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विवेचना सक्षम पुलिस अधिकारी से ही करायी जाये: न्यायालय

लखनऊ,  इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड पीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि अक्षम विवेचनाधिकारी के तफ्तीश करने से केस की चार्जशीट व संज्ञान के आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि विवेचना सक्षम पुलिस अधिकारी को ही करनी चाहिए।

न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने यह फैसला नितेश कुमार वर्मा की याचिका पर दिया। याची का कहना था कि उसके व अन्य के खिलाफ मारपीट व गाली-गलौज मामले की प्राथमिकी पीड़िता ने दर्ज कराई थी। बाद में मजिस्ट्रेट के आदेश पर मामले की विवेचना शुरू हुई। पीड़िता व अन्य गवाहों के बयानों के आधार पर दुष्कर्म के प्रयास का अपराध भी सामने आने पर संबंधित आरोपों की धाराएं बढ़ा दी गईं। फिर चार्जशीट दाखिल कर दी गई।

याची की ओर से दलील दी गई कि उक्त विवेचना जिस पुलिस अधिकारी ने किया था वह हेड कांस्टेबल के पद पर था। कहा गया कि राज्य सरकार के 1997 के एक शासनादेश के तहत ऐसे गम्भीर मामले की विवेचना हेड कांस्टेबल नहीं कर सकता।

कोर्ट ने कहा कि आरोप पत्र व संज्ञान लेने के आदेश को तब तक निरस्त नहीं किया जा सकता, जब तक यह संतुष्टि न हो जाए कि गैर सक्षम पुलिस अधिकारी द्वारा की गई विवेचना से न्याय के विफल होने की संभावना हो सकती है। इस विधि व्यवस्था के साथ मामले में उठे विवेचक की सक्षमता के मुद्दे पर सवाल का जवाब देकर अदालत ने याचिका खारिज कर दी।