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अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन बिल पारित

राज्यसभा ने rajyasabha1 कर दिया है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत के राज्यसभा में बिल पेश करने के दो मिनट के भीतर ही यह बिल पास हो गया। इस बिल पर सत्तापक्ष और विपक्ष को कोई आपत्ति नहीं थी लिहाज़ा इसको बगैर चर्चा के पारित करने पर रज़ामंदी बन गई। प्रतिपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने इस पर यह कहकर आपत्ति जताई कि सत्तारूढ़ पार्टी खुद ही मुद्दे को जटिल बना रही है। हम कह चुके हैं कि एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक को हम पारित करना चाहते हैं। मीडिया की खबरों की वजह से सरकार अब इसे पूरक कार्य सूची में लाई है। यह केवल जनता के बीच विपक्ष को बदनाम करने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि मामले को मंगलवार को लिया जा सकता है और इसे पहले नंबर पर सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। इसके बाद उपसभापति पी.जे. कुरियन ने एससी/एसटी से संबंधित विधेयक लिया जिसे बिना किसी चर्चा के सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। विधेयक पारित होने पर सदस्यों ने मेजें थपथपाकर खुशी व्यक्त की।

इस बिल से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण क़ानून को और मज़बूत बनाया गया है। इसमें कई तरह के कार्यों को अपराध के दायरे में लाया गया है।
नए बिल में दलितों के कल्याण से संबंधित कामों में कर्तव्य का निर्वाह करने में लापरवाही बरतने वाले सामान्य वर्ग के लोक सेवकों के लिए छह महीने से लेकर एक साल की सज़ा का प्रावधान किया गया है। नए बिल में दलितों को जूतों की माला पहनाने, जबरन सर पर मैला ढुलाने, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार की धमकी देने, दलित वोटर पर किसी ख़ास उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने और ग़लत ढंग से दलितों की ज़मीन हथियाने पर भी कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया है। बिल में जिला स्तर पर विशेष अदालत गठित करने की बात कही गई है जिसमें विशिष्ट लोक अभियोजक होंगे ताकि सुनवाई तेजी से हो सके। उप सभापति ने कहा कि इस बिल को पारित करना मील का पत्थर साबित हुआ है।
विधेयक में मानव या पशु का शव ले जाने या सिर पर मैला ढोने के लिए मजबूर करने वाले लोगों पर सख्त कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है। साथ ही एससी/एसटी वर्ग के लोगों के लिए विशेष अदालतों का गठन होगा। उन पर अत्याचार पर अंकुश लगेगा। विधेयक में इस वर्ग के पीड़ित लोगों के लिए पुनर्वास का प्रावधान किया गया है। इस विधयेक के जरिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 में संशोधन किया गया है।