पीलीभीत, उत्तर प्रदेश की बांसुरी नगरी के नाम से विश्व विख्यात पीलीभीत के रईस अहमद ने 16 फिट की बांसुरी का निर्माण कर नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है और गिनीज बुक में अपनी इस उपलब्धि को दर्ज कराने में सफलता हासिल की है।
जिले में आज समाप्त हुये तीन दिवसीय बांसुरी महोत्सव में बाकायदा 16 फिट की बांसुरी में स्वर फूंके गए और इसी के साथ पीलीभीत ने पूरे विश्व में इतिहास रच दिया। इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड और वर्ल्ड रिकार्ड्स इंडिया की ओर से वर्ल्ड रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट दिया गया। इससे पहले सबसे बड़ी 11 फिट की बांसुरी बनाने का रिकॉर्ड गुजरात के जामनगर के नाम था। करीब 600 किलो धातु से बनी इस बांसुरी को नगर के प्रवेश द्वार पर स्मारक के तौर पर स्थापित किया गया है।
शहर के ड्रमंड राजकीय इंटर कॉलेज के परिसर में शुक्रवार को बांसुरी महोत्सव का शानदार आगाज हुआ था। तीन दिवसीय कार्यक्रम के लिए कॉलेज परिसर में व्यवस्थाओं के नाम पर जिला प्रशासन पूरी तरह से फेल साबित हुआ। शनिवार की रात जिले ने बांसुरी महोत्सव में विश्व की सबसे बड़ी बांसुरी बनाने का रिकॉर्ड कायम किया।
जिले में बांसुरी का उत्पादन राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रख्यात है। पीलीभीत देश में एकमात्र ऐसा जिला है, जो बांसुरी के उत्पादन के लिए जाना जाता है। पीलीभीत की मशहूर बांसुरी के चलते इस जिले को बांसुरी नगरी भी कहा जाता है। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, राजेंद्र प्रसन्ना जैसे ख्यातिप्राप्त बांसुरी वादकों की पसंद बनी पीलीभीत की बांसुरी देश-दुनिया में अपना नाम रोशन कर रही है।
दस साल पहले यहाँ करीब 500 से ज्यादा परिवार बांसुरी बनाते और उसकी आय से ही बसर करते थे। समय के साथ अब हालात बदल गए हैं। इनकी संख्या घटकर 100 के करीब ही रह गई है और आने वाले दिनों में कम ही होती जा रही है। हाथ के हुनर का उचित मूल्य न मिल पाने के चलते जीविका और रोजी-रोटी पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं।
बांसुरी के हुनरमंद कारीगर खुर्शीद, अज़ीम, इसरार और गुड्डू का कहना है कि आसाम से आने वाले बांस के यातायात की समस्या है। पहले ये बांस आसाम से ट्रेन द्वारा बड़े लठ्ठे के रूप में आता था। कोरोना काल मे जब ट्रेनें बंद हो गई तो उनका बांस अब ट्रक में छोटे टिकड़ों के रूप में बोरों में भरकर आने लगा। लाने-ले जाने में बहुत सारा बांस टूट जाता है। सरकार इस हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री की ओर ध्यान दे। राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में इन कारीगरों के काम को प्रदर्शित करने को निःशुल्क बढ़ावा मिले। राहत फण्ड की समस्या हल होनी ही चाहिए।