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नही थम रहा जजों के बीच विवाद, संविधान पीठ का गठन, पर चार सबसे वरिष्ठ जज नही किये शामिल

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई को लेकर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और चार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों के बीच एक तरह से मतभेद थमते नही दिखाई दे रहें हैं. शीर्ष अदालत ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के गठन की घोषणा की जिसमें ये चारों न्यायाधीश शामिल नहीं हैं.

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आधिकारिक जानकारी के अनुसार पांच न्यायाधीशों की पीठ में सीजेआई दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं. यह संविधान पीठ 17 जनवरी से कई महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई शुरू करेगी.इन्हीं न्यायाधीशों ने पिछले साल 10 अक्तूबर से संविधान पीठ के विभिन्न मामलों में सुनवाई की थी. इनमें प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव का मामला भी है.

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इस संविधान पीठ में प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करने वाले चारों न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ में से किसी का नाम पांच जजों की संविधान पीठ के सदस्यों में नहीं है. इस बीच अदालत के सूत्रों ने कहा कि इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि सीजेआई ने आज उन चार न्यायाधीशों से मुलाकात की या नहीं जिन्होंने 12 जनवरी को संवाददाता सम्मेलन में सीजेआई के खिलाफ आरोप लगाये थे.

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सोमवार की कार्यसूची के अनुसार पांच न्यायाधीशों की पीठ आधार कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मामले और सहमति से वयस्क समलैंगिकों के बीच यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के फैसले को चुनौती देने से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों में सुनवाई करेगी.

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 पीठ केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओें के प्रवेश पर रोक के विवादास्पद मुद्दे पर भी सुनवाई करेगी और इस कानूनी सवाल पर सुनवाई फिर शुरू करेगी कि क्या कोई पारसी महिला दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी के बाद अपनी धार्मिक पहचान खो देगी. संविधान पीठ अन्य जिन मामलों को देखेगी उनमें आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे किसी जनप्रतिनिधि के अयोग्य होने से संबंधित सवाल पर याचिकाएं भी हैं.

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इन सभी मामलों को पहले शीर्ष अदालत की बड़ी पीठों को भेजा गया था. मंगलवार की दैनिक कार्यसूची के अनुसार न्यायमूर्ति लोया की मौत के मामले में जांच की दो जनहित याचिकाएं न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है जिनके खिलाफ एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने सार्वजनिक रूप से आक्षेप लगाये थे.

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