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अब जल- मित्र करेंगे पानी की निगरानी, नीति आयोग ने की सिफारिश

नई दिल्ली,  पीने के पानी के स्रोत पर अतिक्रमण और इसे दूषित करने वालों की निगरानी शुरू हो सकती है। सरकार गांव-गांव में पानी के पहरेदार खड़े कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति पेयजल को प्रदूषित करता है तो ये पहरेदार उसकी शिकायत ब्लॉक या जिला स्तरीय अधिकारियों से कर सकेंगे। इन पहरेदारों का नाम जल मित्र होगा और सरकार इन्हें प्रोत्साहन राशि भी दे सकती है। पानी और पेयजल राजग सरकार की प्राथमिकता में शामिल है। इसे देखते हुए ही नीति आयोग ने देश के विकास की त्रिवर्षीय कार्ययोजना में जल मित्र की तैनाती की सिफारिश की है।

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आयोग का कहना है कि जल गुणवत्ता के मुद्दे पर सबसे पहले आर्सेनिक और फ्लोराइड से प्रभावित 26,500 बस्तियों में शुद्ध जल की आपूर्ति पर ध्यान देना चाहिए। प्रत्येक गांव से एक जल मित्र को प्रोत्साहन देकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जल स्रोत प्रदूषण से मुक्त हों। जल मित्र को जल स्रोत के प्रदूषण और अतिक्रमण की शिकायत ब्लॉक या जिले के अधिकारियों को रिपोर्ट करने का अधिकार होना चाहिए। इसके अलावा प्रत्येक ब्लॉक और पंचायत के लिए समयबद्ध योजना भी बनायी जानी चाहिए।

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 साथ ही जल प्रदूषण के दोषियों के लिए जुर्माना भी सख्त होना चाहिए। जल को बचाने और प्रदूषण से मुक्त रखने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि देश में पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता तेजी से कम हो रही है तथा पानी की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार वर्ष 2001 में प्रति व्यक्ति 1816 घन मीटर जल उपलब्ध था जो आबादी बढ़ने के कारण 2011 में घटकर 1544 घन मीटर रह गया।

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 भारत में फिलहाल 1123 अरब घन जल उपलब्ध है जिसमें से 433 अरब घन भूमिगत जल है जबकि 690 अरब घन जल नदी, तालाबों और जलाशयों में है। नेशनल कमीशन फॉर इंटीग्रेटेड वाटर रिसोर्सेस डवलपमेंट (एनसीआइडब्ल्यूआरडी) के अनुसार वर्ष 2050 तक देश में जल की मांग 973 से 1180 अरब घन मीटर (बीसीएम) तक होने का अनुमान है।

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 उस समय जल की 70 प्रतिशत मांग कृषि से, 9 प्रतिशत घरेलू इस्तेमाल के लिए तथा 7 प्रतिशत औद्योगिक इस्तेमाल के लिए होगी। सिंचाई तथा अन्य उपयोग के लिए भूमिगत जल का भी तेजी से दोहन हो रहा है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर पदेश में कई ऐसे ब्लॉक हैं जहां भूमिगत जल का अति दोहन हुआ है। ऐसे में देश में सभी परिवारों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराना बड़ी चुनौती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कुल ग्रामीण परिवारों में से मात्र 30 प्रतिशत परिवारों को ही पाइप से पानी की आपूर्ति हो रही है। हालांकि शहरों में पाइप से पेयजल पाने वालों का अनुपात 70.6 प्रतिशत है।

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इस तरह अब भी आधी से अधिक आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। वैसे नीति आयोग की इस सिफारिश से पहले केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने चुनिंदा जिलों के कुछ गांवों में जल मित्र और नीर-नारी तैनात करने की दिशा में कदम बढ़ाया था। लेकिन मंत्रालय का यह प्रयास अब तक नाकाफी साबित हुआ है। दरअसल, जल क्रांति अभियान के तहत तैनात किए गए जल मित्र और नीर-नारी को किसी भी तरह विशेष प्रोत्साहन सरकार की ओर से नहीं मिलता था। अब नीति आयोग ने जल मित्रों को प्रोत्साहन देने की सिफारिश की है। नीति आयोग ने राज्य आधारित जल नीतियां तथा जल के उपयोग और कीमतों के विनियमन के लिए एक स्वतंत्र नियामक बनाने की सिफारिश भी की है। साथ ही जलाशयों और तालाबों के संरक्षण के लिए एक कानून बनाने की सिफारिश भी की है। आयोग ने 2019 तक नदी बेसिन प्रबंधन कानून तथा नदी बेसिन संगठन बनाने का सुझाव भी दिया है।