अगस्त क्रांति के क्रांतिकारी सेनानी सरवन यादव, को आज पूछने वाला कोई नही ?

गाजीपुर, देश को यह आजादी आसानी से नही मिली है। हमारे देश को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने खून पसीना बहाया है। इनमे से ज्यादातर शहीद हो गये लेकिन गिने चुने जो  स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बचें हैं आज उनके बारे मे जानने की फुरसत न सरकार के पास है और न प्रशासन के पास। एेसे ही एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं सरवन यादव।

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गाजीपुर जिले के क्षेत्र के हथौड़ा गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरवन यादव सबसे पहले अगस्त क्रांति के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में कूदे थे। पहली बार उन्होंने अपने गांव के पास स्थित  रेल की पटरी उखाड़ी थी। इसका पता चलने पर अंग्रेज सरकार उनके पीछे पड़ गयी। सरवन यादव ने घर-बार त्याग दिया

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अब उनका डेरा काली मंदिर के पास विशालकाय पीपल का पेड़ हो गया जहां  पर वह छिपकर रहते थे। लाल गमछा में भिगोया हुआ चना बांधकर उसी पेड़ की डालियों में टांग देते थे और वही खाते थे। चारपाई लेकर पेड़ के ऊपर डालियों में फंसाकर बांध देते थे। उसी पर अपने साथियों के साथ सोते थे। रात में यही लोग भयानक आवाज निकालते थे ताकि कोई दिन में भी डर के मारे इधर न आए।

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरवन यादव एक बार औड़िहार स्टेशन फूंकने के बाद अंग्रेज सिपाहियों द्वारा पकड़ लिये गये थे। लेकिन अपने दो साथियों को भगाने के बाद सरवन यादव खुद अंग्रेजों को चकमा देकर भाग निकले थे।

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एक बार गाजीपुर से सरजू पांडेय के आह्वान पर अपने 12 साथियों के साथ सैदपुर तहसील में आग लगा दिए और अपने सभी मित्रों के साथ पकड़े गए। मुकदमें के दौरान अंग्रेज जज ने माफी के शर्त पर छोड़ देने को कहा। इनके अधिकांश साथियों ने माफी मांग लिए परंतु सरजू पांडेय का साथ देने के लिये इन्होंने माफी नहीं मांगी और दस कोड़ों का दंड भी खाया और एक साल जेल में भी रहे। लखनऊ से जमानत मिलने के बाद इनको रिहा किया गया।

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सेनानी सरवन यादव का पीपल के पेड़ से खास लगाव रहा है। पीपल के पेड़ को प्राणरक्षक ही नहीं बल्कि जीवनदायनी भी मानते हैं। क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों व सार्वजनिक जगहों पर इन्हीं के हाथों का लगाया पीपल का विशालकाय पेड़ आज भी मौजूद है। सरवन यादव अपने जीवन काल में हजारों पीपल के पेड़ लगा चुके है और कहतें है कि माता पिता ने एक बार जन्म दिया पर यह पेड़ हमारा कई बार जान बचा चुका है।

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरवन यादव अगस्त क्रांति के उन नायकों में से हैं जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। सरवन यादव के दो पुत्र और दो पुत्रियों का लालन पालन उनकी पत्नी ने गृहस्थी करते हुये अकेले ही पाला है। आज उनकी उम्र 109 वर्ष है। वह न ठीक से बोल सकतें हैं और नाही सुन सकतें हैं। तेज आवाज में बोलने पर उन्हें सुनाई पड़ता है।

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राष्ट्र धरोहर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरवन यादव  सालों से बीमार हैं पर इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को देखने तक कोई नेता या प्रशासनिक अधिकारी नहीं आया। उनकी सेवा में दिन रात उनकी पत्नी कुनई देवी जुटी रहतीं हैं। सरकारी पेंशन के सिवाय आज तक कोई भी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं मिला है। साधारण से परिवार के सेनानी सरवन यादव जिन्होंने अपना सारा जीवन देश सेवा में लगा दिया, आज उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है।

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क्षेत्र के लोग लम्बे समय से  सरवन यादव के नाम से रोड या कोई सभागार की मांग करते रहे हैं। सरवन यादव की पत्नी कुनई देवी की इच्छा है कि जिस जगह पर सरवन यादव अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ बैठकर आजादी के जंग की योजना बनाते थे उस जगह पर उनके नाम से कुछ यादगार स्मृति बन जाए।  जिससे आने वाली पीढ़ी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की दी हुी कुर्बानियों को याद रखे।

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