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फूलन देवी क्यों हैं, कमजोर महिलाओं के लिये प्रेरणाश्रोत ?

लखनऊ , समाज मे भटके हुए लोगो को मुख्यधारा मे लाने का काम आज से नही एक अर्से से होता आया है । अस्सी के दशक में दस्यु सुंदरी फूलनदेवी और उसके साथियों का समर्पण बीहड़ के इतिहास में अब तक की सबसे यादगार घटना रही है।समर्पण की इस प्रक्रिया को सराहनीय पहल के तौर पर देखा जाना चाहिए ।

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मध्यप्रदेश के भिंड मे तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष फूलनदेवी के आत्मसमर्पण को अब तक का सबसे बहुचर्चित समर्पण माना जाता है जिसके बाद से चंबल मे डाकुओ के समर्पण का सिलसिला चल पडा ।

फूलन देवी का जन्म एक मल्लाह के घर हुआ था। 11 साल की उम्र में शादी हुई, लेकिन पति ने छोड़ दिया। फूलन देवी ने अपनी ऑटोबाईग्राफी में उनके साथ हुई ज्यादतियों की दास्तां बयां की है। कई तरह की प्रताडऩा के बाद फूलन देवी का झुकाव डकैतों की तरफ हुआ। आमतौर पर उनको रॉबिनहुड की तरह गरीबों का पैरोकार समझा जाता था।

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डकैत गिरोह का मुखिया विक्रम मल्लाह फूलन देवी से प्यार करता था।  फूलन देवी ने अपनी किताब में विक्रम मल्लाह के साथ अंतिम रात और अपने साथ हुए गैंगरेप के बारे में लिखा है। फूलन देवी की ऑटोबाईग्राफी  के अनुसार,  पहली बार मैं विक्रम के साथ पति-पत्नी की तरह सोए थे। गोली चलने की आवाज से नींद खुली। श्रीराम सिंह ने विक्रम मल्लाह को गोलियों से भून डाला और उनको साथ ले गया। उन्होंने किताब में कुसुम नाम की महिला का जिक्र किया है, जिसने श्रीराम की मदद की थी।

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श्रीराम सिंह उसके साथी फूलन को नग्न अवस्था में ही रस्सियों से बांधकर नदी के रास्ते बेहमई गांव ले गए। उसने मेरे कपड़े फाड़ दिए और आदमियों के सामने नंगा छोड़ दिया। सबसे पहले श्रीराम ने मेरा रेप किया। फिर बारी-बारी से गांव के लोगों ने मेरे साथ रेप किया। वे मुझे बालों से पकड़कर खींच रहे थे।धीरे-धीरे फूलन देवी ने खुद का एक गिरोह खड़ा कर लिया और उसकी नेता बनी।

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इसके बाद 14 फरवरी 1981 को बेहमई में फूलन देवी ने अपना बदला लेने के लिए सामूहिक हत्या कर दी थी। उसने ठाकुर जाति के 22 लोगों की एक साथ हत्या कर दी थी। जिससे वो इंटरनेशनल लेवल पर सुर्खियों में आईं थीं। 1983 में वह फिर उस समय सुर्खियों में आईं जब  इंदिरा गांधी की सरकार ने उनसे समझौता किया कि उन्हें मृत्यु दंड नहीं दिया जाएगा। इस शर्त के तहत अपने 10 हजार समर्थकों के साथ फूलन देवी ने सरेंडर कर दिया।

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11 साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। फूलन देवी ने अपनी रिहाई केबाद हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म में अपना धर्मातंरण किया। 1996 में उन्होंने यूपी के भदोही सीट से चुनाव जीता और संसद पहुंची।

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25 जुलाई, 2001 को दिल्ली में आवास पर फूलन की हत्या कर दी गई।

कभी जिस डाकू का नाम सुनते ही लोग कांप उठते थे, आज उसी की मां दाने-दाने को तरस रही है।

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एक समय ऐसा था जब फूलन की एक आवाज पर लोगों के घरों में अनाज पहुंच जाता था, भूखों के पेट भरते थे। आज उसी के घर के हालात बहुत खराब हैं।

गुढ़ा गांव में एक कच्चे, झोपड़ीनुमा घर में फूलन की बूढ़ी मां मूला देवी (76), उसकी बहन रामकली और उसका बेटा रहता है। मूला ठीक से बात भी नहीं कर पाती।

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अब उनका दिमाग ठीक से काम नहीं करता। कुछ भी पूछने पर वो गांव के ही कुछ लोगों द्वारा कब्जाई गई जमीन के बारे में बताने लगती हैं।

वो कहती हैं, मैं पिछले कई सालों से 2 वक्त के खाने को भी तरस रही हूं। कुछ समाजसेवी संगठन के लोग चावल, आटा, दाल आदि दे जाते हैं। एक समय ऐसा था जब मेरी बेटी की एक बात पर भूखों के घर में खाना पहुंच जाता था।

फूलन देवी की बूढ़ी मां मूला देवी के अनुसार, जब फूलन थी तब भी सुख नहीं मिला। उसके डकैत बनने के बाद लोग मुझे डकैत की मां कहकर ताना देने लगे। पुलिस पूछताछ के नाम पर टॉर्चर करती थी। जब बेटी सांसद बनी, तब भी उसने हमारे लिए कुछ नहीं किया। उसके मरने के बाद दबंगों ने हमारी जो 4-5 बीघा जमीन थी, उसपर कब्जा कर लिया।

सांसद बनने के बाद फूलन को जो कुछ भी मिला था, उसे उसके पति उमेश सिंह ने ले लिया। मैं इस लायक नहीं हूं कि मेहनत मजदूरी करके पैसे कमा सकूं और घर चला सकूं। पति के छोडऩे के बाद बेटी रामकली की दिमागी हालत ठीक नहीं। वहीं, उसका बेटे को लकवा मार गया है, वो हमेशा बिस्तर पर ही लेटा रहता है।

कभी कुछ समाजसेवी लोग आते हैं और अनाज देकर चले जाते हैं, जिससे हमारा पेट भरता है।

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फूलन देवी की बूढ़ी मां मूला देवी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तारीफ जरूर करती हैं, उन्होने बताया कि सपा नेता अखिलेश यादव ने एक लाख रुपए का चेक भेजा था।

1994 में शेखर कपूर ने फूलन पर आधारित एक फिल्म बैंडिट क्वीन बनाई, जो काफी चर्चित और विवादित रही।