दुनिया का सैन्य इतिहास यूं तो वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है, परंतु रेजांगला की गौरवगाथा हर लिहाज से शहादत की अनूठी दास्तां हैं। बिना किसी तैयारी के अहीरवाल के वीर जवानों ने आज ही के दिन 18 नवंबर 1962 को लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर शहादत का ऐसा इतिहास लिखा था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
इसे रेजांगला युद्ध के नाम से जाना जाता है। रेजांग ला जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में चुशुल घाटी में एक पहाड़ी दर्रा है। 1962 के भारत -चीन युद्ध में 13 कुमाऊं दस्ते का यह अंतिम मोर्चा था। इसीलिए इसे रेजांग ला युद्ध के नाम से जाना जाता है।
यह यहां के वीरों के जज्बे का ही परिणाम था, जिसके चलते चीन सीज फायर के लिए मजबूर हो गया था। बेशक भारत को इस युद्ध में अधिकारिक रूप से जीत नसीब नहीं हुई, परंतु सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाने वाली रेजांगला पोस्ट पर यहां के जांबाज जवानों ने हजारों चीनी सैनिकों को मार गिराया था।
बड़ी मात्रा में गोला-बारूद और तोप के साथ चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के करीब 5,000 से 6,000 जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशुल घाटी की हिफाजत पर तैनात थी।
रेजांगला पोस्ट पर लड़ रहे वीरों के सामने परीक्षा की घड़ी 17 नवंबर की रात उस समय आई, जब तेज आंधी-तूफान के कारण रेजांगला की बर्फीली चोटी पर मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में मोर्चा संभाल रहे सी कंपनी से जुड़े इन जवानों का संपर्क बटालियन मुख्यालय से टूट गया। ऐसी ही विषम परिस्थिति में 18 नवंबर को तड़के चार बजे युद्ध शुरू हो गया।
लद्दाख की बर्फीली, दुर्गम व 18 हजार फुट ऊंची इस पोस्ट पर सूर्योदय से पूर्व हुए इस युद्ध में यहां के वीरों की वीरता देखकर चीनी सेना कांप उठी। ख़ास बात ये रही की जब गोलियां खत्म हो गई तो जवानों ने हथियारों का इस्तेमाल लाठियों के रूप में किया और रेजांगला पोस्ट पर दुश्मन का कब्जा होने नहीं दिया। इस युद्ध में 124 में से कंपनी के 114 जवान शहीद हो गये, लेकिन उन्होंने चीन के आगे बढ़ने के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
13 कुमाऊं के 120 जवानों ने चीन के 1,700 के करीब सैनिक मार गिराए । उनमें से 114 मातृभूमि की रक्षा के प्रति खुद को कुर्बान कर दिया। 6 जिंदा बचे थे जिसे चीनी सैनिक युद्ध बंदी बनाकर ले गए थे लेकिन सभी चमत्कारिक रूप से बचकर निकल गए।
उस युद्ध में जो छह जवान बचे थे उनमें से एक मानद कैप्टन रामचंद्र यादव थे। वह 19 नवंबर को कमान मुख्यालय पहुंचे थे और 22 नवंबर को उनको जम्मू स्थित एक आर्मी हॉस्पिटल में ले जाया गया था। उन्होंने युद्ध की पूरी कहानी बताई। यादव का मानना है कि वह जिंदा इसीलिए बचे ताकि पूरे देश को 120 जवानों की वीरगाथा सुनाए।
उनके मुताबिक, शुरू में चीन की ओर से काफी उग्र हमला किया गया। दो बार पीछे धकेले जाने के बाद उनका हमला जारी रहा। जल्द ही भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म हो गया और उन्होंने नंगे हाथों से लड़ने का फैसला किया। यादव ने नाईक राम सिंह नाम के एक सैनिक की कहानी बताई जो रेसलर थे। उन्होंने अकेले दुश्मन के कई सैनिक मार गिराए जब तक कि दुश्मन की ओर से उनके सिर में गोली नहीं मार दी गई।
पीकिंग रेडियो ने भी तब केवल रेजांगला पोस्ट पर ही चीनी सेना की शिकस्त स्वीकार की थी। विश्व इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी विरोधी सैनिक देश ने दूसरे देश के सैनिको को इतना सम्मान दिया हो। रेजांगला युद्ध में चीन की सेना ने भारतीय सेना के साथ एेसा ही किया था ।
हमारे वीर शेरों की लाशों को चीनियों ने कम्बल से ढका और उनके सिर के साथ उनकी बन्दूक को खड़ा किया और एक कार्ड पर “बहादुर” लिख कर उनके सीने पर रख दिया और फिर रेडियो पीकिंग से खबर दी की चीन का सबसे ज्यादा नुक्सान रेजांगला में हुआ क्योंकि एक बहुत ही बहादुर कौम ने रेजांगला में मुकाबला किया था ।
रेजांगला युद्घ में शहीद हुए सैनिकों में मेजर शैतान सिंह पीवीसी जोधपुर के भाटी राजपूत थे, जबकि नर्सिग सहायक धर्मपाल सिंह दहिया (वीर चक्र) सोनीपत के जाट परिवार से थे। कंपनी का सफाई कर्मचारी पंजाब का रहने वाला था। इनके अलावा शेष सभी जवान यादव जाति के थे। इनमें से भी अधिकांश हरियाणा के गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ व सीमा से सटे अलवर जिले के रहने वाले थे।
रेजांगला पोस्ट पर दिखाई वीरता का सम्मान करते हुए भारत सरकार ने कंपनी कंमाडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार पदक परमवीर चक्र से अलंकृत किया था तथा इसी बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना मैडल व एक को मैंशन इन डिस्पेच का सम्मान दिया था। इसके अलावा 13 कुमायूं के सीओ को एवीएसएम से अलंकृत किया गया था। भारतीय सेना के इतिहास में किसी एक बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक अब तक कभी नहीं मिले।
सरकार ने चार्ली कंपनी की वीरता को देखते हुए बाद में एक अहम निर्णय लेते हुए कंपनी का दोबारा गठन किया तथा इसका नाम रेजांगला रखा। रेवाड़ी और गुड़गांव में रेजांगला के वीरों की याद में स्मारक बनाए गए हैं। हरियाणा के रेवाड़ी गाँव में बने स्मारक पर दर्ज है की इसी लड़ाई में १,७०० चीनी सैनिक मारे गए थे। रेवाड़ी में हर साल रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है और वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
रेज़ांग ला पर भी एक युद्ध स्मारक है जिसपर थोमस बैबिंगटन मैकाले की कविता “होरेशियो” के कुछ अंश के साथ उस मुठभेड़ की स्मृति लिखी हुई है-
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