नई दिल्ली, 1 दिसम्बर 1997 की रात अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 58 लोगों की हत्या की गई थी। मारे गए लोगों में 16 बच्चे, 27 महिलाएं और कई बूढ़े शामिल थे। मरने वालों में ज्यादातर दलित थे। निचली अदालत ने इस अपराध को ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ माना था।
पटना की एक विशेष अदालत ने आज ही के दिन 58 दलितों की हत्या के मामले में 16 दोषियों को फांसी और 10 को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी। पटना सिविल कोर्ट के एडीजे विजय प्रकाश मिश्र ने 7 अप्रैल 2010 को 16 को फांसी और 10 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।लेकिन 10 अक्टूबर 2013 को पटना हाई कोर्ट के जस्टिस वी.एन. सिन्हा और जस्टिस ए.के. लाल की बेंच ने इन सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
जिन लोगों को फांसी की सजा से बरी किया गया है, वे हैं:- गिरजा सिंह, सुरेन्द्र सिंह, अशोक सिंह, गोपाल शरण सिंह, बालेश्वर सिंह, द्वारिका सिंह, बिजेन्द्र सिंह, नवल सिंह, बलिराम सिंह, नन्दु सिंह, शत्रुघ्न सिंह, नन्द सिंह, प्रमोद सिंह, राम केवल शर्मा , धर्मा सिंह और शिव मोहन शर्मा। इनमें गिरिजा सिंह व शिव मोहन शर्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं। धर्मा सिंह फरार हैं।
जो लोग उम्रकैद की सजा से बरी किए गए हैं, वे हैं:-अशोक शर्मा, बबलू शर्मा, मिथिलेश शर्मा, धरीक्षण सिंह, चन्देश्वर सिंह, नवीन कुमार, रविन्द्र सिंह, सुरेन्द्र सिंह, सुनील कुमार और प्रमोद सिंह।
इस मामले में दर्ज एफआईआर के अनुसार, रणवीर सेना के करीब 200 लोगों ने लक्ष्मणपुर बाथे गांव में घुसकर 58 लोगों को मार डाला था। गांव में करीब 3 घंटे तक खूनी कारनामा चला। स्थानीय प्रशासन को इसकी खबर तक नहीं लगी। पुलिस ने नरसंहार के 11 साल बाद 46 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर किया था।
इन सभी को निचली अदालत ने सजा सुनाई थी। इनमें अधिकतर बाथे, कामता व चन्दा गांव के रहने वाले हैं। बाद में इनमें से 20 बरी कर दिए गए थे। मामले में ट्रायल कोर्ट में अभियोजन के 117 गवाह व बचाव पक्ष के 152 गवाहों ने गवाही दी। पटना हाई कोर्ट के आदेश से यह मामला 1999 में जहानाबाद कोर्ट से पटना सिविल कोर्ट में ट्रायल के लिए आया था।