मोदी सरकार आखिर क्यों छुपा रही है जाति जनगणना के आंकड़ों को?
May 22, 2018
भारत मे 1931 में अंतिम जाति आधारित जनगणना हुई थी। सन 2011 में आठ दशक बाद फिर से जातीय जनगणना हुई है। और यह संभव हो पाया ओबीसी संगठनों के दवाब के कारण, जो जाति-जनगणना की लगातार मांग करते रहे हैं। लेकिन अब हजारों करोड़ो रूपये खर्च कराकर करायी गयी, जाति जनगणना के आंकड़ों को मोदी सरकार दाब कर बैठ गई है।
2011 में, जनगणना में जो सवाल पूछे गए थे, वे थे : 1. आपके घर में कितने लोग है 2. परिवार के सदस्य कहाँ तक पढ़े-लिखें हैं? 3. जाति, धर्म क्या है? 4. घर में टीवी, कम्प्यूटर, फ्रिज़, मोबाईल व शौचालय है क्या? 5. घर में कितने कमरे हैं? व 6. महिला सदस्य कहाँ तक शिक्षित हैं? घर में अगर कोई आश्रित हो तो उसे अलग परिवार का दिखाया गया। परिवार की सालाना आय पूछी गयी। इस प्रकार इतनी बातों का सरकार ने बारीकी से जायज़ा लिया लेकिन इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करने से मोदी सरकार क्यों डर रही है?
इसके लिये लालू यादव ने पटना में राजभवन तक मार्च किया था और कहा कि प्रधानमंत्री मोदी बैकवर्ड कास्ट के दुश्मन हैं। अगर वे हितैषी हैं तो जाति जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करके दिखायें। सच भी है जब जातीय गणना कराई गई तो उसकी रिपोर्ट आनी चाहिए और लोगों को संख्या के बारे में मालूम होना चाहिए और समाज के जो विभिन्न समूह हैं, उनकी आर्थिक स्थिति के बारे में, सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलनी चाहिए।
दरअसल, 3 जुलाई को जब भारत सरकार ने सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना रिपोर्ट 2011 जारी की तब ग्रामीण भारत का ऐसा चेहरा दिखा था जिससे विकास के तमाम दावे अपने आप ध्वस्त हो रहे थे। पता चला कि भारत आज भी एक ग्रामीण राष्ट्र है। इसके साढ़े चौबीस करोड़ परिवारों में से करीब अठारह करोड़ परिवार गांवों में रहते हैं।
1931 के बाद भले ही जाति की गिनती नहीं हुई लेकिन 1980 के मंडल कमीशन से मोटा मोटी मालूम चल गया था कि देश में 54 प्रतिशत ओबीसी हैं, 30 प्रतिशत के आस पास अनुसूचित जाति और जनजाति और 16 से 18 प्रतिशत अपर कास्ट। अब अगर जाति जनगणना रिपोर्ट 2011 मे अपर कास्ट का अनुपात दस प्रतिशत से भी कम हुआ तो प्रतिनिधित्व के सवाल को लेकर भारतीय राजनीति में फिर से भूचाल आ सकता है।
बीजेपी सरकार इसलिए भी डर रही है कि इस रिपोर्ट के बाद सरकार पर शिक्षा और नौकरियों में ओबीसी आरक्षण कोटा बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा जबकि बीजेपी और संघ परिवार के समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा यह उम्मीद रखता है कि ओबीसी प्रधानमंत्री आरक्षण समाप्त कर देंगे। ओबीसी की स्थिति सरकारी नौकरियों मे कितनी कम है इसका अंदाजा भी आप नही लगा सकतें हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय के तत्कालीन राज्यमंत्री वी नारायणासामी ने संसद में शरद यादव के एक प्रश्न का उश्रर देते हुए सरकारी नौकरियों में विभिन्न वर्गों की भागीदारी का निम्न विवरण दिया था –
स्पष्ठ है कि 15 % आबादी वाली ऊंची जाति यानि अपर कास्ट का सरकारी नौकरियों मे 76.8 % कब्जा है, वहीं 54 % से अधिक आबादी वाले ओबीसी को सरकारी नौकरियों मे मात्र 6.9 % हिस्सेदारी है। जब मोदी सरकार ने देखा कि इस गिनती में अपर कास्ट ख़तरनाक रूप से जनसंख्या में कम हैं तो उन्हें लगा कि अब तो और भी प्रमाणिकता के साथ यह सवाल उठेगा कि जिसकी संख्या सबसे कम है सरकार में उसकी भागीदारी सबसे अधिक क्यों हैं। सूत्रों के अनुसार, इसी आशंका से रिपोर्ट दबाई जा रही है।
27 सदस्यों की मोदी सरकार के मंत्रिमंडल मे वर्चस्व अपर कास्ट का ही है। 8 कैबिनेट मंत्री ब्राह्मण हैं और चार क्षत्रिय हैं। मोदी कैबिनेट में एकमात्र असरदार बैकवर्ड कास्ट मंत्री अगर कोई है तो ख़ुद मोदी ही हैं। बीजेपी को डर है कि जाति जनगणना रिपोर्ट 2011 सार्वजनिक होने के बाद सबसे पहली उंगली मोदी सरकार के मंत्रिमंडल मे पिछड़ों की संख्या और उनके पावर को लेकर ही उठेगी।
जातीय जनगणना केआंकड़ों को दबाये रखना मोदी सरकार की दलितों, पिछड़ों और आदिवासी वर्ग के साथ सबसे बड़ी ज्यादती है। देश की आबादी में ओबीसी का प्रतिशत 52 बताया गया है,जो आज बदल चुका है और बढ़ चुका है। इसलिए ओबीसी को दिये जानेवाले आरक्षण को 27 प्रतिशत से बढ़ाना जरुरी है। मोदी सरकार को चाहिये कि वह जाति जनगणना 2011 की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर, दलितों, पिछड़ों और आदिवासी वर्ग के सरकार के प्रति आक्रोश को कम करें। सार्वजनिक जाति जनगणना की सही तस्वीर समतामूलक समाज की स्थापना में मददगार साबित होगी और आर्थिक असमानता को दूर करेगी।