नई दिल्ली, नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रूप में गोरखपुर से 29 साल बाद दूसरा मुख्यमंत्री बनाया गया है। गोरखपुर से पहले मुख्यमंत्री के रूप में वीर बहादुर सिंह (33 महीने) 24 सितंबर 1985 से 24 जून 1988 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे। कांग्रेस हाईकमान द्वारा अचानक उन्हे हटा दिए जाने के बाद 29 साल में राजनीतिक हालात कभी ऐसे बने ही नहीं कि गोरखपुर के लोग मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने की सोच भी सकें।
कांग्रेस के दौर में दलित नेता महावीर प्रसाद को वीरबहादुर सिंह का समकक्ष माना जाता था लेकिन वह मुख्यमंत्री की दौड में नारायणदत्त तिवारी से आगे नहीं जा सके। हालांकि बाद में वह हरियाणा के राज्यपाल बनाये गये। 1991 में जब भाजपा का सुनहरा दौर आया तो कल्याण सिंह जैसे कद्दावर नेता के समकक्ष गोरखपुर या आसपास के क्षेत्र में कोई दूसरा नाम नहीं था। सपा-बसपा के दौर में मुलायम सिंह, अखिलेश और मायावती के कद का कोई नेता तक नहीं दिखा।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में देश में नरेन्द्र मोदी के साथ गोरखपुर और आसपास में योगी का नाम चर्चा में आने पर गोरखपुर को मुख्यमंत्री पद के दावेदार का सपना देखने का मौका मिला और वह सुनहरी घडी आ ही गयी। मोदी-योगी नाम लोगों की जुबान पर चढने लगा। 2016 में बात तब और आगे बढ़ी जब पिछले मार्च में भारतीय संत सभा ने गोरखनाथ मंदिर परिसर में हुई चिंतन बैठक में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नेताओं की उपस्थिति में प्रस्ताव पारित कर भारतीय जनता पार्टी से मांग की कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाते हुए 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा जाए।
उसी दौर में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने योगी को पर्याप्त महत्व देना शुरू कर दिया। बूथ सम्मेलनों में अमित शाह ने जब कहना शुरू किया कि वर्ष 2017 का विधानरसभा चुनाव योगी के नेतृत्व में पूर्वांचल में लड़ा जाएगा तब लगा कि पार्टी योगी का पूरा उपयोग करेगी। चुनाव करीब आया, योगी के बारे में प्रचारित किया जाने लगा कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन्हें महत्व नहीं दे रहा है तब एक बार गोरखपुर के बाशिन्दो को मायूसी हुई।
पूर्वांचल में प्रचार के लिए भाजपा की ओर से चार चेहरे तय किए गए तो उनमें योगी की बजाय कलराज मिश्र और उमा भारती की फोटो देख लोग चौंक गए। प्रचार समिति में भी योगी का नाम नहीं आया तो मान लिया गया कि भाजपा यह चुनाव योगी को किनारे रख कर ही लड़ेगी। उसी बीच योगी की हिन्दू युवा वाहिनी के कुछ पदाधिकारियों ने उम्मीदवार न बनने पर बगावत कर दी। उन्होंने तर्क दिया कि योगी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनवाने के लिए यह सब कर रहे हैं।
योगी को पार्टी नेतृत्व को समझाना पड़ा कि इस बगावत से उनका कोई लेना देना नहीं है। संयोग से चुनाव में बागियों के सपने चकनाचूर भी हो गए। योगी के लिए वे बहुत खराब दिन थे। अचानक दूसरे तरह की सूचनाएं आने लगीं कि अमित शाह योगी के निकट सम्पर्क में हैं। उन्हें दिल्ली बुला कर टिकट से लेकर प्रचार तक की रणनीति पर विमर्श कर रहे हैं। फिर सूचना आई कि भाजपा ने उन्हें स्टार प्रचारक बनाया है और उनका प्रदेश भर में तूफानी दौरा कराएगी। इसके बाद एक हेलीकाप्टर योगी के नाम ही कर दिया गया।
फिर तो योगी पश्चिमी यूपी से पूर्वांचल तक रोज ही चार-चार सभाएं करने लगे। समय मिलने पर उनका रोड शो भी होता था। उसी बीच की सूचनाएं आईं कि योगी का हिन्दुत्व कार्ड रंग ला रहा है और मोदी के बाद योगी की सभाओं की सबसे ज्यादा मांग आ रही है। प्रचंड बहुमत की समीक्षा में भाजपा ने माना कि यह मोदी मैजिक का तो कमाल है ही लेकिन योगी के हिन्दुत्व के एजेंडे ने भी अपना रोल अदा किया है। उसी समय से योगी मुख्यमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदार माने जाने लगे।
रेस में जितने भी नाम गिनाए जाते थे, योगी का नाम आगे-पीछे जरूर रहता था। गत शुक्रवार को चारों ओर से मनोज सिन्हा के मुख्यमंत्री बनने की चर्चाओं के बीच योगी खामोशी से दिल्ली से गोरखपुर आ गए। रात में अमित शाह ने जब उनसे बात की तब पता चला कि वह तो गोरखपुर में हैं। तब शाह ने उन्हें चार्टर्ड प्लेन से कल दिल्ली बुलाया और शाम तक योगी प्रदेश के 32वें और गोरखपुर के दूसरे मुख्यमंत्री बन गए।