भारत प्राकृतिक खेती का वैश्विक केंद्र बनने की राह पर : प्रधानमंत्री मोदी
कोयंबटूर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को कहा कि भारत प्राकृतिक खेती का वैश्विक केंद्र बनने की राह पर है जिससे देश को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को काफी सशक्त बनाया जा सकेगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने तीन दिवसीय दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन और एक प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के बाद लोगों को संबोधित करते हुये कहा कि प्राकृतिक खेती भारत का अपना स्वदेशी विचार है। यह हमारी परंपराओं में निहित है और हमारे पर्यावरण के अनुकूल है। उन्होंने किसानों से “एक एकड़, एक मौसम” प्राकृतिक खेती अपनाने का आग्रह करते हुए कहा कि यह 21वीं सदी की कृषि की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में बढ़ती मांग के कारण खेतों और विभिन्न कृषि-संबंधित क्षेत्रों में रसायनों के उपयोग में तेजी से वृद्धि हुई है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता, नमी प्रभावित हो रही है और साल-दर-साल खेती की लागत बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि इसका समाधान फसल विविधीकरण और प्राकृतिक खेती में निहित है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मिट्टी की उर्वरता में दोबारा जान डालने और फसलों के पोषण मूल्य को बढ़ाने के लिए देश को प्राकृतिक खेती के मार्ग पर आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा, “यह एक दृष्टिकोण भी है और आवश्यकता भी। तभी हम अपनी जैव विविधता को भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रख सकते हैं।”
प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि प्राकृतिक खेती हमें जलवायु परिवर्तन और मौसम में उतार-चढ़ाव का सामना करने में मदद करती है, हमारी मिट्टी को स्वस्थ रखती है और लोगों को हानिकारक रसायनों से बचाती है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन इस महत्वपूर्ण मिशन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य प्राकृतिक खेती को पूरी तरह से विज्ञान-समर्थित आंदोलन बनाना होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में वे भारतीय कृषि में बड़े बदलावों की कल्पना करते हैं।
पीएम मोदी ने पिछले 11 वर्षों में पूरे कृषि क्षेत्र में आये महत्वपूर्ण बदलावों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत का कृषि निर्यात लगभग दोगुना हो गया है और सरकार ने कृषि के आधुनिकीकरण में किसानों की सहायता के लिए हर संभव प्रयास किए हैं। अकेले किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना से किसानों को 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सहायता प्राप्त हुई है। सात साल पहले पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्रों में केसीसी लाभों का विस्तार किए जाने के बाद से इन क्षेत्रों में लगे लोग भी बड़े पैमाने पर इसका लाभ उठा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जैव उर्वरकों पर जीएसटी में कमी से किसानों को और अधिक लाभ हुआ है।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान कहा कि अभी कुछ देर पहले इसी मंच से पीएम-किसान योजना की 21वीं किस्त का वितरण किया गया। उन्होंने कहा कि देश भर के नौ करोड़ किसानों को सहायता देने के लिए 18,000 करोड़ रुपये बैंक खातों में भेजे गए। इससे छोटे किसान अब विभिन्न कृषि जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उनकी सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित कर रही है। एक वर्ष पहले केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन शुरू किया था, जिससे लाखों किसान जुड़ चुके हैं। इस पहल का सकारात्मक प्रभाव विशेष रूप से दक्षिण भारत में दिखाई दे रहा है। अकेले तमिलनाडु में लगभग 35,000 हेक्टेयर भूमि पर अब जैविक और प्राकृतिक खेती हो रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा, “प्राकृतिक खेती एक स्वदेशी भारतीय अवधारणा है। यह कहीं और से आयातित नहीं , बल्कि परंपरा से जन्मी और पर्यावरण के साथ जुड़ी हुई है”, और उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि दक्षिण भारत के किसान लगातार पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत और मल्चिंग जैसी पारंपरिक प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को अपना रहे हैं।
