समाजवादी पार्टी सरकार की ड्रीम योजना समाजवादी पेंशन योजना को इलाहाबाद हाइकोर्ट से हरी झंडी मिल गई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाजवादी पेंशन योजना को वैध बताया है, जिससे अखिलेश यादव सरकार ने राहत महसूस की है.हिन्दू फ्रंट सोशल जस्टिस ने जनहित याचिका दाखिल कर समाजवादी पेंशन योजना रोकने की अपील की थी. याचिका में का गया था कि पेंशन योजना में लाभार्थियों में 90 फीसदी अल्पसंख्यक संप्रदाय के धर्म विशेष के लोग शामिल हैं. ऐसे में योजना में धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है.
उत्तर प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह, उदय प्रताप सिंह व अशोक कुमार लाल ने कोर्ट में तर्क दिया कि समाजवादी पेंशन योजना के तहत प्रथम चरण में 40 लाख परिवारों को लाभ पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है.
दायर याचिका में कहा गया था कि समाजवादी पेंशन योजना धर्म विशेष के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए शुरू की गई है. सरकार की ओर से दलील दी गई कि संविधान के मुताबिक सामाजिक रूप से अति पिछड़े लोगों के उत्थान के लिए राज्य सरकार को योजना लागू कर सकती है. इस दलील को कोर्ट ने भी मान लिया.कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया. साथ ही कहा कि योजना जीवनयापन करने में असमर्थ आर्थिक और सामाजिक रूप से अति पिछड़ों के उत्थान के लिए लागू की गई है.जस्टिस वीके शुक्ल और न्यायमूर्ति वीके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि अनुच्छेद 15 के तहत राज्य सरकारों को ऐसे नियम बनाने का अधिकार है.
समाजवादी पेंशन योजना में अल्पसंख्यकों सहित गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे सभी नागरिकों को प्रतिमाह पांच सौ रुपये से सात सौ रुपये तीन वर्ष के लिए दिया जाना है. सरकार ने लाभार्थियों पर शर्त लगायी गयी है कि महिला को प्रसव स्वास्थ्य केंद्र में कराना होगा, बच्चों को सभी टीके लगवाने होंगे तथा बच्चों को स्कूल भेजना अनिवार्य होगा. दो पहिया वाहन रखने वालों को पेंशन से बाहर रखा गया है. योजना गरीबों के लिए है. धार्मिक भेदभाव नहीं किया गया है.उत्तर प्रदेश सरकार ने समाजवादी पेंशन योजना को सात फरवरी 2014 को लागू की थी.