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131 किलो वजन और 6 फीट 3 इंच की कदकाठी के बावजूद मंगला राय रहे सात्विक और शाकाहारी

गाजीपुर, वीर शहीदों की धरती कहे जाने वाली उततर प्रदेश के गाजीपुर की माटी अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त पहलवान ‘रुस्तम ए हिन्द’ मंगला राय सहित भारत के अनेक प्रसिद्ध पहलवानो की धरती रही है।

हिन्द केसरी मंगला राय के नाम पर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कुल पांच खिताब हैं। सन् 1916 में मंगला राय का जन्म गाजीपुर जिले के जोगा मुसाहिब गांव में हुआ था। 16 साल की उम्र में मंगला राय ने अखाड़े में अभ्यास करना शुरू कर दिया था। 1933 में पहली बार मंगला राय ने अपने मुकाबले में खड़े दूसरे पहलवान के खिलाफ ताल ठोंकी थी।

उनके पिता का नाम रामचंद्र राय था। रामचंद्र राय और उनके छोटे भाई राधा राय अपने जमाने के मशहूर पहलवान थे। उन्ही की तरह मंगला राय और उनके छोटे भाई कमला राय ने भी कुश्ती में काफी नाम और यश प्राप्त किया। रामचंद्र राय और राधा राय दोनों अपने जवानी के दिनों में जीविकोपार्जन के चलते म्यांमार (बर्मा) के रंगून में रहते थे जहाँ दोनों एक अखाड़े में रोजाना अभ्यास और कसरत करते थे। दोनो भाइयों में राधा राय ज्यादा कुशल पहलवान थे और उन्होंने ही अपने दोनों भतीजों को कुश्ती की पहली तालीम दी और दाव-पेंच के गुर सिखाए।

एक छोटे से गांव के साधारण किसान परिवार में जन्म लेने के बावजूद स्व. मंगला राय जी ने न सिर्फ अपने मुल्क में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रतिभा और कुश्ती-कला से राष्ट्र को गौरवान्वित किया। मंगला राय को शुरुआती प्रसिद्धि तभी मिल गई थी जब वो रंगून से अपने वतन वापस लौट कर आए थे। वापस आते ही उन्होंने उत्तर भारत के मशहूर पहलवान मुस्तफा हुसैन को अखाड़े में ललकारा। इलाहाबाद में हुई इस कुश्ती में मुस्तफा ने इस नौजवान को शुरु में हल्के में लिया लेकिन इस नौजवान ने जब मुस्तफा के खतरनाक दांव को काटकर अपना प्रिय दांव ‘टांग’ और ‘बहराली’ का प्रहार किया तो महाबली मुस्तफा भहराकर चारो खाने चित हो गया। दर्शकों को सांप सूंघ गया। किसी को अपनी आंखो पर यकीन ही नहीं हो रहा था। लेकिन मंगला राय ने तो संयुक्त प्रांत में कुश्ती का इतिहास पलट दिया था। भारतीय कुश्ती में एक नए सितारे ने रोशनी बिखेर दी थी। मंगला राय की प्रसिद्धि जंगल की आग की तरह फैल गई। नतीजा ये हुआ कि बत्तीस साल के मंगला राय को साल भर के भीतर लगातार सौ कुश्तियां लड़नी पड़ीं।