पीएम मोदी ने कहा कि तमिलनाडु में भगवान मुरुगन को थेनम-थिनाई मावू, शहद और श्री अन्न से बना एक व्यंजन चढ़ाया जाता है। तमिल क्षेत्रों में कंबू और समाई जैसे मोटे अनाज, केरल और कर्नाटक में रागी, और तेलुगु भाषी राज्यों में सज्जा और जोन्ना पीढ़ियों से पारंपरिक आहार का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार इन सुपर फूड को वैश्विक बाजारों तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रधानमंत्री ने एकल कृषि की जगह बहु-फसलीय कृषि को बढ़ावा देने की अपनी निरंतर अपील को दोहराते हुए कहा कि दक्षिण भारत के कई क्षेत्र इस संबंध में प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। केरल और कर्नाटक के पहाड़ी इलाकों में इस तरह की खेती के उदाहरण साफ दिखाई देते हैं। उन्होंने बताया कि एक ही खेत में नारियल, सुपारी और फलों के पौधे उगाए जाते हैं और नीचे मसाले तथा काली मिर्च उगाई जाती है। खेती के मूल दर्शन को दर्शाती यह प्रणाली, अखिल भारतीय स्तर पर बढ़ावा पाने योग्य है। उन्होंने राज्य सरकारों से यह भी आग्रह किया कि वे इस पर विचार करें कि इन विधियों को देश के विभिन्न क्षेत्रों में कैसे लागू किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत कृषि का जीवंत विश्वविद्यालय रहा है। यह क्षेत्र विश्व के दो सबसे पुराने कार्यशील बांधों का घर है और कलिंगारायण नहर का निर्माण 13वीं शताब्दी में यहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में मंदिर के तालाब विकेन्द्रीकृत जल संरक्षण प्रणालियों के मॉडल बन गए हैं और इस भूमि ने हजारों वर्ष पहले कृषि के लिए नदी के पानी को विनियमित करके वैज्ञानिक जल इंजीनियरिंग का बीड़ा उठाया था। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि देश और दुनिया के लिए प्राकृतिक खेती में नेतृत्व भी इसी क्षेत्र से उभरेगा।
उन्होंने इस बात पर जोर देते दिया कि विकसित भारत के लिए भविष्योन्मुखी कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों और शोध संस्थानों से प्राकृतिक खेती को कृषि पाठ्यक्रम का एक अभिन्न अंग बनाने की अपील की और उन्हें किसानों के खेतों को जीवित प्रयोगशालाओं की तरह इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य प्राकृतिक खेती को पूरी तरह से विज्ञान-समर्थित आंदोलन बनाना होना चाहिए।”
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अभियान में राज्य सरकारों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में देश में 10,000 एफपीओ का गठन किया गया है। उनके सहयोग से छोटे किसान समूह बनाए जा सकते हैं, जिन्हें सफाई, पैकेजिंग और प्रसंस्करण की सुविधाओं से सुसज्जित किया जा सकता है और उन्हें सीधे ई-नाम जैसे ऑनलाइन बाज़ारों से जोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जब पारंपरिक ज्ञान, वैज्ञानिक शक्ति और सरकारी सहयोग एक साथ आएंगे तो किसान समृद्ध होंगे और धरती माता स्वस्थ रहेगी।
प्रधानमंत्री ने यह विश्वास व्यक्त करते हुए समापन किया कि यह शिखर सम्मेलन देश में प्राकृतिक खेती को नई दिशा देगा और कहा कि इस मंच से नए विचार और समाधान सामने आएंगे।
इस कार्यक्रम में तमिलनाडु के राज्यपाल श्री आर.एन. रवि, केंद्रीय मंत्री डॉ. एल. मुरुगन सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
गौरतलब है कि दक्षिण भारत प्राकृतिक खेती शिखर सम्मेलन 2025 19 से 21 नवंबर 2025 तक आयोजित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य टिकाऊ, पर्यावरण-अनुकूल और रसायन-मुक्त कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना और भारत के कृषि भविष्य के लिए एक व्यवहारिक, जलवायु-अनुकूल और आर्थिक रूप से टिकाऊ मॉडल के रूप में प्राकृतिक खेती की ओर बदलाव को गति प्रदान करना है।
इस कार्यक्रम में तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के 50,000 से अधिक किसान, प्राकृतिक कृषि व्यवसायी, वैज्ञानिक, जैविक आदान आपूर्तिकर्ता, विक्रेता और हितधारक भाग ले रहे हैं।





