नई दिल्ली, अरुण गुलाब अहीर या डान अरूण गवली या डैडी या विधायक अरूण अहीर ये सारे नाम एक ही व्यक्ति के हैं। 1993 के बम विस्फोटों के बाद, जब मुंबई पाकिस्तान मे बैठे डान दाऊद से सहमी हुई थी, उस समय बाल ठाकरे को भी हिंदुस्तान मे दाऊद इब्राहिम से टक्कर लेने के लिये एक ही शेर नजर आया था, वह है अरूण गवली। उस समय बाल ठाकरे ने कहा था कि अगर पाकिस्तान के पास दाऊद है, तो हमारे पास गवली है।
अरुण गुलाब अहीर, को उनके समर्थकों के बीच प्यार से “डैडी” के नाम से जाना जाता है। डैडी यानि अरूण गवली की विशेषता यह है कि वे कई बार जेल में आते जाते रहे हैं और 10 साल से ज्यादा समय न्यायिक हिरासत में बिताया है, परन्तु वास्तव में उन्हे कभी भी दोषी नहीं ठहराया गया है। आज भी वह पैरोल पर जेल से बाहर हैं।
अरुण गवली मुंबई में सातरस्ता के भायखला में दगडी चाल में रहते हैं। अरुण गवली का जन्म 17 जुलाई 1955 को कोपरगाव, अहमदनगर जिला, महाराष्ट्र मे अहीर यानि यादव जाति मेंं हुआ। उन के पिता गुलाबराव अहीर मिल में काम करके घर चलाते थे।
जब पापा गवली को उसके पूर्व सहयोगियों ने मार डाला, तब अरूण गुलाब अहीर ने गवली गिरोह शुरू कर लिया, जिसने उस समय बंबई मे संपत्ति के विवादों और ख़त्म होती हुई मिलों में मजदूर संघों के फसाद के मामले डील किये।
1993 बम विस्फोटों के बाद, अरूण गवली अचानक हिन्दू डान बन गये। जिसे शिव सेना और बाल ठाकरे का सक्रिय समर्थन प्राप्त हुआ। उस समय बाल ठाकरे ने कहा था कि अगर पाकिस्तान के पास दाऊद है, तो हमारे पास गवली है।
परन्तु बाद में ठाकरे और शिवसेना के साथ गवली संबंध टूट गए। उस समय कहा जाता है कि अरूण गवली के लड़कों ने निर्दयता से कई शिवसेना विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को मार दिया। मुंबई मे अब तक निडर रहने वाले शिवसेना के सदस्य बहुत बुरी तरह डर गए। अरूण गवली ने शिवसेना के छक्के छुड़ा दिए थे।
जिसके बाद शिव सेना ने गवली से नाता तोड़ने में ही भलाई समझी। इन सबकी वजह से कई बार गवली जेल भी गए । अरूण गवली पर आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि अधिनियम के तहत 1993 मे आरोप लगाये गए और चार साल की सज़ा सुनाई गयी। उसे मुंबई के केन्द्रीय जेल में रखा गया। लेकिन शिवसेना कोर्ट में कुछ साबित नहींं कर सकी।
कहा जाता है कि जेल भी अरूण गवली के लिए एक सुरक्षित अड्डा था, जहाँँ से गवली को अपने प्रतिद्वंदियों दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील और छोटा राजन गिरोहों के द्वारा किये गए हत्या के प्रयासों को रोकने में मदद मिली। मोबाइल फोन और अपनी इच्छुक जेल और पुलिस अधिकारियों की मदद के साथ, गवली नासिक, पुणे और येरावाडा में जेल में से ही अपहरण, जबरन वसूली और हत्या के आपराधिक साम्राज्य को बड़ी कुशलता और बेरहमी के साथ चलाता रहा।
यहीं पर, अन्य दलों से आये अपराधियों और असंतुष्ट नेताओं से अरूण गवली ने नया राजनीतिक दल, अखिल भारतीय सेना तैयार कर लिया। गवली 1997 में जेल से मुक्त हो गये और शिव सेना से नाता तोड़ कर अखिल भारतीय सेना बना ली।
1997 और 2004 के बीच, गवली को 15 से अधिक मामलों में गिरफ्तार किया गया । लेकिन इनमें से किसी में भी उसे दोषी नहीं ठहराया जा सका। जाहिर तौर पर उसने अपराध को छोड़ दिया है, फिर भी वह मुंबई में रहने वाला एकमात्र डॅान है। 2004 में उनको अखिल भारतीय सेना उम्मीदवार के रूप में मुंबई चिंचपोकली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से एक विधायक चुना गया।
राजनीति में प्रवेश करने और महाराष्ट्र विधान सभा में सदस्य बनने के फैसले ने यह सुनिश्चित कर दिया कि अब अरूण गवली को पुलिस के द्वारा “एनकाउन्टर या मुठभेड़” में मारा नहीं जा सकता। लेकिन गवली के राजनीतिक प्लान को उस समय बड़े झटके का सामना करना पड़ा जब सगा भतीजा और पार्टी का विधायक, सचिनभाऊ अहीर, खुले तौर पर अरूण गवली के विरोध में चुनाव मे खडा़ हो गया और शरद पवार की एन सी पी में शामिल हो गया। उसके बाद उसने एनसीपी टिकेट पर लोक सभा चुनाव में गवली के खिलाफ़ चुनाव लड़ा, जिसमें दोनों की हार हुई। गवली की बेटी को अबकी बार बृहन्मुंबई नगर निगम की पार्षद चुना गया है।
अरूण गवली के जीवन से प्रभावित होकर उनपर कई फिल्में भी बनीं है। 2015 में मराठी फिल्म “दगडी चाल” मुख्यतः अरुण गवली के जीवन पर आधारित है , जिसमें मकरंद देशपांडे ने डैडी का रोल किया है । 2017 की हिंदी फिल्म “डैडी” अरूण गवली के जीवन पर आधारित है, जिसमें बालीवुड अभिनेता अर्जुन रामपाल को गवली के रूप में दिखाया गया है।