प्रयागराज, धर्म और अध्यात्म की नगरी तीर्थराजप्रयाग में साधु-संत, कल्पवासी संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन और आध्यात्मिक उन्नति के लिए तीर्थराज प्रयाग में पहुंचे है वहीं विदेशी सैलानियों को भी माघ मेला खूब भा रहा है।
मेला क्षेत्र में विदेशी सैलानियों को कल्पवासियों और साधु-संतों की तरह त्रिवेणी में स्नान कर धार्मिक क्रियाओं का भी आनंद लेते देखा जा सकता है। कुछ सैलानी समूह में नजर आए और कुछ अकेले मेले का लुत्फ लेते हुए इधर उधर घूमते नजर आए। ये सैलानी भले ही माघ मेले में “ मौनी अमावस्या” पर्व की महत्ता को भलिभंति नहीं समझते हों लेकिन आनंद उठाने से बिल्कुल नहीं हिचक रहे हैं। संगम में नौका विहार का आनंद लेते हुए सेल्फी लेने से भी नहीं चूक रहे हैं। उनका आनंद सातवें आसमान पर है। नौका पर सवार होकर पवित्र गंगा के जल को एक दूसरे पर फेंकते हुए आल्हादित नजर आते हैं।
संगम नोज पर डेनमार्क से आये सैलानी क्रिस्टोफर मैक्ले हेनरी ने पूछा ये भीड़ क्यों, भीड में नहाता है। उन्हे मेले और स्नान पर्व मौनी अमावस्या के बारे में बताने पर कहा कि नदी के तट पर होने वाला यह धार्मिक आयोजन काबिल-ए-तारीफ है और सुरक्षा इंतजाम भी बेहतर किया है। इतने विशाल आयोजन को मुकाम तक पहुंचाना कतई आसान नहीं है।
उन्होंने बताया कि पुस्तकों में पढ़ा है कि भारत विश्व की आत्मा कहलाता है और यहां की अध्यात्मिक ऊर्जा का कोई शानी नहीं है। देश को जीवनदायिनी शक्तियां इसी धरती से मिलती रही हैं। जिस तरह से सनातन धर्म अनादि कहा जाता है उसी प्रकार प्रयाग की महिमा का भी कोई आदि अंत नहीं है। यहां आकर इसकी महत्ता समझ में आ रही है।
हैनरी ने कहा संगम तट पर इतना बड़ा मेला। मेले में साधु-संत और तंबुओं की अस्थायी नगरी में रहने वाले कल्पवासी को निश्चित ही यहां की ऊर्जा से कुछ मिलता है। इतनी ठंड में कोई कैसे तंबुओं में नदी किनारे एक माह तक रहता है, आशचर्य की बात है।
उन्होंने बताया “ मेला वाकई लाजवाब और आस्था का कोई जवाब नहीं। नदियों के प्रति भारतीयों का सम्मान और श्रद्धा देखने के काबिल है। यह भारतीय संस्कृति की विविधता काे दर्शाने के लिये काफी है। यहां साधु-महात्माओं का मस्त मौला अंदाज हर एक से जुदा है। यह एक बेमिसाल आयोजन है जो भारतीय संस्कृति की विविधता को दर्शाता है।