहद खुश हैं ।
सरसों के बेशुमार उत्पादन से चंबल के किसान की गृहस्थी का साल भर का गुजारा चलता है। जाड़ों के मौसम में एक पखवाड़ा ऐसा आता था जब चंबल और क्वारी नदी के आसपास के क्षेत्र सोंहा के पीले फूलों से ढंक जाते थे। दूर से देखने पर मालूम होता था जैसे सोना पानी बनकर नदी में बह रहा हो लेकिन डाकू समस्या के छंटने और ट्यूबवेल नहरों के मार्फत माकूल सिंचाई का इंतजाम हो जाने से सोंहा की जगह आहिस्ता.आहिस्ता सरसों ने ले ली ।
सरसों यानी पीले सोने के उत्पादन को देखें तो मुरैना जिले में हरियाणा से भी अच्छी पैदावार है। चंबल संभाग में इस बार सरसों के अच्छे उत्पादन की उम्मीद बन रही है क्योंकि पूरे चंबल को देखने से ऐसा लगता है कि मानो किसी ने उसे पीले रंग से रंग दिया हो। उल्लेखनीय है कि अब से पच्चीस वर्ष पहले चंबल में दुर्दान्त डाकुओं की बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की आवाज और उनके दिल दहलाने वाले आंतकी कारनामो और अपहरण से सहमे किसानों का कृषि कार्य सूरज की रोशनी में गांव मजरों और पुरा पट्टों के इर्दगिर्द तक ही सीमित रहा था। शाम ढलते ही किसान खेत खलिहान छोड़कर अपने घरों में दुबक जाते थे।
सरसो के कारोबार से जुडे सिंडौस गांव के किशन सिंह राजावत का कहना है कि चंबल मे सरसो की फसल की पैदावार बढने के मुख्य कारण यह माने जा रहे है क्योंकि चंबल इलाके मे फसल के लिए पानी उस तरह से उपलब्ध नहीं हो पाता है जिस ढंग से दूसरे इलाको मे होता है। इस लिहाज से इलाके के लोगो को रूझान सरसो की फसल की ओर बढता चल गया है। डाकुओं की जमीन पर नजर आ रही पीलिमा लोगों को इस कदर आंनदित कर रही है कि इटावा से ग्वालियर का सफर तय करने वाले लोग सडक किनारे खडे होकर अपने अपने फोटो खिंचवा करके खुश हो जा रहे है।