राज्यसभा में सूखे पर हुई बहस के दौरान शरद पवार ने कहा है कि सूखाग्रस्त राज्यों में सबसे भयावह स्थिति उत्तर प्रदेश की है। यूपी के 75 जिलों में से 50 जिले सूखे के प्रकोप में हैं और इससे करीब नौ करोड़ लोग प्रभावित हैं। पवार ने सरकार को आगाह किया कि अगर सूखे का समाधान राजनीति से ऊपर उठकर नहीं किया गया तो हालात और बिगड़ेंगे। सभी विपक्षी दलों ने सरकार से मांग की है कि प्रभावित राज्यों केकिसानों के कर्ज माफ कर फौरन राहत पहुंचाई जा सकती है।
सूखे पर चली करीब चार घंटे के अल्पकालीन बहस के जवाब में राधामोहन सिंह ने औसत से अधिक मानसून की भविष्यवाणी पर भरोसा जताया। हालांकि, उन्होंने सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का ब्यौरा भी पेश किया। लेकिन उनमें सूखे की मार झेल रहे राज्यों के फौरन निदान के लिए ठोस उपाय का खास जिक्र नहीं था। कृषि मंत्री के मुताबिक केंद्र ने सभी प्रभावित राज्यों को 600 दिनों का कंटिंजेंसी प्लान भेज दिया था।
उमा भारती ने भी जल संकट के समाधान के लिए नदियों को जोड़ने के पुराने कार्यक्रमों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन और उनके गुजरात मॉडल की तारीफ करते हुए अपना जवाब पूरा किया। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में नदियों को जोड़ने और जल संरक्षण को जन आंदोलन में बदल कर सरकार इसकेसमाधान की व्यापक योजना पर काम कर रही है।
शरद पवार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक यूपी के बाद मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात की हालत खराब है। मध्य प्रदेश और गुजरात के51 जिले सूखे से प्रभावित हैं। इस कारण चार करोड़ लोगों की जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। महाराष्ट्र के 34 में से 21 जिले सूखे की चपेट में है। पवार ने लातूर में पानी के ट्रेन भेजने के लिए रेल मंत्री को धन्यवाद दिया लेकिनकृषि मंत्री द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर असंतोष जताया।
जदयू सांसद शरद यादव ने जल संसाधन को संवर्ती सूची (कनकरेंट लिस्ट) से हटाकर केंद्रीय सूची में लाने की मांग उठाई। यादव ने कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो पानी के लिए राज्यों केबीच झगड़ा और बढे़गा।