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फिनटेक की ज़रूरी जानकारी के लिए बनेगी रिपॉजिटरी : आरबीआई

मुंबई, रिज़र्व बैंक (आरबीआई) फिनटेक के बारे में आवश्यक जानकारी, उनकी गतिविधियों, उत्पादों, प्रौद्योगिकी स्टैक और वित्तीय सूचनाएं प्राप्त करने के लिए एक रिपोजिटरी स्थापित करेगा।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति समिति की चालू वित्त वर्ष की पांचवीं द्विमासिक तीन दिवसीय बैठक में शुक्रवार को लिए गये निर्णयों की जानकारी देते हुये कहा कि एक बेहतर फिनटेक क्षेत्र सुनिश्चित करने और मजबूत गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए नियामकों और हितधारकों को फिनटेक कंपनियों की समय पर जानकारी रखने की आवश्यकता है। आज, फिनटेक डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी (डीएलटी), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग (एआई/एमएल) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र को उचित समर्थन देने के उद्देश्य से फिनटेक पारिस्थितिकी तंत्र में विकास की बेहतर समझ के लिए, फिनटेक के बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने, उनकी गतिविधियों, उत्पादों, प्रौद्योगिकी स्टैक, वित्तीय जानकारी आदि को शामिल करने के लिए एक रिपोजिटरी स्थापित करने का प्रस्ताव है। रिपॉजिटरी को स्वेच्छा से प्रासंगिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा जो उचित नीति दृष्टिकोण डिजाइन करने में सहायता करेगा। रिपॉजिटरी का संचालन रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब द्वारा अप्रैल 2024 या उससे पहले किया जाएगा। इसके लिए आवश्यक दिशा-निर्देश अलग से जारी किये जायेंगे।

श्री दास ने कहा कि हाल ही में आरबीआई और बैंक ऑफ़ इंग्लैंड ने रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित और पर्यवेक्षित एक केंद्रीय प्रतिपक्ष (सीसीपी), क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (सीसीआईएल) से संबंधित जानकारी के सहयोग और आदान-प्रदान पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। एमओयू बैंक ऑफ इंग्लैंड को सीसीआईएल के माध्यम से अपने लेनदेन को निपटाने के लिए ब्रिटेन स्थित बैंकों के लिए तीसरे देश सीसीपी के रूप में मान्यता के लिए सीसीआईएल का मूल्यांकन करने में सक्षम करेगा। यह एमओयू दोनों देशों के नियामकों के बीच आपसी सहयोग और विश्वास के सिद्धांतों पर आधारित है। हमें उम्मीद है कि अन्य न्यायक्षेत्रों के नियामक भी इन सिद्धांतों को स्वीकार करेंगे।

आरबीआई गवर्नर ने कहा कि ऐसे व्यक्तियों को ऋण देना जो ऋणदाता के निर्णय को नियंत्रित करने या प्रभावित करने की स्थिति में हैं तो यह चिंता का विषय है। यदि ऋणदाता ऐसे उधारकर्ताओं के साथ एक दूरी का संबंध बनाए नहीं रखता है तो उसे कठिनाइयों का सामना करना पद सकता है। इस तरह के उधार में नैतिक खतरे के मुद्दे शामिल हो सकते हैं, जिससे मूल्य निर्धारण और ऋण प्रबंधन में समझौता हो सकता है।

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर मौजूदा दिशानिर्देशों का दायरा सीमित है और ये सभी विनियमित संस्थाओं पर समान रूप से लागू नहीं होते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक की सभी विनियमित संस्थाओं के लिए कनेक्टेड ऋण पर एक एकीकृत नियामक ढांचा लाने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में एक मसौदा परिपत्र सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए जारी किया जाएगा।