विदेशी निवेशकों के रुख तय करेंगे बाजार की चाल

मुंबई, भारत-पाकिस्तान के युद्धविराम समझौते से दोनों देशों के बीच तनाव कम होने, अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता की प्रगति और स्थानीय स्तर पर महंगाई घटने से ब्याज दरों में कटौती होने की उम्मीद में हुई चौतरफा लिवाली की बदौलत बीते सप्ताह करीब चार प्रतिशत तक चढ़े घरेलू शेयर बाजार की चाल अगले सप्ताह विदेशी निवेशकों के रुख से तय होगी।
बीते सप्ताह बीएसई का तीस शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 2876.12 अंक अर्थात 3.6 प्रतिशत की छलांग लगाकर सप्ताहांत पर 82 हजार अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर के पार 82330.59 अंक पर पहुंच गया। इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 1011.8 अंक यानी 4.2 प्रतिशत की उड़ान भरकर 25 हजार अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर के ऊपर 25019.80 अंक पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में बीएसई की दिग्गज कंपनियों के मुकाबले मझौली और छोटी कंपनियों के शेयरों में अधिक लिवाली हुई। इससे मिडकैप 2894.34 अंक अर्थात 6.9 प्रतिशत की तेजी लेकर 45005.84 अंक और स्मॉलकैप 4303.79 अंक यानी 9.2 प्रतिशत की मजबूती के साथ 51045.74 अंक पर पांच गया।
विश्लेषकों के अनुसार, हाल के दिनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की निरंतर खरीददारी प्रमुख पहचान बनकर उभरी है। 08 मई को समाप्त हुए 16 कारोबारी सत्रों में एफआईआई ने एक्सचेंजों के माध्यम से कुल 48,533 करोड़ रुपये की इक्विटी खरीदी। हालांकि, 09 मई को भारत-पाक तनाव के चलते 3,798 करोड़ रुपये की बिक्री दर्ज की गई। लेकिन, अब जबकि युद्धविराम की घोषणा हो चुकी है तो बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि एफआईआई द्वारा भारत में इक्विटी निवेश की गति एक बार फिर तेज हो सकती है।
गौरतलब है कि वर्ष 2025 की शुरुआत में एफआईआई का रुख बिक्री की ओर था। जनवरी में डॉलर सूचकांक के 111 तक पहुंचने के बाद उन्होंने 78,027 करोड़ रुपये की भारी बिकवाली की। हालांकि मार्च के बाद से बिकवाली की तीव्रता में कमी आई और अप्रैल में एफआईआई 4,243 करोड़ रुपये शुद्ध लिवाल रहे, जिससे एक सकारात्मक संकेत मिला।एफआईआई ने मई में अब तक कुल 23,782.64 करोड़ रुपये की लिवाली की है।
विश्लेषकों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर डॉलर में गिरावट और अमेरिका तथा चीन की अर्थव्यवस्थाओं में मंदी जैसे कारकों के साथ-साथ घरेलू स्तर पर उच्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि, घटती महंगाई और ब्याज दरें भारतीय इक्विटी बाजार में एफआईआई प्रवाह को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। इसके विपरीत ऋण प्रवाह में कमी देखी जा रही है और निकट भविष्य में इसके कम रहने की संभावना जताई जा रही है।