नई दिल्ली, भारत फ्रांस से खरीदे गए आधुनिक लडाकू विमान राफेल के पहले दस्ते का बेस पूर्वी सेक्टर में बनाएगा। परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम इन लड़ाकू विमानों का बेस पूर्वी सेक्टर में बनाना भारत की उस नीति का हिस्सा है, जिसके तहत चीन को पारंपरिक और परमाणु दोनों मोर्चों पर जवाब देना है। भारत पहले ही सुखोई-30 एमकेआई फाइटर जेट्स को असम के तेजपुर और छाबुआ में कर चुका है। अब भारतीय वायु सेना ने अपनी उस योजना को अंतिम रूप दे दिया है जिसके तहत 2019 के अंत तक मिलने वाले पहले 18 राफेल लड़ाकू विमानों को पश्चिम बंगाल के हाशिमपुरा एयरबेस पर तैनात किया जाएगा।
भारत ने इस योजना को ऐसे समय में अमल में लाने का फैसला किया है, जब परमाणु क्षमता वाली अग्नि-4 और अग्नि-5 मिसाइल का परीक्षण आखिरी दौर में हैं। अग्नि-3 को पहले ही सेना में शामिल किया जा चुका है।रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने पिछले साल भारत-फ्रांस के बीच 36 राफेल विमानों के लिए करीब 59,000 करोड़ की डील पर हस्ताक्षर किए थे। इस सौदे के लिए फ्रांस के रक्षा मंत्री सितंबर , 2016 में भारत के दौरे पर दिल्ली आए थे। इस डील के तहत, 2022 के मध्य तक वायुसेना को 36 राफेल विमान कई चरणों में मिलेंगे।
भारतीय परिस्थितियों को देखते हुए भारत ने इनमें कुछ अन्य फीचर्स जोड़ने की मांग की थी। इनमें ऊंचाई वाले इलाकों में कोल्ड स्टार्ट की सुविधा भी शामिल है। 9.3 टन के हथियार ढोने में सक्षम राफेल हवाई सुरक्षा से लेकर जमीनी हमले से जुड़े मिशनों के लिए बेहद कारगर है। एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए एक अधिकारी ने बताया, हाशिमपुरा एयरबेस में फिलहाल मिग-27 जेट्स हैं, जो अगले दो से तीन साल में रिटायर हो जाएंगे और उनका स्थान लेंगे राफेल लडाकू विमान। राफेल विमानों का निर्माण करने वाली कंपनी डॉसल्ट एवियशन पहले ही हाशिमपुरा का दौरा कर चुकी है।