नई दिल्ली, जाटों के एक समूह ने आज उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर मांग की है कि अगर हरियाणा में जाट समुदाय को हाल में आरक्षण का लाभ देने के फैसले के खिलाफ कोई याचिका दी गई है तो उस पर सुनवाई हो। अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति (एआईजेएएसएस) ने उच्चतम न्यायालय में आज दोपहर दाखिल अपनी याचिका में कहा, प्रतिवादी (राजकुमार सैनी) की तरफ से अगर कोई स्थगन (जाट आरक्षण देने के निर्णय) याचिका दी गई है तो कैविएटर पेश होना चाहते हैं और माननीय अदालत के संज्ञान में मामले की सत्यता और तथ्यों को लाना चाहते हैं। एआईजेएएसएस के अध्यक्ष हवा सिंह सांगवान ने कुरूक्षेत्र के सांसद सैनी के हाल के कथित बयान का जिक्र किया है जिसमें सांसद ने कहा था कि जाट समुदाय को आरक्षण का लाभ देने के खिलाफ वह उच्चतम न्यायालय जाएंगे।
जाटों और पांच अन्य समुदायों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण मुहैया कराने का विधेयक हरियाणा की विधानसभा में 29 मार्च को पारित किया गया। समुदाय ने तीन अप्रैल को आरक्षण की मांग मानने की समय सीमा तय की थी। समुदाय की मुख्य मांग को मानते हुए विधेयक में जाटों और पांच अन्य जातियों जाट सिख, रोर, बिश्नोई, त्यागी और मुल्ला जाट (मुस्लिम जाट) के लिए पिछड़ा श्रेणी वर्ग में सी श्रेणी का गठन कर आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसमें जाटों और पांच अन्य जातियों को सरकारी और सरकार पोषित शैक्षणिक संस्थानों और तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरियों में दस फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव है। इसमें जाटों और बीसी सी श्रेणी की पांच अन्य जातियों को प्रथम और द्वितीय श्रेणी की नौकरियों में छह फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव है। जाटों ने 18 मार्च से अपना आंदोलन फिर से शुरू करने की चेतावनी दी थी लेकिन हरियाणा की भाजपा सरकार ने उन्हें विधेयक लाने का आश्वासन दिया था जिसके बाद इसे तीन अप्रैल तक स्थगित कर दिया गया। बीसी श्रेणी में आरक्षण की मांग करते हुए उन्होंने फरवरी में आंदोलन किया था। हिंसक आंदोलन में 30 लोगों की मौत हो गई थी और 320 व्यक्ति जख्मी हो गए थे और इससे संपत्ति को काफी नुकसान हुआ था।