नई दिल्ली, फिल्मों के चयन में बेहद सावधानी बरतने और एक-एक बारीकी पर ध्यान देने के कारण सुपरस्टार आमिर खान को मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहकर पुकारा जाता है लेकिन खुद आमिर का मानना है कि यह उनके लिए सही नाम नहीं है। उनका कहना है कि उन्हें दरअसल मिस्टर परफेक्शनिस्ट के बजाय मिस्टर पैशनेट कहकर पुकारा जाना चाहिए। आमिर का कहना है कि वह कभी भी परफेक्शनिस्ट कहे जाने का बोझ महसूस नहीं करते क्योंकि वे इस तमगे में यकीन ही नहीं रखते। संवाददाताओं से आमिर ने कहा कि इससे मुझपर कोई दबाव नहीं बनता क्योंकि मैं इस तमगे में यकीन ही नहीं रखता। यह तमगा दरअसल गलत है। मुझ पर जो तमगा सही बैठता है, वह मिस्टर परफेक्शनिस्ट नहीं बल्कि मिस्टर पैशनेट है। मैं यही हूं।
आमिर नीतीश तिवारी की खेल आधारित नाट्य फिल्म दंगल में नजर आने वाले हैं। आमिर ने कहा कि फिल्मों के रचनात्मक क्षेत्र में बहुत सी राय होती हैं और परफेक्शन हासिल कर पाना संभव नहीं है। आमिर ने कहा कि मेरे हिसाब से परफेक्शन कुछ होता ही नहीं है। रचनात्मक क्षेत्र में तो बिल्कुल नहीं। यहां बहुत से अलग-अलग मत होते हैं, ऐसे में कोई भी एक विचार एकदम सटीक कैसे हो सकता है? आमिर ने कहा कि किसी एक शॉट में उनके लिए परफेक्शन का मतलब तकनीकी रूप से त्रुटिहीन होना नहीं है बल्कि उनके लिए यहां परफेक्शन का मतलब उस दृश्य की जान को फिल्मा लेना है। उन्होंने कहा कि जब मैं किसी दृश्य में होता हूं तो कई चीजों में सटीकता की जरूरत होती है। बहुत सी तकनीकी समस्याएं होती हैं, जिनके कारण किसी शॉट को दोबारा करना पड़ता है। मैं तकनीकी सटीकता पर गौर नहीं करता। उन्होंने कहा कि एक दृश्य में मेरा ध्यान इस बात पर होता है कि उस क्षण का जो मूल है, जो उसकी जान है, उसे फिल्माया जा सका है या नहीं। फिर जब आप दृश्य को देखते हैं तो आपको लगता है कि यह हो गया और सबकुछ ठीक रहा।