राजकोट, कालेधन को लेकर की गई केंद्र सरकार की कार्रवाई की जिस खबर का अब हर गली-चौराहे पर जिक्र हो रहा है, दरअसल वह खबर छह माह पहले गुजरात के एक स्थानीय अखबार ने प्रकाशित की थी। हालांकि उस वक्त यह खबर सिर्फ लोगों को हल्का-फुल्का गुदगुदाने के लिए प्रकाशित की गई थी।
1 अप्रैल 2016 को प्रकाशित होने वाली इस खबर को प्रकाशित कर अखबार ने लोगों को अप्रैल फूल बनाया था। अगले दिन अखबार ने बाकायदा इस खबर का खंडन प्रकाशित कर इसको अप्रैल फूल के चलते डाली गई खबर बताया था। अखबार में उस वक्त 500 और 1000 के नोट बंद करने की इस खबर ने तब वहां पर तहलका मचा दिया था। लोगों ने इस बाबत कई बार फोन कर पूछा था कि उन्हें यह खबर कहां से मिली। लेकिन जब अगले दिन लोगों को इस खबर की सच्चाई का पता चला तो उनके चेहरे पर महज मुस्कुराहट ही थी। लेकिन आज यह खबर जब हकीकत बनकर सभी के सामने आई है तो सभी हैरत में हैं।
मजे की बात यह है कि अब वही खबर सोशल साइट पर वायरल भी हो गई है। इस बाबत पूछे गए एक सवाल के जवाब में अखबार के संपादक किरिट गनत्र ने बताया कि गुजरात में 1 अप्रैल को अखबार में इस तरह की कोई न कोई खबर छापने की परंपरा है। लिहाजा उनके अखबार ने भी इस परंपरा को निभाते हुए 500 और 1000 के बड़े नोट बंद होने की खबर छापी थी। डेली अकिला में छपी इस खबर को पढ़कर कई पाठकों को काफी झटका भी लगा था। किरिट ने बताया कि यह केवल एक संयोग ही है कि छह माह बाद यही खबर हकीकत बनकर हमारे सामने है। इस खबर को छापने के पीछे अखबार का मकसद अपने पाठकों को गुदगुदाने का ही था। उस वक्त अखबार ने एनडीए सरकार द्वारा 500 और 1000 के नोटों को कालाधन रोकने के मकसद से उठाया गया कदम बताया था। लेकिन उस वक्त जो चीजें अखबार ने छापी थीं, वहीं चीजों का जिक्र 9 नवंबर को प्रधानमंत्री ने बड़े नोट बंद करने के ऐलान के साथ किया। पीएम मोदी के इस ऐलान के बाद एक बार फिर से अखबार ने इस खबर को सभी बिंदुओं के साथ फिर प्रकाशित किया।