लखनऊ, उत्तर प्रदेश में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानो को सलाह दी है कि आलू की फसल को झुलसा रोग और कीट से बचाने के लिये जरूरत के अनुुसार सिंचाई करते रहें।
उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के निदेशक एसबी शर्मा ने बताया कि जब मौसम में 85 प्रतिशत से अधिक नमी आ जाये और लगातार तीन दिन तक कोहरा बना रहे और तापमन पांच डिग्री सेन्टीग्रेड से कम हो। ऐसी स्थिति में पिछेता झुलसा के अनुकूल होती है। उन्होंने बताया कि मौसम की अनुकूलता के आधार पर आलू की फसल में पिछेता-झुलसा बीमारी निकट भविष्य में आने की सम्भावना है तथा इस मौसम में पाला भी पड़ने की सम्भावना है, जिससे आलू की फसल को नुकसान हो सकता है।
निदेशक ने कहा कि जिन किसानो ने किसान आलू की फसल में अभी तक फफूँदनाशक दवा का पर्णीय छिड़काव नहीं किया है, वे आलू की फसल में अभी पिछेता-झुलासा के बचाव के लिये मैन्कोजेब,प्रोपीनेब और क्लोरोथेलोनील युक्त फफूँदनाशक 2.0-2.5 किग्रा0 प्रति 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। साथ ही यह भी सलाह दी है कि जिन खेतों में बीमारी प्रकट हो चुकी हो उनमें किसी भी फफूँद नाशक साईमोक्सेनिल के साथ मैन्कोजेब का तीन किग्रा प्रति हेक्टेयर एक हजार लीटर पानी की दर से अथवा फेनोमिडान के साथ मैन्कोजेब का तीन किग्रा प्रति हेक्टेयर एक हजार लीटर पानी की दर से अथवा डाईमेथोमार्फ एक किग्रा एवं मेन्कोजेब 2.0 किग्रा के साथ कुल मिश्रण तीन किग्रा प्रति हेक्टेयर एक हजार लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
उन्होंने बताया कि फफूँदनाशक को दस दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है अथवा रोग की तीव्रता के आधार पर इस अन्तराल को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। किसान को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि एक ही फफूँदनाशक का बार-बार छिड़काव न करें।
श्री शर्मा ने बताया कि किसान भाई पाले से फसल के बचाव के लिए अपने आलू के खेतों में पर्याप्त नमी रखें, इसके लिए आवश्यक है कि आलू की फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें तथा बचाव के लिए खेत के नजदीक धुंए के लिए अलावा जलायें।