१४ साल बाद गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले में अदालत ने सुनायी सजा

Gulberg Societyअहमदाबाद, एसआईटी  स्पेशल कोर्ट ने  गुलबर्ग सोसाइटी मामले में दोषियों को सजा सुना दी । 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा दी गई है। 12 को 7 साल और एक को 10 साल की सजा सुनाई गई है। एसआईटी कोर्ट ने 2 जून को फैसला सुनाया था। स्पेशल सीबीआई जज पीबी देसाई ने गुलबर्ग सोसाइटी मामले में 66 आरोपियों में से 24 को दोषी ठहराया था।कोर्ट ने अपने फैसले में विहिप नेता अतुल वैद्य समेत 13 अन्य आरोपियों को हल्के अपराधों का दोषी ठहराया। 2002 के गुजरात दंगों का ये मामला उन नौ मामलों में से एक है जिसकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने जांच की थी।

28 फरवरी 2002 को गुलबर्ग सोसाइटी में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी। यह घटना साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एस-6 डिब्बे में गोधरा स्टेशन के पास आग (27 फरवरी, 2002) लगाए जाने के एक दिन बाद हुई थी। इस मामले में कुल 66 आरोपियों में से छह की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई। 24 दोषियों में से 11 पर हत्या का आरोप था।

फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आपराधिक साजिश का कोई सबूत नहीं है और आईपीसी की धारा 120 बी के तहत आरोप हटा दिए।
कोर्ट ने जिन लोगों को बरी किया, उनमें बीजेपी के मौजूदा कॉर्पोरेटर (पार्षद) बिपिन पटेल, तब के पुलिस इंस्पेक्टर केजी अर्डा और कांग्रेस के पूर्व कॉर्पोरेटर मेघ सिंह चौधरी हैं। सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में बनी एसआइटी ने गुलबर्ग सोसायटी मामले में 66 लोगों को अरेस्ट किया था। अरेस्ट लोगों में नौ बेल पर थे, जबकि बाकी 14 साल से जेल में हैं। 4 की मौत हो गई है। एसआइटी ने मामले में 335 विटनेस और 3000 डॉक्युमेंट्स पेश किए। इस हत्याकांड में 28 फरवरी, 2002 को 39 लोगों के शव गुलबर्ग सोसाइटी में मिले थे। बाकी 30 लोगों के शव नहीं मिलने पर 7 साल बाद उन्हें डेड मान लिया गया।

गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड गुजरात दंगों के 10 बड़े दंगों में है। इस मामले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगे थे। 2010 में उनसे पूछताछ हुई थी। बाद में एसआईटी ने क्लीनचिट दे दी।

 

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