लखनऊ, नवरात्र और पितृपक्ष के बीच इसबार कई दिनों का अंतर होगा , ये संयोग 165 साल बाद आ रहा है।
हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है और घट स्थापना के साथ नौ दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है। यानी पितृ अमावस्या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो कि इस साल नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिमास लग जाएगा। अधिमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा।
भागवताचार्य बृजेश तिवारी ने बताया कि आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब 165 साल बाद होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि लीप ईयर होने के कारण ऐसा हो रहा है। इसलिए इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, इस बार पांच महीने का होगा।
उन्होंने बताया कि ज्योतिष के अनुसार तो 160 साल बाद लीप ईयर और अधिमास दोनों ही एक साल में हो रहे हैं। चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस काल में पूजन पाठ, व्रत उपवास और साधना का विशेष महत्व होता है।
पंडित तिवारी ने बताया कि इस दौरान देव सो जाते हैं, देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागृत होते हैं, इसीलिए इस वर्ष 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे। इसके अगले दिन अधिमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा, उसके बाद 17 अक्टूबर से नवरात्रि व्रत रखे जाएंगे तथा 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। उसी के साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे तभी शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू होंगे। बताया कि पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह का अधिमास होगा। यानी दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिमास लगने के कारण इस बार दशहरा 26 अक्टूबर को और दीपावली भी काफी बाद में 14 नवंबर को मनाई जाएगी।
सं भंडारी
वार्ता
ख्यातिलब्ध कथावाचक श्री तिवारी ने क्या होता है अधिक मास बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है, इस तरह दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है, इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है। उन्होंने कहा कि अधिकमास को कुछ स्थानों पर मलमास भी कहते हैं। दरअसल इसकी वजह यह है कि इस पूरे महीने में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है, इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। श्री तिवारी के अनुसार मलमास में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। उनके अनुसार पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक ऐसा माना गया है कि मलिनमास होने के कारण कोई भी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और कोई भी इस माह के देवता नहीं बनना चाहते थे, तब मलमास ने स्वयं श्रीहरि से उन्हें स्वीकार करने का निवेदन किया और श्रीहरि ने इस महीने को अपना नाम दिया पुरुषोत्तम। तब से इस महीने को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि इस महीने में भागवत कथा सुनने और प्रवचन सुनने का विशेष महत्व माना गया है। साथ ही दान पुण्य करने से सभी के लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं।